शनिवार, 30 मई 2009

२९ मई, दूसरा जन्मदिन


आज विशेष अवसर था चौपाल की दूसरी वर्षगाँठ का। इस उपलक्ष्य में फ़िल्म शो, आशु-अभिनय और रात्रिभोज की तैयारियाँ की गई थीं। साल भर बाद इतने लोग एक साथ मिलते हैं। लगभग ३० लोग इस बार एकत्रित हुए। साहित्य और रंगकर्मियों के परिवार भी साथ थे। सबके मन में खुशी और उत्साह था।

विशेष आकर्षण यह था कि नाटकों में जिसने जो रोल निभाए थे वे उसी परिधान और अभिनय में रहने वाले थे। शाम ७ बजे तक लॉन सज चुका था। छोटे बल्ब टिमटिमाने लगे थे और संगीत शुरू हो गया था। अंधेरा होते ही मेहमान भी आने लगे। सक्खूबाई, हवलदार, मैट्रीशिया, कोर्टमार्शल के अभिनेता सब अपने अपने रंग में... जिन लोगों ने पूरी पार्टी में अपनी रौनक बनाए रखी उसमें मूफ़ी का हवलदार और मेनका की सुक्खूबाई सबका दिल जीत कर ले गए। कोल्ड ड्रिंक और कवाब मज़ेदार रहे। खाना स्वादिष्ट था।

खाने से पहले फिल्मों के सत्र में सुनील की कुछ नायाब विज्ञापन, कुछ पुरस्कारप्राप्त छोटी फ़िल्में और कुछ अन्य छोटी रोचक फ़िल्मों को देखने का कार्यक्रम था। एक घंटे लंबे इस कार्यक्रम में सुनील के संग्रह से निकाली गई ये फ़िल्में काफ़ी पसंद की गईं। विशेष रूप से इलाना याहव की रेत कला पर आधारित फ़िल्म और छोटी फ़िल्म लिटिल टेररिस्ट। इसके बाद रात्रिभोज का कार्यक्रम हुआ और अंत में अभिनय प्रदर्शन। रागिनी का मैट्रीशिया, मेनका का सुक्खूबाई और मूफ़ी के हवलदार के एकल प्रदर्शन के बाद प्रकाश, कौशिक और कल्याण ने तुरंत दी गई एक स्थिति पर आशु-अभिनय प्रस्तुत किया। आशु-अभिनय अर्थात दृश्य, संवाद और अभिनय जिनके विषय में पहले से कलाकारों को कुछ नहीं मालूम था। उसी समय विषय दिया गया जिस पर तुरंत संवाद और अभिनय बिना किसी रहर्सल के तुरंत ५ मिनट के अंदर प्रस्तुत करना था। अभिनय के लिए पुरस्कारों की व्यवस्था भी की गई थी। निर्णायकों ने सर्व सम्मति से मेनका और कल्याण को पुरस्कार के योग्य समझा। बाद में केक काटा गया और इस तरह चौपाल की वर्षगाँठ को सबने मिलजुलकर यादगार बनाया।

रविवार, 24 मई 2009

२२ मई, दो साल पूरे होने के उपलक्ष्य में


आज का दिन कार्यशाला का दिन था। यानी सबको मिलकर कुछ रंगमंच पाठों को पढ़ना सीखना और दोहराना था। पाठ-अभिनय के, आवाज़ के और चेष्टाओं के। आज उपस्थिति कम रही, इसलिए कार्यशाला का विचार त्याग दिया गया। इस सप्ताह २५ मई को चौपाल के २ साल पूरे हो रहे हैं। पिछले साल एक साल पूरे होने पर हमने पहला मंच प्रदर्शन किया था। इस बार हम क्या करेंगे? सारी बात इसी पर केंद्रित रही।

अंत में तय यह हुआ कि अगले शुक्रवार चौपाल नहीं लगेगी। इसके स्थान पर शाम को एक पार्टी का आयोजन किया गया है जिसमें सारे अभिनेता /अभिनेत्री अपने अपने किसी चरित्र की वेशभूषा में पधारेंगे और उसी में रहने का प्रयत्न करेंगे। रात्रि भोज तो होगा पर शाम साढ़े सात से साढ़े दस तक के लंबे समय में लोग नाटक के चरित्र में कितनी देर रह पाते हैं यह देखना रोचक रहेगा। फोटो में बाएँ से- मेनका, सबीहा, रागिनी, कल्याण, प्रकाश, कौशिक, दिलीप परांजपे,सुनील, अश्विन और मैं।

शनिवार, 16 मई 2009

१५ मई, बार-बार दिन ये आए


१५ मई को तीन रचनाओं का पाठ होना था। निर्मल वर्मा की कहानी "डेढ़ इंच ऊपर" और अंतोन चेखव के दो एकांकी "द बियर" और "द गुड डॉक्टर" के हिन्दी रूपांतर का। किसी कारण से चेखव के नाटकों का हिंदी रूपांतर नहीं हो सका था। डॉ. उपाध्याय ने डेढ़ इंच ऊपर का भाव पाठ किया। चेखव के एक नाटक का पाठ कविता, कल्याण और अश्विनी ने किया।

आज बहुत से लोग आए थे। संजय और अर्चना पहली बार आए। संजय शारजाह में पिछले एक साल से हैं जबकि अर्चना को आए अभी ३ महीने ही हुए हैं। बहुत दिनों बाद अली भाई आए थे। एक और सदस्य बहुत दिनों बाद आया। अन्य लोगों में रागिनी, रिज़वी साहब, प्रकाश, कौशिक, मूफ़ी, सबीहा और शांति थे। आज डॉ साहब का जन्मदिन था। वे कुछ मिठाइयों के साथ आए थे- पारंपरिक तरबूज और सेब वाली मिठाइयाँ साथ में मार्स के विलायती चॉकलेट। कौशिक केक लाए थे। फिर क्या था, केक कटा और गाया गया बार बार दिन ये आए... चाय तो थी ही।

रागिनी और दिलीप परांजपे २८ मई को "घर की मुर्गी" प्रस्तुत कर रहे हैं। २६ और २७ को एक बंगाली और एक मराठी नाटक होंगे। सबने अपने अपने नाटकों की घोषणा की। थियेटरवाला की अगली बुकिंग ११ जून की है। उसके लिए हम-तुम नामक एक घंटे का नाटक तो तैयार है पर दूसरे के निश्चय अभी तक नहीं हो सका है शायद अगली गोष्ठी तक हो जाए। चित्र में जन्मदिन का हुल्लड़ :-) मचाते कविता, डॉ. साहब, अश्विन, रागिनी और अली भाई।

रविवार, 10 मई 2009

८ मई, छुट्टी का दिन

७ मई को बड़े भाई साहब और दस्तक का प्रदर्शन था। जिस दिन कोई प्रदर्शन होता है उसके अगले दिन छुट्टी रहती है। यानि शुक्रवार चौपाल नहीं लगती। इस हिसाब से शुक्रवार ८ मई, छुट्टी का दिन था। छुट्टी के बावजूद लोग खुश नहीं थे। सबका मन उदास उदास। कारण था कि पिछले दो सालों से जिस चीज़ का कभी अनुभव नहीं हुआ उसे आज झेला था। प्रदर्शन अच्छा हुआ था। दर्शकों से बात हुई। सबने प्रशंसा के शब्द कहे लेकिन दर्शकों की उपस्थिति कम थी हॉल पूरा भरा नहीं। दुबई में एक बॉलीवुड सितारे के नाटक के कारण ज्यादातर भीड़ वहीं थी। ३०० दर्शकों को क्षमता वाले इस हॉल में १०० लोग भी नहीं आए थे। यह दिन भी एक न एक दिन देखना तो था। हम पैसे बचाने के लिए साल भर की तारीखें एक साथ बुक करते हैं और इस बीच अगर कोई बड़ा कार्यक्रम उसी दिन आ पड़ा तो उसका नुक्सान तो हमें ही उठाना पड़ेगा। बाद में तारीख बदलना संभव नहीं होता है। खैर खुशी की बात यह थी कि प्रदर्शन अच्छा रहा। अगले शुक्रवार फिर मिलना है और एक और नाटक का मंचन होना है। इस प्रकार के अनुभव सुखद तो नहीं होते पर जीवन का पाठ ज़रूर पढ़ाते हैं। शारजाह में हिंदी नाटकों का परिदृश्य नया नया ही है। इसकी कोई पृष्ठभूमि नहीं है नियमित नाटकों के मंचन से हम यहाँ दर्शकों को निर्माण करें और एक हिंदी नाटकों की एक स्वस्थ परंपरा स्थापित करें यही लक्ष्य है और इस दिशा में हमारा प्रयत्न सदा बना रहे ईश्वर से यही प्रार्थना है। इस प्रदर्शन के फ़ोटो अभी नहीं आए हैं आते ही प्रदर्शित करेंगे। प्रकाश ने सबको धन्यावाद संदेश भेजे फिलहाल वही संदेश ब्लॉग के पाठकों लिए यहाँ प्रस्तुत है।

शनिवार, 2 मई 2009

१ मई, तैयारियाँ-तैयारियाँ

दस्तक और बड़े भाई साहब की तैयारी पूरी हो चुकी है। पोस्टर और निमंत्रण पत्र छप कर आ गए हैं। यह प्रस्तुति ७ मई को होनी है। प्रस्तुति के पहले की बहुत सी बातें आज की चौपाल का हिस्सा बनीं। पोस्टर की एक प्रति हमारे पाठकों के लिए प्रस्तुत है। प्रवेश पत्र पाने की विस्तृत जानकारी इन पोस्टरों में है। बड़े भाई साहब कथा सम्राट प्रेमचंद की कालजयी रचना है। छोटे भाई द्वारा कही गई दो भाईयों की इस कहानी में दोनों भाइयों की मनोरंजक तुलना है जिसमें स्नेह, आदर्श, विरोधाभास और संवेदना के ढेरों रंग है। दो भाइयों के दैनिक जीवन से जुड़ी इस कहानी में परंपरा और आधुनिकता का टकराव के साथ वर्तमान शिक्षा प्रणाली पर करारा व्यंग्य भी देखने को मिलता है। हास्य और व्यंग्य से भरपूर यह नाटक बच्चों पर पढ़ाई के दबाव और उसके मनोविज्ञान को भी रोचकता से बयान करता है।

दस्तक के विषय थोड़ी जानकारी पहली प्रस्तुति के समय यहाँ दी जा चुकी है। ज्यादा जानकारी तो नाटक देखकर ही मिल सकेगी। आज काफ़ी लोग उपस्थित थे। हालाँकि मीर के न आने से बड़े भाई साहब का रिहर्सल नहीं हो सका। इस नाटक में दो ही लोग हैं। कभी भी रिहर्सल हो सकता है तो परेशानी की विशेष कोई बात नहीं वैसे भी रिहर्सल तो आजकल रोज़ चल रहे हैं। आज हमारे बीच रंगमंच से स्नेह रखने वाला एक नया चेहरा था प्रिया का। इसके अतिरिक्त प्रकाश, कौशिक, डॉ.उपाध्याय, मूफ़ी, अश्विनि, रागिनी, सबीहा, संग्राम, मेनका और ज़ुल्फ़ी उपस्थित थे। हाँ एक और चेहरा भी था जिसका नाम पूछना फिर रह गया... ख़ैर फिर कभी। आज दस्तक के रिहर्सल के बाद निर्मल वर्मा की कहानी वीकएंड का पाठ हुआ। यह कहानी तीन एकांत का हिस्सा है। निर्मल वर्मा की तीन कहानियों ‘धूप का एक टुकड़ा’, ‘डेढ़ इंच ऊपर’ और ‘वीकएंड’ की मंच-प्रस्तुति देवेंद्र राज के निर्देशन में तीन एकांत शीर्षक से की गई थी। शायद तीन एकांत जैसा कुछ थियेटरवाला की आगामी किसी प्रस्तुति में देखने को मिले।