शनिवार, 28 फ़रवरी 2009

२६ फ़रवरी, एक सफल शाम


२६ की शाम सफल रही। पांच सौ की क्षमता वाला थियेटर पूरा भरा, मौसम सुहावना बना रहा और मध्यांतर की चाय स्वादिष्ट। यों तो यह विवरण २७ को लिखा जाना था पर सफलता के बाद की थकान और उत्सव में सबकुछ डूबा रहा। गुरूवार के प्रदर्शन के उपलक्ष्य में शुक्रवार चौपाल नहीं लगी। अनुज के यहाँ शाम का डिनर भी था। अनुज यानी अनुज प्रसाद जिन्हें लोग श्वेता प्रसाद के पिता के रूप में अधिक जानते हैं और श्वेता प्रसाद को भी लोग श्वेता प्रसाद के नाम से कम, मकड़ी या इकबाल वाली लड़की के रूप में ज्यादा जानते हैं। तो इस बार अनुज भारत वापस जा रहे हैं शायद लंबे समय के लिए। चौपाल के साथ वे मित्र, सहयोगी, मार्गदर्शक के रूप में जुड़े रहे। उनकी उपस्थिति उत्साहवर्धक होती थी। आगामी चौपालों में यह कमी सदा महसूस होगी।

पहले चित्र में जलूस के एक दृश्य में अनुज पुलिसवाले की भूमिका में। इसी चित्र में बायीं ओर बूढ़े की भूमिका में डॉ.शैलेष उपाध्याय और पीछे आम आदमी की भूमिका में अन्य अभिनेता। अगला चित्र नेपथ्य से है। चौदह के बिलकुल बाद का। सेट हटाते हुए- चलो चलो सामान जल्दी हटाओ दूसरे नाटक का सेट लगाना है।

२६ के दोनों नाटक सफल रहे। यों तो बेहतर होने की गुंजाइश हमेशा रहती है और अगली चौपाल में शायद विस्तार से इसकी चर्चा होगी। खास बात यह है कि लोगों ने एकजुट होकर काम किया। चौदह का सेट ज़बरदस्त था। मुख्य भूमिका में मेनका का अभिनय सुंदर रहा। मूफ़ी ने खूब हँसाया, ऊष्मा पहली बार मंच पर थी पर आत्मविश्वास अच्छा रहा।

यह सबीहा का लिखा और निर्देशित किया हुआ नाटक था। एक वाक्य में कहा जाए तो सबीहा मजगाँवकर की चल निकली। साथ की फ़ोटो में बायीं ओर से मिसेज़ चावला की भूमिका में मेनका हेमरजानी, सिमरन की भूमिका में ऊष्मा शाह और धनराज की भूमिका में मुफ़द्दल बूटवाला।

जुलूस का प्रदर्शन भी जानदार रहा। पात्रों ने अपनी अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया। विशेष कुछ कहने की बात नहीं है क्यों कि बिमान दा पुराने निर्देशक हैं पात्र भी सब अनुभवी थे। इस कार्यक्रम की खास बात यह रही कि कौशिक साहा के रूप में एक अच्छा पार्श्व संगीतकार चौपाल के हाथ लगा। चौदह और चौपाल दोनों में संगीत उन्हीं का था। उसे भी बड़ी बात यह कि बड़ा हॉल पूरा भर गया। हाँलाँकि उस समय हॉल की तस्वीर शायद किसी ने नहीं ली। नाटक की तस्वीरें काफ़ी हैं बायीं ओर के हाशिए पर उसमें से कुछ दिखाई देंगी। इस पृष्ठ पर नाटक के पीछे की दो तस्वीरें प्रस्तुत हैं। पहली ऊपर सेट हटाते हुए और दूसरी सबसे नीचे- कौशिक साहा संगीत कक्ष में संगीत पर नियंत्रण रखते हुए।

शुक्रवार, 20 फ़रवरी 2009

२० फ़रवरी, रिहर्सल और तैयारियाँ


एक सप्ताह भी नहीं बचा, दोनों नाटकों का मंचन एक साथ होना है, गुरुवार 26 फरवरी की शाम 9 बजे। समय कुछ देर का है लेकिन गुरुवार काम का दिन है। 7 बजे लोग काम से वापस लौटते हैं 9 बजे से पहले थियेटर नहीं पहुँच सकेंगे। अगला दिन शुक्रवार है यानी साप्ताहिक छुट्टी का दिन, जब बच्चों को स्कूल जाना नहीं होता और आमतौर पर सभी देर तक सोते हैं।

दिन का प्रारंभ चौदह के रिहर्सल से हुआ। 12 बजे से जलूस का रिहर्सल था लेकिन लोग 10 बजे से आने शुरू हो गए थे। विशेष रुप से नेपथ्यवाले लोग जिन्हें सेट बनाना है या दूसरे काम करने हैं। नाटक संगीत के साथ सेट हो गया है। जलूस में एक चीख है जो 2-3 बार आती है। अजीब बात है कि वह चीख हर जगह अलग है और बनावटी भी। लगता है वह सिर्फ़ डमी है कौशिक अंतिम दिन के लिए किसी बेहतर चीख का इंतज़ाम कर लेंगे। हाँ दोनों नाटकों का संगीत कौशिक साहा देख रहे हैं। प्रकाश की स्थितियाँ समझ ली गई हैं- कब अंधेरा है, कब किसके ऊपर प्रकाश है, कहाँ स्थिर स्पॉट हैं और कहाँ वे पात्र का पीछा करेंगे, अंधेरे में किसको कहाँ से प्रवेश करना है और कब किसको प्रकाश में दिखाई देना है।

बिमान दा ने नेपथ्यवालों के लिए फरमान जारी कर दिया है। संगीत वाले कुर्सी नहीं खिसकाएँगे। स्क्रिप्टवाले पन्ने नहीं खड़काएँ और खाँसने वाले दबे पैरों खाँसी दबाकर नेपथ्य से दूर चले जाएँगे। लग रहा है कि प्रदर्शन के दिन नज़दीक आ गए हैं। रिहर्सल एक ही बार हुआ पर सब कुछ तैयार है। कुछ लोग आज की चौपाल में नए थे संग्राम, क्रिस्टोफ़र और कविता पहली बार आए थे। उन्हें रिहर्सल देखकर नाटक अच्छा लगा।

चौदह और जलूस के बीच में चाय पी गई बाकी तो बस रिहर्सल रिहर्सल। जलूस का रिहर्सल 1:30 पर समाप्त हुआ पर कुछ लोगों ने बाद तक अपने अपने टुकड़ों का अलग से अभ्यास किया। आशा है यह प्रदर्शन ज़बरदस्त रहेगा। दाहिनी ओर ऊपर जलूस का एक दृश्य और बायीं ओर नीचे चौदह का। नाटक में टिकट नहीं हैं, प्रवेशपत्र मुफ्त हैं, इनको पाने के विवरण के लिए नीचे दिए गए पोस्टर पर क्लिक करें। विशेष विवरण प्रेस समीक्षा यहाँ उपलब्ध है।

गुरुवार, 19 फ़रवरी 2009

१८ फरवरी, बाअदब बामुलाहिज़ा


खबरदार, होशियार, इमारात के सभी समझदार! बारह प्रदर्शनों का वार्षिक शृंखला में थियेटरवाला लेकर आ रहे हैं अपना दूसरा प्रदर्शन - दो नाटकों का रंगारंग कार्यक्रम गुरुवार 26 फरवरी की शाम नौ बजे से। नाटक हैं- चौदह और जुलूस।

चौदह समाज में प्रदर्शन की मानसिकता और महत्वकांक्षाओं के बीच बुनी गई पारिवारिक कामदी है जिसमें सारी समस्याएँ खाने की मेज़ के आसपास घूमती हैं। मूल रूप से एलिस गर्सटेनबर्ग के अंग्रेज़ी नाटक को हिन्दी रूपाकार दिया है सबीहा मज़गाँवकर ने, निर्देशन भी उन्हीं का है। कलाकार हैं- मेनका, मूफ़ी और ऊष्मा। जुलूस खोए हुए मुन्ना की तलाश है, मुन्ना- जो सबके लिए अलग है, जिसका वादा नेता करते हैं, जिसकी प्रतीक्षा जनता करती है, जिसकी ज़रूरत हर किसी है पर जिसकी तलाश कभी ख़त्म नहीं होती। नाटक का मूल विचार बादल सरकार के इसी नाम के नाटक से लिया गया है। आधुनिक रूप दिया है असलम परवेज़ ने और निर्देशन बिमान बोस का है। कलाकार हैं- मेनका, मूफ़ी, सबीहा, मीर, इरफान, महबूब हसन रिज़वी, डॉ. शैलेष उपाध्याय, अनुज सक्सेना और मुहम्मद अली।

प्रदर्शन स्थल है शारजाह हैरिटेज एरिया में इंस्टीट्यूट ऑफ़ थियेट्रिकल आर्ट्स का थियेटर। प्रवेश के लिए फोन कर के प्रवेशपत्रों की बुकिंग की जा सकती है। फोन नम्बर और स्थान के विषय में जानकारी के लिए कृपया पोस्टर पर क्लिक करें।

शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2009

१३ फरवरी, चौदह अंकुश और जलूस


सारी सर्दियों के बाद आज पहली बार हम साहित्य पाठ के लिए बाहर बैठे। चौपाल के दो अड्डे हैं। गर्मियों में मंदिर के भीतर एसी में और सर्दियों में बाहर धूप में। इस बार इतनी सर्दी पड़ी है कि मौसम में पहली बार बाहर बैठना हो सका है। जबकि पिछले साल हम लोग सर्दियों भर कभी भीतर बैठे ही नहीं, साहित्य पाठ सदा बाहर ही होता था।

आज के साहित्य पाठ का समय 11 बजे से था। सबीहा ने पिछली बार कहा था कि उसको 12 बजे तक का समय रिहर्सल के लिए चाहिए। प्रस्तुति का समय नज़दीक आ रहा है। इसलिए साहित्य पाठ के लिए बाहर बगीचे में बैठना ही था। इस सप्ताह शांति और कल्याण दोनों बहुत दिनों बाद आए थे। प्रकाश, डॉ.उपाध्याय और मीर ने मिलकर मन्नू भंडारी की कहानी अंकुश पढ़ी। कहानी पढ़ने और सुनने के लिए हम सात लोग ही थे। बाएँ से प्रकाश, रिज़वी साहब, मैं मीर, डॉ. उपाध्याय, रिज़वान और शांति(पीछे से)। कल्याण को रिहर्सल देखना ज्यादा पसंद है। सबीहा, मेनका, मूफ़ी और ऊष्मा नाटक में व्यस्त थे। कुछ बातचीत हुई तब तक बिमान दा, कौशिक और अली भाई आदि जलूस के सब लोग आ गए थे। सब पर प्रदर्शन का तनाव दिखाई देने लगा है। चाय में खास मज़ा नहीं आया।

चौपाल के मंदिर वाले अड्डे की तस्वीरें काफ़ी प्रकाशित हो चुकी हैं। बाहर की तस्वीरों की बारी अभी तक नहीं आई। आज पहली बार बाहर का एक चित्र प्रस्तुत है। कुछ तस्वीरे जलूस की भी ली गई थीं पर वे किसी और दिन। 10 बजे चौदह का रिहर्सल मंदिर में शुरू हो गया था। जलूस का रिहर्सल भी जारी है लेकिन उसका समय बारह बजे से था। यह रिहर्सल डेढ़ बजे तक जारी रहा।

शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2009

६ फरवरी, बड़ा थियेटर बढ़ा किराया


इस हफ़्ते चौपाल खुश है, मानो वसंत का उपहार हाथ लगा है। एक बड़ा थियेटर कम किराये पर साल भर के लिए माह में एक बार मिलने वाला है। बड़े और सुविधासंपन्न थियेटर की खुशी के साथ-साथ बढ़े हुए किराये की फ़िक्र भी है। फ़िक्र सिर्फ़ किराये की नहीं दर्शकों की भी है। चार सौ दर्शकों की क्षमता वाला हॉल भर न सका तो क्या होगा? हमने जिस तरह के कम पात्रों वाले नाटकों की तैयारी की थी उनको वहाँ किस प्रकार खेला जाएगा। हाल के पहले बड़े प्रवेश हॉल का खालीपन दूर करने के लिए हम क्या करेंगे? शो से पहले दर्शकों के प्रतीक्षा समय को किस प्रकार मनोरंजक बनाया जाएगा? थियेटर परिसर में कोई कॉफी या पेस्ट्री शॉप न होने से कितना अजीब लगेगा आदि अनेक सवालों पर आज बात हुई। बहुत दिनों बाद इतने सारे लोग जुड़े थे। नाटक की प्रस्तुति के दिन नज़दीक आते हैं तो लोग जुड़ने लगते हैं। चौदह का रिहर्सल साढ़े नौ बजे से शुरू होना था पर आज देर हुई। अच्छा यह हुआ कि आज चारों पात्र थे इसलिए थोड़ी देर तक रिहर्सल चला।


इसके बाद शुरू हुआ साहित्य के पाठ का कार्यक्रम। जैसा पहले से तय था उसीके अनुसार दो लेख और तीन कविताएँ पढ़ी गईं। चाय की ऐतिहासिक यात्रा का पाठ सुनील ने किया और झाड़ूदेवी की कथा का अनुज सक्सेना ने। (दाहिनी ओर के चित्र में अनुज झाड़ूदेवी की कथा का पाठ करते हुए।) दुश्यंत कुमार की तीन कविताओं का पाठ प्रकाश सोनी ने किया। बहुत दिनों बाद इतने लोग आए थे। अश्विन, बिमान दा, रागिनी, उष्मा, अनुज... बहुत दिनों बाद अठारह प्याले चाय बनी। चित्र में इतने लोग दिखते नहीं, समूह का एक कोना कैमरे में बंद नहीं हुआ, जहाँ डॉ.उपाध्याय, अली भाई, प्रकाश सोनी, इरफ़ान और मीर थे। कुछ हड़बड़ी सी थी शाम के हवन की। इसलिए चाय के बाद होने वाला जलूस का रिहर्सल ज़रा जल्दी बंद करना पड़ा। हाँ एक और सदस्य जो किसी फ़ोटो में नहीं पर हर रोज़ चौपाल में रहते हैं वे हैं प्रवीन सक्सेना। यहाँ प्रकाशित सारे फ़ोटो उन्हीं के लिए हुए हैं।

बुधवार, 4 फ़रवरी 2009

६ फ़रवरी के कार्यक्रम

सुबह 10:30 बजे तीन रचनाओं का पाठ होगा- 1. नवीन नौटियाल का लेख चाय की ऐतिहासिक यात्रा, 2. रमा चक्रवर्ती का लेख झाड़ू देवी की कथा और 3. दुश्यंत कुमार की तीन रचनाएँ