शनिवार, 26 सितंबर 2009

२५ सितंबर, साथियों की वापसी


ईद के बाद यह पहला शुक्रवार था। बहुत से लोगों के आने की उम्मीद थी लेकिन लगता है लोग अभी त्योहार के नशे से उबरे नहीं हैं। डॉ.उपाध्याय आज सबसे पहले पहुँचे। हालाँकि प्रकाश आमतौर पर सबसे पहले आते हैं लेकिन वे घर बदलने की वयस्तताओं में हैं, इस बार उनका आना संभव नहीं हुआ। सबीहा समय से आने वालों में हैं पर इस बार वे कुछ देर से आयीं। बहुत दिनों से गायब मूफ़ी को देखकर सबके चेहरे पर खुशी छा गई। थोड़ी ही देर में मेनका भी आ गयीं। बस अपनी चौकड़ी पूरी हो गई। तमाम दिनों से बंद बातों का डिब्बा खुल गया। अगली प्रस्तुति के विषय में तो बात हुई ही तमाम ऐसी बातें भी हुईं जो नाटक या चौपाल से संबंधित नहीं थीं। टीवी सीरियलों की बातें, नई फ़िल्मों की बातें और भी बहुत सी बातें। आज के कार्यक्रम में हमें अशोक लाल का नाटक आम आदमी... पढ़ना था लेकिन पात्र पूरे ने होने के कारण हमने गुलज़ार की कहानी धुआँ और भीष्म साहनी की कहानी चीफ़ की दावत पढ़ी। मेनका कभी चाय नहीं पीती हैं। सबीहा भी तबतक चाय पीना पसंद नहीं करतीं जबतक रिहर्सल की थकान न हो। चाय के लिए मना न करने वालों में आज सिर्फ दो लोग थे डॉ.उपाध्याय और मूफ़ी, यानि बहुमत में दम नहीं था। सबीहा ने बीच का रास्ता अपनाया और बोलीं के वे बिना दूध की चाय पी सकती हैं जिसे यहाँ की भाषा में सुलेमानी कहते हैं। फिर तो सभी सुलेमानी के लिए तैयार हो गए। चौपाल में आज पहली बार सुलेमानी की बहार रही। जिस सहज मंदिर में चौपाल लगती है वहाँ कुछ कुर्सियाँ भी रहती हैं। कुछ लोग हैं जो ज़मीन पर बैठकर ध्यान नहीं कर सकते। आज हम कुछ ही लोग थे तो कुर्सियों पर ही बैठ गए। चित्र में बाएँ से-डा.उपाध्याय, मूफ़ी, सबीहा और मेनका। फोटो प्रवीण सक्सेना ने ली है। बहुत दिनों से दुबई मेल नहीं आयी है। शायद वे अगली बार से चौपाल में शामिल होना शुरू करें। इस अगले सप्ताह से मैं तीन हफ़्ते की छुट्टी पर हूँ सबीहा ने वादा किया है कि वे चौपाल लिखना जारी रखेंगी। मूफ़ी का केटरिंग का व्यवसाय है। चाय उनके ज़िम्मे रहेगी। किसी कारण से वे न आ सके तो डॉ.उपाध्याय का सौजन्य तो है ही। कमरा खोलने और एसी चालू करने का काम निज़ाम करेगा। बस इसी बात पर हमने विदा ली।

शनिवार, 19 सितंबर 2009

१८ सितंबर, सफल सप्ताह

यह सप्ताह चौपाल के बहुत से सदस्यों के लिए असीमित व्यस्तताओं से भरा रहा। रमज़ान की चहल-पहल, नौकरी की भाग-दौड़ और इस सब के साथ इंडियन स्कूल में कहानी संक्रमण की प्रस्तुति के लिए डॉ. उपाध्याय,प्रकाश, सबीहा और कौशिक को काफ़ी भागदौड़ का सामना करना पड़ा। अंतिम समय पर कल्याण और संग्राम भी सहयोग के लिए आ मिले तो प्रदर्शन अच्छा रहा। सब खुश थे। दूतावास से कौंसलाधीश और सांस्कृतिक सचिव की उपस्थिति ने अभिनेताओं को खासा रोमांचित किया। साथ के चित्र में प्रदर्शन से पहले ग्रीनरूम से बाएँ से डॉ.उपाध्याय, प्रकाश, संग्राम, सबीहा, कल्याण और त्रिवेणी। कौशिक तब तक पहुँचा नहीं था, सुबह की भाग दौड़ वाली व्यस्त सड़कों पर ट्रैफ़िक के बीच से उसका फ़ोन ज़रूर आ गया था। अच्छा यह रहा कि नाटक से पहले कुछ और भी कार्यक्रम थे और वह समय से पहुँच गया। प्रस्तुति के कुछ चित्र डॉ.उपाध्याय ने पिकासा पर यहाँ रखे हैं, कुछ लोगों को रोचक लगेंगे।

इस शुक्रवार चौपाल में बंगलुरु के रंगकर्मी और साहित्यकार मथुरा कलौनी के आतिथ्य का अवसर मिला। वे पिछले कई सालों से हिंदी रंगमंच के विकास में महत्त्वपूर्ण काम कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त वे नाटक, कविता और कहानियाँ भी लिखते रहे हैं। अभिव्यक्ति में भी उनकी रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं। इस बार चौपाल में उनके हाल ही में मंचित नाटक खराशें की वीडियो रेकार्डिग देखाई गई। उनसे कविता सुनी और प्रकाश सोनी ने उनकी कहानी 'एक दो तीन' का पाठ किया। कहानी खासी रोचक थी और सबने इसका मज़ा लिया। बाद में सबने मिलकर खाना खाया। चौपाल में दो नाटकों की विशेष चर्चा रही। 'खराशें' और 'कब तक रहें कुँवारे'। दोनो ही नाटक मथुरा कलौनी जी के हैं। खराशें जहाँ राष्ट्रीय और सामाजिक समस्याओं को लेकर बुना गया विचारोत्तेजक नाटक है वहीं कब तक रहें कुँवारे हास्य व्यंग्य से परिपूर्ण है। कब तक रहें कुँवारे की एक कव्वाली काफ़ी रोचक रही थी। इस कव्वाली को यहाँ देखा जा सकता है। खराशें का एक दृश्य यहाँ देखा जा सकता है। कार्यक्रम के अंत में हमने कलौनी जी को थियेटरवाला की ओर से प्रस्तुत कुछ नाटकों के सी.डी. भेंट किए। आज के कार्यक्रम में उपस्थित थे अतिथि साहित्यकार श्री मथुरा कलौनी, डॉ. शैलेश उपाध्याय, प्रकाश सोनी, सबीहा मजगाँवकर, कौशिक साहा, प्रवीण सक्सेना, दिलीप परांजपे, कल्याण चक्रवर्ती और त्रिवेणी शेट्टी।

नवरात्र हैं और डाँडिया की धूम इमारात में भी खूब रहती है। इस अवसर पर सबके मनोरंजन के लिए हमारे सदस्य दिलीप परांजपे ने अजमान बीच होटल में डाँडिया का आयोजन किया है। यह आयोजन इसलिए भी विशेष है कि यह शतप्रतिशत असली डाँडिया है जिसमें डाँडिया नचवाने वाला एक पारंपरिक ग्रुप भारत से बुलाया गया है। यानी सिर्फ रेकार्ड नहीं बजेंगे। लाइव संगीत होगा। 23, 24, 25 और 26 की शाम 9 से 12 तीन घंटे लगातार चलने वाले इस धूमधाम भरे कार्यक्रम में भाग लेने वालों के लिए विस्तृत जानकारी साथ के पोस्टर को क्लिक कर के देखी जा सकती है।

शनिवार, 12 सितंबर 2009

११ सितंबर, तैयारियाँ हिंदी दिवस की


इस बार चौपाल का विशेष कार्यक्रम आगामी नाटक का रिहर्सल रहा। दरअसल यह नाटक नहीं है बल्कि कामतानाथ की कहानी संक्रमण का मंचन है। कहानी में कोई परिवर्तन या नाट्य रूपांतर नहीं किया गया है। ज़रूर मंचन की दृष्टि से मंच सज्जा की गई है और पत्रों को अभिनय और संचालन दिए गये है। प्रकाश और ध्वनि की व्यवस्था भी की गई है। यह मंचन हिंदी दिवस के अवसर पर इंडियन हाई स्कूल और भारतीय दूतावास द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में होना है। नाटक लगभग तैयार है। कुछ परिवर्तनों के साथ इसे प्रस्तुत किया जाना है। भूमिकाओं में भी परिवर्तन हुए हैं। सब कुछ मिलाकर रिहर्सल अच्छा रहा। सबको संवाद और मूवमेंट्स याद थे। पिता की भूमिका में हैं डॉ. शैलेष उपाध्याय, पुत्र की भूमिका में हैं कौशिक साहा और माँ की भूमिका सबीहा निभा रही हैं। निर्देशन प्रकाश सोनी का है। साथ के चित्र में वे सबीहा को कुछ समझाते हुए।

आज की चौपाल कुछ देर से शुरू हुई थी- प्रकाश और कौशिक की प्रतीक्षा में। प्रकाश बूँदी के लड्डू लाए थे। मन्नत मुंबई से शारजाह आ गई है, इसी खुशी में। कौशिक ने कहा सिर्फ मिठाई से काम नहीं चलेगा। तो इस बार चाय के साथ मिठाई और नमकीन भी रहे। ऐसे मौके रोज़ तो नहीं आते। सबीहा ने बताया बिमान दा भी दुबई लौट आए हैं। काफ़ी लोग अभी भी देश विदेश घूम रहे हैं। आज की चौपाल में थे डॉ. उपाध्याय, प्रकाश सोनी, कौशिक साहा, सबीहा मजगाँवकर और मैं। लगता है ईद तक कम लोग ही आएँगे चौपाल में। देखते हैँ अगली बार कैसा रहता है। आशा रखें 15 सितंबर का कार्यक्रम अच्छा रहे।

शनिवार, 5 सितंबर 2009

४ सितंबर की चौपट चौपाल


बहुत दिनों बाद इस बार चौपाल चौपट रही। इसके कई कारण हैं। रमज़ान का महीना शुरू हो चुका है और इसके प्रारंभिक दिनों में इफ़्तार से पहले कोई घर से निकलना नहीं चाहता है। मौसम भी गर्म है। लंबी छुट्टियों के बाद यह दूसरी चौपाल थी और छुट्टियों से लौटे लोगों का मन अभी एकाग्र नही हुआ है। तीसरे ओम प्रकाश सोनी जिन्हें हम प्यार से प्रकाश कहते हैं और जो इस थियेटरवाला की रीढ़ हैं, अपनी नवजात बिटिया और परिवार को लाने भारत गए हैं। एक और कारण भी था सदस्यों की अनुपस्थिति का-- इस सप्ताह शुक्रवार चौपाल से पहले दो आकस्मिक गोष्ठियाँ और हो चुकी थीं। आकस्मिक इस लिए कि इंडियन हाई स्कूल दुबई की कांता भाटिया ने फ़ोन किया कि इंडियन स्कूल और भारतीय दूतावास के सौजन्य से 14 सितंबर को हिंदी दिवस का आयोजन किया जा रहा है। इस अवसर पर उनके थियेटर के लिए एक घंटे का नाटक चाहिए। इंडियन स्कूल दुबई का थियेटर इमारात के सबसे अच्छे थियेटरों में से है। वहाँ प्रस्तुति देना सुखद होता है। सहायक वस्तुओं (प्रॉप्स) का भंडार, प्रकाश और ध्वनि व्यवस्था, मंच के दोनों और बने, खुले खुले ग्रीन रूम, और ग्रीन रूम से बाहर ही बाहर स्कूल की बढ़िया कैंटीन तक जाने का रास्ता इसे दूसरे थियेटरों से अलग करते हैं। प्रेक्षागृह की क्षमता भी अधिक है शायद 1000 के आसपास होगी। हॉल बड़ा हो और पूरा भरा हो तो अभिनेताओं को अभिनय का असली मज़ा मिलता है।

हाँ तो बात नाटक की हो रही थी। हिंदी दिवस पर नाटक खेलना है तो किसी हिंदी साहित्यिक कृति पर ही होना चाहिए। समय कम है वर्ना कोई नया नाटक भी खेला जा सकता था। हमें कौन सा पुराना नाटक खेलना है उसमें कौन-कौन अभिनय कर रहा है। क्या अभिनेताओं में कोई मुस्लिम भी हैं और अगर हैं तो क्या वे रिहर्सल पर आ सकेंगे यह बात निश्चित करने के लिए आकस्मिक गोष्ठियाँ बुलानी पड़ी थीं। नाटक चुन लिया गया है। प्रकाश सोनी जिस भूमिका में अभिनय करते थे उसे कौशिक साहा करेंगे। संवाद के पृष्ठों का आदान प्रदान आदि भी हो गया। बस इसी सबके चलते शुक्रवार चौपाल में इस बार डॉ उपाध्याय को छोड़कर कोई नहीं आ सका। हम हिंदी दिवस पर कौन सा नाटक खेल रहे हैं और नाटक कैसा रहा इसकी सूचना अगले शुक्रवार तक स्थगित रखती हूँ। फोटो इस बार नहीं खिची इसलिए संक्रमण का एक पुराना चित्र प्रस्तुत है। यह चित्र पिछले साल दुबई में समकालीन साहित्य सम्मेलन, के अवसर पर 30 जुलाई 2008 को लिया गया था। यह मंचन बिना प्रकाश और ध्वनि के नुक्कड़ नाटक की तरह खेला गया था। चित्र में बाएँ से डॉ.शैलेष उपाध्याय, सबीहा मज़गाँवकर (बैठे हुए) और ओम प्रकाश सोनी।