रविवार, 27 दिसंबर 2009

२५ दिसंबर, आगमन महेन्द्र दवेसर 'दीपक' का

२५ दिसंबर को चौपाल में लंदन में रहने वाले हिंदी लेखक महेन्द्र दवेसर दीपक के आतिथ्य का अवसर मिला। क्रिसमस का दिन था और सुबह तेज़ बारिश हुई थी। लगता था आज चौपाल खुले में नहीं लग सकेगी। सब लोग भी पता नहीं आ सकें या नहीं। सर्दियों के ऐसे सुंदर दिन बहुत कम समय के लिए आते हैं जब हम खुले में चौपाल लगा सकें। आज सुबह घनी बारिश हुई थी। लेकिन चौपाल के समय तक पानी खुल गया और हल्की धूप निकल आयी जिसके कारण मौसम सुहावना बना रहा। सबसे पहले डॉ.उपाध्याय आए फिर मेनका और कौशिक भी आ गए, मैं और प्रवीण जी थे ही। हम प्रकाश और दीपक जी की प्रतीक्षा में थे। भारतीय विदेश सेवा के अवकाश प्राप्त अधिकारी महेन्द्र दवेसर दीपक अपना 80वाँ जन्मदिन मनाने सपरिवार दुबई की यात्रा पर थे। उनको चौपाल तक लाने और वापस ले जाने का सौजन्य प्रकाश सोनी निभा रहे थे। जल्दी ही वे लोग आ पहुँचे और चौपाल का कार्यक्रम प्रारंभ हुआ।

उपस्थित सदस्यों में प्रकाश के अतिरिक्त थे डॉ. शैलेष उपाध्याय, मेनका, कौशिक साहा और प्रवीण सक्सेना। दीपक जी के तीन कहानी संग्रह प्रकाशित हुए हैं- पहले कहा होता, बुझे दिये की आरती और अपनी अपनी आग। उन्होंने चौपाल में अपनी अपनी आग संग्रह में से दो कहानियों का पाठ किया ये कहानियाँ थीं- नहीं... और सूखी बदली। कहानियों पर चर्चा हुई और हमने इमारात के नाट्य परिदृश्य के विषय में दीपक जी को बताया। इसके पहले निश्चित कार्यक्रम के अनुसार प्रकाश सोनी ने अमृतलाल नागर की कहानी पड़ोसन की चिट्ठियाँ पढ़ी और डॉ. उपाध्याय ने खुसरों की कहमुकरियाँ। हमेशा की तरह चाय के साथ लगभग दोपहर के एक बजे चौपाल समाप्त हुई।

शनिवार, 19 दिसंबर 2009

१८ दिसंबर, सफल मंचन के संतोष का अवकाश

१७ दिसंबर को भारतीय दूतावास, आबूधाबी में संक्रमण और गैंडाफूल के मंचन से कलाकार और दर्शक दोनो संतुष्ट दिखे। इस कार्यक्रम की योजना काफ़ी पहले से बन चुकी थी लेकिन काफ़ी परेशानियों से गुज़रना पड़ा। कलाकारों की व्यक्तिगत व्यस्तताएँ और यात्राएँ नाटकों के पूर्वाभ्यास को डाँवाडोल करती रहीं। संक्रमण में सबीहा द्वारा अभिनीत भूमिका में इस बार रागिनी थीं। उनके फ़ेसबुक प्रोफ़ाइल से लगता है कि उनका अभिनय दर्शकों द्वारा काफ़ी पसंद किया गया। कार्यक्रम की समाप्ति पर प्रकाश का फोन भी आया था। वे भी प्रसन्नचित्त और संतुष्ट मालूम होते थे। चित्र अभी नहीं आए हैं जैसे ही आएँगे लिंक यहाँ देने का प्रयत्न करेंगे।

इस कार्यक्रम का आयोजन आबूधाबी में होना था, जिसके लिए इमारात के जानेमाने, कथाकार कवि और 'निकट' के संपादक कृष्ण बिहारी ने दूतावास के साथ मिलकर ज़ोरदार तैयारियाँ की थीं। दूतावास का थियेटर पारंपरिक थियेटर नहीं है तो भी कलाकारों को वहाँ अभिनय कर संतुष्टि मिली, यह बड़ी उपलब्धि दोनो नाटक दर्शकों ने पसंद किए और जी भर कर सराहना मिली। आयोजन के सफल संचालन और सुव्यवस्था में दूतावास के साथ कृष्ण बिहारी के व्यक्तिगत प्रयत्नों का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा। कार्यक्रम के बाद रात्रिभोज की व्यवस्था थी जिसके कारण शारजाह और दुबई के कलाकारों को घर लौटते काफ़ी रात हो गई थी। वैसे भी कड़ी मेहनत और सफल कार्यक्रम के उपलक्ष्य में एक दिन की छुट्टी तो बनती ही है। कुल मिलाकर यह कि १८ दिसंबर को सफल मंचन के संतोष में चौपाल की छुट्टी रही।

रविवार, 13 दिसंबर 2009

११ दिसंबर, पूर्वाभ्यास का दिन

१७ दिसंबर को भारतीय दूतावास, आबूधाबी में संक्रमण और गैंडाफूल के मंचन का कार्यक्रम है। इनके पूर्वाभ्यास के लिए सबको ११ तारीख की सुबह साढ़े दस बजे मिलना था। लेकिन... एक तरफ मौसम कुछ सुस्त रहा और कलाकारों की व्यस्तता कुछ तेज़। संक्रमण में माँ की भूमिका निभानेवाली कलाकार सबीहा छुट्टी पर भारत में हैं उनके स्थान पर रागिनी अभिनय करेंगी। इस परिवर्तन के कारण लगातार रिहर्सलों की ज़रूरत है। गेंडाफूल की एक कलाकार कविता भी भारत की यात्रा पर जाने वाली हैं। अगर ऐसा हुआ तो उनका स्थान मेनका लेंगी। सब अनुभवी कलाकार हैं पर संवादों को याद करना और उसमें घुलकर अभिनय का बाहर आना इसमें समय लगता है।

पिछले एक कार्यक्रम से टीम को संतोष नहीं हुआ था। आशा है यह कार्यक्रम उससे बेहतर रहेगा। सारे कलाकार न हों तो पूर्वाभ्यास ढंग से नहीं होता। इस कारण आज भी बाकी कलाकार अभ्यास की मनःस्थिति तक नहीं पहुँच सके। प्रकाश ने नेमिचंद्र जैन द्वारा किया गया मोहन राकेश के नाटकों का संग्रह खोला और आधे अधूरे का पाठ शुरू किया। कुछ देर बाद मैं पहुँची फिर मेनका और प्रवीण जी भी आ गए। गेंडाफूल की डावाँडोल परिस्थितियों को देखते हुए ज़रूरी समझा गया कि इसकी स्क्रिप्ट की फोटोकॉपी मेनका को दे दी जाय। प्रकाश उसकी फोटोकॉपी कराने बाहर गए। इस बीच डॉ. उपाध्याय और मैने हरिशंकर परसाईं की कुछ व्यंग्य रचनाओं का पाठ किया। प्रकाश लौटे तो बारिश के हल्के छींटे गिरने लगे थे। मैं चाय बनाने के लिए उठी और मेनका व प्रकाश गेंडाफूल का पाठ करने लगे। फ्रिज में अदरक नहीं थी सो इस बार सिर्फ इलायची से काम चलाना पड़ा। इमारात में चाय तो सभी पीते हैं पर बारिश का मज़ा कभी कभी ही आता है। इस दृष्टि से आज का दिन सफल रहा।

गुरुवार, 3 दिसंबर 2009

४ दिसंबर, उजालों से छिटका सूरज


इस सप्ताह चौपाल का विषय था- नाट्य-पाठ। नाटक का नाम - "उजालों से छिटका सूरज" यह नाटक रोबर्ट एन्डरसन के नाटक टी एंड सिंपेथी का हिंदी रूपांतर है। रूपांतरकार हैं जितेन्द्र कपूर, लेकिन ऐसा अक्सर होता है कि जो विषय तय किया जाता है उस पर बात नहीं होती या हो पाती। चर्चा का प्रारंभ पिछले हफ्ते हुए गेंडाफूल के प्रदर्शन से हुआ। प्रति माह एक नाटक करने का जो नियम हमने बनाया था उसमें कभी कदा रुकावट आई है। इसको कैसे दूर किया जाय इस बात पर बात हुई। कुछ नाटक जब दुबारा होते हैं तब उनके प्रदर्शन में कुछ ढीलापन देखने में आता है। उसके क्या कारण हैं और उनको दूर कैसे किया जाय इस विषय पर भी बात हुई। पिछले दिनो जिस थियेटर को नियमित रूप से बुक करते थे उसका प्रबंधन बदलने के बाद उसका खर्च दुगने से भी ज्यादा हो गया है इसलिए नाटक करने के लिए किसी नयी जगह की तलाश भी अभी तक पूरी नहीं हुई है।

कुछ लोगों का विचार है कि हम होटलों की बार का प्रयोग इसके लिए कर सकते हैं। जहाँ मंच और बैठने की सुविधा तो होती ही है चाय की सुविधा भी मिल जाती है। प्रकाश और ध्वनि की वैसी व्यवस्था तो नही होती जैसी थियेटर में होती है। स्पाट लाइट नहीं होती, डिम की जाने वाली प्रकाश व्यवस्था भी नहीं होते। फेड आउट के स्थान पर स्विच ऑन-ऑफ करने पड़ते हैं। यहाँ इस प्रकार के होटल साफ सुथरे व्यवस्थित और आकर्षक होते हैं और दिन में बार खाली भी रहती है इस कारण कम खर्च में मिल जाती है। लेकिन कुछ लोगों की धारणा इनके विषय में ठीक नहीं है। उनका कहना है कि जब ताकतवर नीग्रो सुरक्षा गार्ड पार्किंग में आपकी कार को बाज़ दृष्टि से देखते हुए सख्ती से ठीक पार्किंग के आदेश देते हैं तो अच्छा नहीं लगता। खैर देखते हैं सबका निर्णय क्या होता है और काम आगे कैसे बढ़ता है। हमने प्रति सप्ताह चौपाल में एक 5 से 10 मिनट की प्रस्तुति का निर्णय भी लिया है। अगली बार डॉ.उपाध्याय शरद जोशी का एक व्यंग्य प्रस्तुत करेंगे। देखते हैं यह प्रयोग कितना रचनात्मक सिद्ध होता है। आज आने वालों के चित्र दाहिनी ओर हैं। सभी पुराने बलॉग पढ़नेवाले साथी इन्हें अब तक ठीक से पहचनाने लगे हैं फिर भी सुविधा के लिए बाएँ से प्रकाश सोनी, डॉ.शैलेष उपाध्याय, मैं, मेनका और कौशिक साहा। फ़ोटो प्रवीण जी ने लिया है।