शनिवार, 28 नवंबर 2009

२७ नवंबर, बकरीद की छुट्टी

बकरीद का उपलक्ष्य में इस शुक्रवार चौपाल की छुट्टी रही। अगली चौपाल ४ दिसंबर को लगेगी। तब फिर से उपस्थित होंगे नये समाचारों के साथ।

शनिवार, 21 नवंबर 2009

२० नवंबर, प्रो. हिज़बिज़बिज़


आज की चौपाल के विशेष आकर्षण रहे प्रो. हिज़बिज़बिज़। सब लोग नहीं जानते हैं कि सत्यजित राय ने रहस्य और रोमांच से भरपूर अनेक कहानियाँ लिखी हैं। प्रो. हिज़बिज़बिज़ ऐसी ही एक कहानी थी। उनकी लिखी ऐसी एक कहानी फ्रिंस हम पहले ही पढ़ चुके हैं।

उपस्थिति आज भी कम रही। कुछ तो इसलिए कि सब लोग बकरीद की तैयारियों में व्यस्त हैं। दूसरे २१ की शाम शारजाह लेडीज़ क्लब के लिए थियेटरवाला और इन टू आर्ट की ओर से गेंडा-फूल का मंचन भी होना था। कुछ लोग उसके रिहर्सल में व्यस्त रहे। आज उपस्थित लोगों में थे- सबीहा, प्रकाश, प्रवीण और मैं। प्रवीण जी का कैमरा आज नहीं चला सेल ठीक से चार्ज नहीं हुए थे इसलिए आज की फोटोग्राफ़र बनीं सबीहा। चित्र में बाएँ से प्रवीण सक्सेना, प्रकाश सोनी और मैं।

रविवार, 15 नवंबर 2009

१३ नवंबर और तीन कहानियाँ


आज की चौपाल में तीन अनूदित कहानियों के पाठ का कार्यक्रम था। वर्षा अडलाज़ा की गुजराती कहानी का हिंदी रूपांतर 'चाँद के उजाले में', जिसे डॉ. लता ने पढ़ा, अमर जलील की सिंधी कहानी का हिंदी रूपांतर 'तारीख का कफ़न' जिसे डॉ. उपाध्याय ने पढ़ा और शांताराम सोमयाजी की कन्नड़ कहानी 'पानी पर चलनेवाला' जिसे प्रकाश सोनी ने पढ़ा। उपस्थित लोगों में थे- डॉ लता, डॉ उपाध्याय, प्रकाश सोनी, मैं, प्रवीन और मेनका।

साहित्य पाठ में रुचि रखनेवाले सदस्य कम ही हैं। फिर आजकल मौसम भी सुहावना हो चला है, सारे दिन ट्रैकिंग और सैर सपाटे का मौसम इमारात में लंबा नहीं होता। इसलिए सुहावने मौसम को छोड़कर साहित्य पढ़ने के लिए आना तब तक संभव नहीं जबतक इसमें गहरी रुचि न हो। चौपाल के अनेक सदस्य एक ट्रैकिंग समूह से जुड़े हैं। आज का उनका दिन यहाँ अनुपस्थिति का रहा। मौसम की मेहरबानी के कारण हम भी सहज मंदिर की बजाय बाहर लॉन के सामने बने बरामदे में बैठे। चित्र में बाएँ से मेनका, डॉ.लता, मैं, प्रकाश सोनी और डॉ.उपाध्याय। फोटो प्रवीण सक्सेना ने लिया।

शनिवार, 7 नवंबर 2009

६ नवंबर, हँसी और जिंदगी


आज की चौपाल हलचल और रौनक वाली थी। काफ़ी लोग आए हुए थे और एक छोटे एकांकी के मंचन का कार्यक्रम भी था। लोगों का आना ज़रा जल्दी शुरू हुआ। एकांकी के कलाकार एक बार अभ्यास करना चाहते थे। लेकिन जब तक सारे अभिनेता इकट्ठा होते अन्य सदस्य भी आने शुरू हो गए थे, इसलिए अभ्यास नहीं किया गया। बहुत दिनों बाद चौपाल में 16 लोग थे। सबका एकत्र होना अच्छा लगा। प्रकाश के आते ही साहित्य पाठ का कार्यक्रम शुरू हो गया। मनोहर सहदेव की व्यंग्य रचना 'कागज के रावण मत फूँको' तथा हरिशंकर परसाईं की 'बोर' का पाठ किया गया।


इसके बाद चाय हुई और उसके बाद एकांकी हँसी और जिंदगी का प्रदर्शन हुआ। यह नाटक एक नुक्कड़ नाटक जैसा था जिसमें जीवन में हँसी और खुशी के महत्त्व को दर्शाया गया था। उपस्थित लोगों में डॉ. लता, अनुपमा, हेमंत और बाबर पहली बार आए थे। आमिर की पत्नी भी बहुत दिनों बाद चौपाल में आयीं। कुल मिलाकर सब कुछ आनंददायक रहा। कार्यक्रम के कुछ चित्र यहाँ प्रस्तुत हैं। सबसे ऊपर वाले चित्र में नाटक के कलाकारों में हैं- बाएँ से - मीर, इरफान, डॉ.उपाध्याय, कौशिक, बाबर, मेनका, सबीहा, अनुपमा, हेमंत और दिलीप परांजपे। दाहिनी ओर के चित्र में एकांकी का एक दृश्य है और उससे नीचे का चित्र व्यंग्य पाठ के अवसर का है।


कार्यक्रम के बाद कुछ पल विचार विमर्श के रहे। अगले सप्ताह की प्रस्तुति, गेंडाफूल के आगामी प्रदर्शन और कलाकारों की डेट्स की समस्याएँ। बहुत बार पुराने नाटक की प्रस्तुति के समय भी किसी न किसी कलाकार की अनुपस्थिति के कारण नए कलाकार को वह भूमिका करनी होती है। एक तरह से यह अच्छा ही है एक ही पात्र को जब दो लोग निभाते हैं तो नाटक में कुछ न कुछ नया पन भी आ जाता है। कुछ ऐसी ही व्यवस्था आगे होने वाले कुछ नाटकों के लिए की गयी। महर्रम और बकरीद आने वाले हैं। संयुक्त अरब इमारात का राष्ट्रीय दिवस भी पास ही है। ऐसे में छुट्टियों की भारमार है। सब घर में रहना चाहते हैं कोई बाहर आकर रिहर्सल में शामिल होना नहीं चाहता। इस सबके चलते अगला बड़ा प्रदर्शन फरवरी से पहले होने की उम्मीद नहीं।