शनिवार, 25 दिसंबर 2010

२४ दिसंबर, एक रचनात्मक दिन

२४ दिसंबर की शुक्रवार चौपाल में सुबह के पहले सत्र में कंप्यूटर पर इनस्क्रिप्ट टाइपिंग का अभ्यास हुआ, उदय प्रकाश को साहित्य अकादमी पुरस्कार की सूचना और उनके व्यक्तित्व व कृतित्व पर संक्षिप्त आलेख पढ़ा गया तथा आगामी साहित्य प्रतियोगिता के विषय में बातचीत हुई। पिछली चौपाल से हाइकु रचने की जो परंपरा शुरू हुई है उसे भी आगे बढ़ाते हुए नये हाइकु लिखे गए। नाटक सत्र में के.पी. सक्सेना के नाटक 'खिलजी का दाँत' का पूर्वाभ्यास हुआ। आज की चौपाल में मीरा ठाकुर, स्वरूपा राय, प्रकाश सोनी, कौशिक साहा, लक्ष्मण, अमीर, संजीव और सबीहा उपस्थित रहे।

शनिवार, 18 दिसंबर 2010

१० से १७ दिसंबर, गहमागहमी के दिन


यह सप्ताह लंबे अंतराल के बाद गहमागहमियों से भरा रहा। दो नाटकों के मंचन की तैयारी के साथ साथ भारत से पधारी डॉ सुरेखा ठक्कर द्वारा उनकी कहानी का भाव पाठ सुनने का सौभाग्य इमारात के साहित्य प्रेमियों को मिला। साथ ही काव्य रचना और आगामी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी दिवस के उपलक्ष्य के कार्यक्रमों की तैयारी शुरू हो गई।

शुक्रवार १० दिसंबर की गोष्ठी में पूर्णिमा वर्मन, प्रवीण सक्सेना, मीरा ठाकुर, नागेश भोजने, दिलीप परांजपे, सुप्रीत और प्रकाश सोनी ने भाग लिया। हाइकु के विषय में चर्चा हुई, भीष्म साहनी की कहानी सागमीट और शरद जोशी के व्यंग्य नाटक भक्त प्रह्लाद का पाठ किया गया।

बुधवार १५ दिसंबर को डॉ. सुरेखा ठक्कर के सम्मान में एक साहित्य संध्या का आयोजन किया गया। २८ वर्षों तक आकाशवाणी से जुड़ी सुरेखा ठक्कर संप्रति रायसोनी समूह के आई टी एम विश्वविद्यालय रायपुर में उपकुलपति के पद पर कार्यरत हैं। साहित्य संध्या में डॉ. सुरेखा ने अपनी कहानी 'परिचय' का भावपाठ किया। गोद ली गई एक बालिका की उपयोगितावादी परिणति इस कहानी को संवेदनात्मक धरातल पर गहराई से छूती है। इस कार्यक्रम में पूर्णिमा वर्मन, कुलभूषण व्यास्, अनुराधा, बबिता, कामना कटोच, नीता सोनी, राहुल तनेजा, मीरा ठाकुर, स्वरूपा राय, प्रवीण सक्सेना, इला प्रवीण, अनुभव गौतम, आन्या, सिद्धार्थ ठाकुर और अर्जुन उपस्थित रहे।

शुक्रवार १७ दिसंबर की शुक्रवार चौपाल में नागेश भोजने ने अपनी तीन कविताओं- आँखें, मन और पहचान, मीरा ठाकुर ने अपनी रचना इच्छा तथा पूर्णिमा वर्मन ने अपने दो गीत आवारा दिन तथा कोयलिया बोली का पाठ किया। इसके बाद सबने मिलकर हाउकु लिखने का अभ्यास किया। १३ जनवरी को आबूधाबी में दो नाटक खेलने की तैयारियाँ शुरू हो गई हैं। जिसमें एक असलम परवेज का दस्तक होगा और दूसरा के पी सक्सेना का खिलजी का दाँत। दोनो नाटकों पर बातचीत और पूर्वाभ्यास हुए। आज की चौपाल में मेरे साथ प्रकाश सोनी, कौशिक साहा, सबीहा मझगाँवकर, सलाम, शुभजीत, पूर्णिमा वर्मन और नागेश भोजने शामिल रहे।


प्रस्तुति- मीरा ठाकुर

शुक्रवार, 26 नवंबर 2010

२६ नवंबर, आओ हिंदी की बात करें

इस बार शुक्रवार चौपाल का विषय था आओ हिंदी की बात करें। इसमें पूर्णिमा वर्मन, प्रवीण सक्सेना, नागेश भोजने, मीरा ठाकुर और नीता सोनी ने भाग लिया। संयुक्त अरब इमारात के भारतीय विद्यालयों के छात्रों में हिंदी के प्रति रूझान कैसे जागृत करें, इस विषय पर चर्चा हुई।

यह निश्चित किया गया कि छात्रों में अनुच्छेद लेखन के अभ्यास में से चुने हुए लेखों को अभिव्यक्ति में प्रकाशित किया जाए। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी से जुड़ने के लिये इंटरनेट के प्रयोग और निरंतर रचनात्मकता पर बल दिया गया। अंत में बी.बी.सी. द्वारा संडे के संडे’ कार्यक्रम में प्रसारित ‘भारतीयता की ओर अस्मिता की अधूरी कहानी’ इस पुस्तक लेखक पवन वर्मा के साथ राजेश जोशी की बातचीत का ऑडियो सुना गया तथा इस पर चर्चा भी हुई।

इस गोष्ठी में २ सूचनाएँ भी थी। पहली सूचना स्थानीय दिल्ली पब्लिक स्कूल में १६ दिसंबर को आयोजित होने वाले कवि सम्मेलन की थी और दूसरी भारत से पधारने वाली रायपुर की कथाकार सुरेखा ठक्कर के दुबई आगमन की। चाय के साथ गोष्ठी का समापन हुआ। गोष्ठी सुबह दस बजे से साढ़े ग्यारह बजे तक चली।

प्रस्तुति- मीरा ठाकुर

रविवार, 24 अक्तूबर 2010

२२ अक्तूबर, एक और छुट्टी

लगता है कि इस साल छुट्टियाँ कुछ ज्यादा हो रही हैं। पिछले सप्ताह शुभाशीष दशहरे की छुट्टी पर घर गए थे। इस बार प्रकाश भारत में थे। शायद जाने का कार्यक्रम जल्दी में बना किसी को अगली गोष्ठी की ईमेल नहीं भेजी जा सकी थी। कुछ नये लोग आने वाले थे लेकिन वे भी किसी न किसी कार्य में व्यस्त रहे। कुल मिलाकर यह कि इस बार भी चौपाल में छुट्टी रही।

शनिवार, 16 अक्तूबर 2010

१५ अक्तूबर, अमृता प्रीतम और शरद जोशी


आज का दिन कहानियों का दिन था। सबसे पहले प्रकाश और अमीर पहुँचे। थोड़ी ही देर बाद डॉ लता, सुमित, ऊष्मा और सुनील भी आ गए। सबसे पहले शरद जोशी की व्यंग्य रचना सितार सुनने की पोशाक पढ़ी गई, उसके बाद अमृता प्रीतम की कहानी अपना अपना कर्ज पढ़ी गई, और अंत में शरद जोशी का एक और व्यंग्यात्मक रेखाचित्र पारसी थियेटर। कहानियाँ सुमित और डॉ लता की भी कम मजेदार नहीं थीं पर वे उनके निजी जीवन से संबंधित थीं। लेखकों की कहानियाँ भी तो दैनिक जीवन से की कहानियों से ही निकलती हैं... कोर्ट मार्शल के लिये पात्रों का चयन होना था पर वह शायद अगले सप्ताह हो। चित्र में बाएँ से मैं, डॉ लता, अमीर, सुमित, प्रवीण, प्रकाश और ऊष्मा। फोटो सुनील ने लिया है।

रविवार, 10 अक्तूबर 2010

८ अक्तूबर, छुट्टी का दिन

जब भी कभी किसी नाटक का मंचन होता है आमतौर से उसके बाद वाले शुक्रवार को चौपाल की छुट्टी रहती है। २ अक्तूबर को भारतीय कौंसलावास दुबई के रंगमंच पर प्रस्तुत नाटक के बाद परंपरानुसार ८ अक्तूबर को चौपाल में छुट्टी रही।

रविवार, 3 अक्तूबर 2010

१ अक्तूबर, महाप्रयाण का पूर्वाभ्यास एवं २ अक्तूबर को प्रदर्शन


इस शुक्रवार भरत याज्ञनिक के नाटक महाप्रयाण का रिहर्सल हुआ। इस नाटक के साथ थियेटरवाला ने कुछ नये प्रयोग शामिल किये हैं। नाटक का प्रारंभ पीछे पर्दे पर गाँधी जी के कुछ दृश्यों के साथ होता है। मूल नाटक खेला नहीं जाता है बल्कि अलग अलग माइकों पर पढ़ा जाता है। बीच की कुछ घटनाओं का मंचन किया गया है जिसमें गाँधी जी के बचपन की घटनाएँ शामिल हैं। पार्श्व संगीत और प्रकाश का प्रयोग कर के नाटक में जान डाली गई है। अंत के दृश्य में घटनाएँ पर्दे पर दिखाई देती हैं। प्रार्थना सभी का दृश्य बापू को गोली लगना और अंतिम संदेश का पार्श्व से सुनाई देना। ये सब नाटक की प्रस्तुति को रोचक बनाते हैं।

यह नाटक दुबई में भारतीय कौंसलावास के प्रेक्षाग्रह में २ अक्टूबर को खेला गया औॅर काफी सराहा भी गया। दुर्भाग्य से कैमरा घर पर रह गया इसलिये तुरंत कोई फोटो नहीं पोस्ट कर रही हूँ पर हमारी फोटोग्राफर आलिया के खींचे गए फोटो जैसे ही फेसबुक पर आएँगे यहाँ लिंक देने का प्रयत्न करूँगी। १ अक्तूबर को पूर्वाभ्यास के कुछ चित्र डा.उपाध्याय ने लिये थे इसमें से २ यहाँ प्रस्तुत हैं।

शनिवार, 25 सितंबर 2010

२४ सितंबर, प्रदर्शन का दिन


इस सप्ताह चौपाल पर भरत याज्ञिक के मूल गुजराती नाटक के हिंदी रूपांतर महाप्रयाण का पाठ किया गया। इस नाटक का जल्दी ही मंचन किया जाना है अतः कुछ पात्रों का चयन भी किया गया। इसके अतिरिक्त आज अभिनय और प्रदर्शन का दिन भी था। इस अवसर पर मिलिंद तिखे ने अपनी कहानी कदंब के फूल का पाठ किया और आमिर ने कुछ कविताएँ सुनाईं। शुभजित के मूक अभिनय ने सबका दिल जीत लिया। हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में मिलिंद जी मिठाई लेकर आए थे जो चाय के साथ परोसी गई। आज उपस्थित सदस्यों में- दिलीप परांजपे, मुहम्मद अली, प्रकाश सोनी, डॉ. शैलेष उपाध्याय, नीलेश पटेल, विक्रम शर्मा, सुमित, शुभजीत, मिलिंद तिखे, आमिर और सुनील के साथ मैं और प्रवीण भी शामिल रहे।

शनिवार, 18 सितंबर 2010

१७ सितंबर, दो उर्दू कहानियाँ



इस सप्ताह चौपाल पर पढ़ी गई दो उर्दू कहानियों के हिंदी रूपांतर- कृष्णचंदर की वैक्सिनेटर और सआदत हसन मंटो की टोबा टेक सिंह। पिछले कुछ महीनों से थियेटरवाला की नियमित मासिक प्रस्तुतियों में व्यवधान बना हुआ है। इस विषय पर चर्चा हुई और इसको दूर करने के उपायों पर विचार किया गया। अली भाई आज की चौपाल में बहुत दिनों बाद दिखाई दिये। अन्य उपस्थित सदस्यों में चित्र में बाएँ से- एक पुराने सदस्य जो बहुत दिनों बाद आए इसलिये नाम याद नहीं आ रहा, सुमित, प्रकाश, अली भाई, मिलिंद तिखे, डॉ. उपाध्याय और मैं। प्रवीण जी की अनुपस्थिति में चित्र शुभजीत ने लिया।

शनिवार, 4 सितंबर 2010

३ सितंबर, भरत याज्ञनिक का महाप्रयाण


चौपाल में इस बार भरत याज्ञनिक के नाटक महाप्रयाण का पाठ हुआ। प्रकाश छु्ट्टी मनाकर दो सप्ताह के बाद भारत से लौटे हैं तो चौपाल में रौनक दिखाई दी। लवी और दीपक नाम के दो नये चेहरे भी थे। हमेशा उपस्थित रहने वाली सबीहा इस बार अनुपस्थित रहीं। मालूम नहीं नाटक राजनीतिक होने के कारण या उसमें गाँधी की उपस्थिति होने के कारण पाठ के बाद कुछ गरमागरम राजनीतिक बहसें भी हुईं। कुल मिलाकर चौपाल में रौनक रही। चित्र में बाएँ से- दिलीप परांजपे, मिलिंद तिखे, डॉ. शैलेष उपाध्याय, शुभजीत प्रकाश, लवी और दीपक। इसके अतिरिक्त आज चौपाल में मैं, प्रवीण सक्सेना और कौशिक साहा भी उपस्थित थे।

शनिवार, 28 अगस्त 2010

२७ अगस्त, गुजराती कहानियों का दिन







शुक्रवार चौपाल आज गुजराती कहानियों के नाम रही। रमेश उपाध्याय द्वारा प्रसिद्ध गुजराती लेखकों की बीस कहानियों के संकलन कथा भारती गुजराती कहानियाँ शीर्षक पुस्तक से कुछ कहानियों का पाठ डॉ. लता और डॉ. उपाध्याय ने किया। पाठ के बाद कहानियों पर चर्चा हुई।

आने वाले हिंदी दिवस के लिये विशेष क्या तैयार किया जाना है इस विषय पर भी बात हुई। आज डॉ. लता और मिलिंद तिखे बहुत दिनों बाद चौपाल में उपस्थित हुए। अन्य सदस्यों में डॉ उपाध्याय के अतिरिक्त अमीर, शुभजीत, दिलीप परांजपे, मैं और प्रवीण उपस्थित थे।


रविवार, 22 अगस्त 2010

२० अगस्त, कोर्टमार्शल का दिन


इस सप्ताह स्वदेश दीपक के नाटक कोर्ट मार्शल का पाठ होना था। चौपाल के प्रारंभ में नाट्य शास्त्र और भारतीय साहित्य के दार्शनिक पक्ष पर थोड़ी बातचीत भी हुई। धीरे धीरे सदस्य जुड़े। डॉ. उपाध्याय, सबीहा, शुभजीत, सुमित, अमीर, आमिर, कौशिक, सलाम, दिलीप परांजपे, प्रवीण जी और मैं कुल मिलाकर दस-ग्यारह लोग हो ही गए। रमज़ान के महीने में जब अधिकतर सदस्य इस्लाम धर्म का पालन करते हुए रोजे पर होते हैं उपस्थिति आमतौर पर कम रहती है। इस बार प्रकाश भी भारत गए हुए हैं शालिनी भी भारत में हैं इस सबको देखते हुए उपस्थिति ठीक रही। नाटक का पाठ हुआ और अंत में थोड़ी बातचीत के बाद सबने विदा ली।

रविवार, 15 अगस्त 2010

१३ अगस्त, पाठ सुल्तान का


समय था वर्षिकोत्सव के बाद वाले शुक्रवार का और सबके चेहरों पर उत्सव की सफलता स्पष्ट दिखाई दे रही थी। कार्यक्रम का प्रारंभ वार्षिकोत्सव के कार्यक्रम की समीक्षा से प्रारंभ हुआ। इसके बाद आमिर, सबीहा, कौशिक, दिलीप परांजपे और डॉ. उपाध्याय ने मिलकर नाटक सुल्तान का पाठ किया। बढ़ती हुई गर्मी की सुस्त दोपहर को चाय के साथ ताज़ा बनाते हुए आगे के कार्यक्रम की चर्चा भी हुई।


वार्षिकोत्सव में पुराने सदस्यों को स्मृति चिह्न प्रदान किये गए थे। इस समारोह को बचे हुए सदस्यों के साथ पूरा करते हुए चौपाल का संपूर्ण हुई। ऊपर के चित्र में बाएँ से डॉ.उपाध्याय, प्रवीण सक्सेना और मैं। फोटो कौशिक ने लिया था। दूसरे फोटो में आज उपस्थित सदस्य चाय के साथ चर्चा में- पीछे से नीली धारीदार टीशर्ट में मिलिंद तिखे, उनकी बायीं ओर से गोलाकार- कौशिक, अमीर, शालिनी, सबीहा, दिलीप परांजपे, मैं और डाक्टर उपाध्याय। फोटो प्रवीण जी ने लिया था।

रविवार, 1 अगस्त 2010

३० जुलाई, उत्सवदिन

थियेटरवाला के वार्षिकोत्सव की तैयारियाँ थी और प्रकाश सोनी का जन्मदिन भी तो भीड़ पर केक और इमरतियों का रंग छाया रहा। आज के कार्यक्रमों की सूची इस प्रकार थी-

१. मसूद अशआर की कहानी- कपास कहानी
२. मंशा याद की कहानी- पानी से घिरा पानी और
३. निदा फ़ाज़ली की कविताएँ
सबसे पहले पहुँचे सबीहा और प्रकाश, केक और इमरती लेकर।


फिर धीरे धीरे १८ सदस्य जमा हो गए। मसूद अशआर की कहानी पढ़ी मैंने और अब्दुल लतीफ़ मजगाँवकर साहब ने। पानी से घिरा पानी शालिनी ठाकुर ने पढ़ी और निदा साहब की कविताएँ प्रकाश ने सुनाई। आनेवाले वार्षिकोत्सव की विषय में बातचीत हुई और प्रकाश का जन्मदिन हंगामे के साथ मना। आज उपस्थित सदस्यों के नाम इस प्रकार हैं- प्रकाश, सबीहा, लक्ष्मण, अब्दुल लतीफ, शाहबाज़, सलाम, अमीर, आमिर, डॉ. उपाध्याय, ज़रीन, कौशिक, शालिनी, शुभोजित, सुमित, मूफ़ी, नीलेश मैं और प्रवीण।

रविवार, 25 जुलाई 2010

२३ जुलाई, इस बार केवल चित्र

इस शुक्रवार चौपाल फिर से दुबई के इंटरनेशनल सिटी में स्थित सबीहा के घर पर जमी। कुछ कारणों से इसका विस्तृत विवरण अभी तक प्राप्त नहीं हुआ है पर इसके चित्र प्रस्तुत हैं-

रविवार, 18 जुलाई 2010

16 जुलाई, चौपाल दुबई में


इस शुक्रवार चौपाल दुबई के इंटरनेशनल सिटी में स्थित सबीहा के घर पर हुई। चौपाल में हरिशंकर परसाईं की रचना मातादीन चाँद पर डॉ. उपाध्याय और प्रकाश सोनी ने पढ़ी, निदा फ़ाज़ली की रचना एक राजनेता के नाम का पाठ प्रकाश सोनी ने किया और अमीर खुसरों की कहमुकरियाँ शालिनी ने पढ़ी। वाचन सत्र के बाद चाय का कार्यक्रम हुआ और 6 अगस्त को होने वाले वार्षिकोत्सव की तैयारियों के विषय में बातचीत हुई।

चौपाल में उपस्थित रहे डॉ. उपाध्याय, कौशिक साहा, रागिनी, दिलीप परांजपे, प्रकाश सोनी, शुभजीत, शालिनी ठाकुर, संजय ग्रोवर और उनकी पत्नी, मुहम्मद अली, मूफ़ी बूटवाला, अमीर खान, सलाम सरदार, अनिंदिता चैटर्जी, सबीहा मजगाँवकर, अब्दुल लतीफ़ मजगाँवकर और शाहबाज़ मजगाँवकर।

शनिवार, 10 जुलाई 2010

९ जुलाई, वार्षिकोत्सव की तैयारियाँ


यह शुक्रवार रूहे इश्क की सफलता उत्सव के दूसरे दिन था इसलिये लोग कुछ देर से आए लेकिन सदस्यों की उपस्थिति अच्छी रही। काफ़ी लोगों के दर्शन हुए तो जोश और रौनक सबके चेहरों पर दिखाई दी। ऐसा नहीं था कि सभी लोग आए हों फिर भी बहुत दिनों बाद इतने लोग जमा हुए। सफल प्रदर्शन की प्रसन्नता सबके चेहरों पर झलक रही थी। कल के उत्सव का उल्लास अभी तक जारी था। इसी उल्लास के साथ थियेटरवाला के वार्षिकोत्सव की तिथि निश्चित की गई 6 अगस्त। यह उत्सव थियेटरवाला की स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। यों तो यह तिथि 25 मई है लेकिन रूहे इश्क के प्रदर्शन और उसकी खिसकती हुई तिथियों के कारण वार्षिकोत्सव भी खिसकता हुई अगस्त में पहुँच गया है।


वार्षिकोत्सव के संयोजन का उत्तरदायित्व सबीहा और शालिनी को मिला है। कौन क्या कर रहा है यह लगभग तय है पर अभी कोई किसी को बताना नहीं चाहता। सब इसको रहस्य रखना चाहते हैं। आज उपस्थित लोगों में चित्र में दिखाई दे रहे हैं बाएँ से- शुभ, सबीहा, सलाम, डॉ. शैलेष उपाध्याय, दिलीप परांजपे, कौशिक, मैं, सुप्रीत, प्रकाश। इसके अतिरिक्त मूफ़ी, आमिर और शालिनी भी चौपाल में उपस्थित थे लेकिन कुछ देर से पहुँचने के कारण वे चित्रों में शामिल नहीं हो सके क्यों कि प्रवीण जी अपने कैमरे का बोरिया बिस्तर समेट चुके थे।

शनिवार, 3 जुलाई 2010

२ जुलाई, समीक्षा और योजना का दिन

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शुक्रवार चौपाल- में दो जुलाई का दिन पिछले प्रदर्शन की समीक्षा और आनेवाले कार्यक्रमों की योजनाएँ बनाने का रहा। केवल बातें ही नहीं पावर पॉइंट प्रस्तुति से भी कुछ नई परियोजनाओं ने चौपाल में पदार्पण किया। इन परियोजनाओं पर बहस भी हुई। इनमें से कितनी साकार होंगी और किस रूप में वह समय ही बताएगा। बहरहाल आज चौपाल में कुछ ऐसे चेहरे थे जो नियमित रूप से नहीं दिखाई देते- लक्ष्मण, शुभ, सुमित, आमिर और मूफ़ी। इनके सिवा कुछ अपेक्षाकृत नियमित लोगों में थे कौशिक और शालिनी। बाकी नियमित लोगों में से प्रकाश और डॉ उपाध्याय उपस्थित थे। चित्र में बाएँ से- मैं शालिनी, शुभ, प्रकाश, आमिर डॉक्टर साहब, मूफ़ी, कौशिक, सुप्रीत और लक्ष्मण जी। रूहे इश्क के चलते इस वर्ष थियेटरवाला का वार्षिकोत्सव नहीं मनाया जा सका। देखते हैं इस विषय में सबका क्या निर्णय होता है।

सोमवार, 28 जून 2010

२५ जून, प्रस्तुति रूहे इश्क की


अंततः प्रदर्शन का दिन आ ही गया। इस कार्यक्रम का विज्ञापन जोरदार हुआ था। टीवी और रेडियो पर दिये जानेवाले विज्ञापन आकर्षक थे। सबसे लोकप्रिय रेस्टोरेंट शृखला कामथ और गज़ीबो पर इनके टिकट बिके थे जिसका प्रभाव दर्शकों की भीड़ के ऊपर देखा जा सकता था। मल्हार के संगीत की प्रस्तुति से दर्शक आस्वस्त दिखे और थियेटरवाला के अभिनय ने उनका अच्छा साथ निभाया। कुल मिलाकर प्रस्तुति सफल रही। शायद इमारात में संगीत के साथ नाट्य अभिनय के संयोजन की यह पहली प्रस्तुति थी और प्रसन्नता की बात है कि दर्शकों ने इसे खूब पसंद किया। प्रदर्शन के दिन चौपाल का लगना तो संभव नहीं होता। अतः चौपाल आज स्थगित रही।

शनिवार, 19 जून 2010

१८ जून, रूहे इश्क़ संपूर्णता की ओर...


जैसे जैसे 'रूहे इश्क' के प्रदर्शन के दिन समीप आ रहे हैं, पूर्वाभ्यास में भी गंभीरता आने लगी है। बृहस्पतिवार को देर रात तक पूर्वाभ्यास के कारण इस बार चौपाल स्थगित रही। शुक्रवार का पूर्वाभ्यास दुबई में हुआ दोपहर दो बजे से। दुबई शॉपिंग उत्सव के लिए आयोजित अनेक कार्यक्रमों में से एक यह कार्यक्रम 25 जून को होना निश्चित हुआ है। कार्यक्रम चार सूफ़ी संतों के गीतों और उनके जीवन की घटनाओं पर आधारित है। गीतों को मंच पर साकार करेंगे मल्हार के संगीतकार और गायक तथा जीवनवृत्त का नाट्य रूपांतर करेंगे थियेटरवाला के कलाकार।

रविवार, 13 जून 2010

११ जून, उत्सव सा दिन



आज का दिन उत्सव जैसा रहा। सदस्यों की उपस्थिति अच्छी थी। जमकर पूर्वाभ्यास हुआ और चाय के साथ बातचीत दमदार रही। आशा है प्रस्तुति भी इसी तरह दमदार रहेगी। मल्हार द्वारा तैयार किये जा रहे रूहे इश्क कार्यक्रम में संगीत तैयार है। रूमी और खुसरों के पूर्वाभ्यास से कलाकार संतुष्ट लगे। आज विशेष ध्यान बुल्लेशाह और कबीर के ऊपर रहा। बहुत दिनों बाद कौशिक और मूफ़ी दिखाई दिए।




बायीं ओर के चित्र में बीच में प्रकाश सोनी अपनी दाहिनी ओर आमिर और बायीं ओर सूत्रधार अली भाई के अभिनय को सराहते हुए- "वाह वाह क्या बात है की मुद्रा में।" ऊपर के चित्र में सामने की ओर बाएँ से प्रकाश और दोनो आमिर, पीछे की ओर बाएँ से मैं, शालिनी, अली भाई, कौशिक, डॉ. उपाध्याय, एक अन्य अभिनेता, सुमित और मूफ़ी। सदा की तरह फोटो प्रवीण जी ने ली।

शनिवार, 5 जून 2010

४ जून, रूहे-इश्क- इंतज़ार और अभी






चौपाल में रूहे इश्क का पूर्वाभ्यास जारी रहा। पहले इसका मंचन ११ जून को होने वाले था लेकिन कुछ कारणों से अब यह २५ जून को खेला जाएगा। जो लोग इसकी प्रतीक्षा कर रहे थे उनके लिए प्रतीक्षा की घड़ियाँ बढ़ गई हैं लेकिन कलाकारों के पास अभ्यास का कुछ और समय हो गया है।

इसके साथ ही बदलती तिथियों में सभी कलाकार उपलब्ध हो सकेंगे या नहीं इसकी आशंका भी सिर उठाने लगी है। सभी महिला कलाकार आज अनुपस्थित रहीं (वे संगीत के पूर्वाभ्यास में अन्यत्र व्यस्त रहीं।) इसके बावजूद चौपाल में पूर्वाभ्यास जारी रहा। चित्रों में देखें अभ्यास की कुछ झलकियाँ।

शनिवार, 29 मई 2010

२८ मई, रूहे इश्क का पूर्वाभ्यास


चौपाल में मल्हार का रूहे इश्क आकार लेने लगा है। लोग देर से आए पर काम बहुत गंभीरता से देर तक जारी रहा। अली भाई सूत्रधार के पूर्वाभ्यास में पूरी तरह खोए रहे। सूत्रधार के आलेख को भी शायद अंतिम आकार मिल गया है। सूफ़ी कवियों के जीवन की इन छोटी झलकियों में कुछ नए कलाकार भी शामिल हैं। कुल मिलाकर वातावरण गंभीर रहा, पूरी तरह से पूर्वाभ्यास के मूड में। कुछ लोग देर से भी आए पर लगता है दिन सफल रहा।

रविवार, 23 मई 2010

२१ मई, पूर्वाभ्यास और रिहर्सल


चौपाल में जहाँ एक ओर मल्हार के रूहे इश्क कार्यक्रम का पूर्वाभ्यास जारी है वहीं दूसरी ओर शुक्रवार चौपाल की तीसरी वर्षगाँठ के उत्सव की तैयारियाँ भी जारी है। इस बार वर्षगाँठ के अवसर पर अनेक एकालाप और नाटिकाओं का प्रस्तुति का कार्यक्रम है। समय सीमा 8से 10 मिनट रखी गई है। सब अपने अपने पूर्वाभ्यास में लगे हैं।

मल्हार का रूहे इश्क रूमी, अमीर खुसरों, कबीर और बुल्लेशाह के गीतों पर आधारित एक संगीत कार्यक्रम है जिसमें कुछ घटनाएँ नाटक के रूप में प्रस्तुत की जानी हैं। शुक्रवार चौपाल की प्रस्तुतियों को अभी तक सबने गुप्त रखा है। शायद इस शुक्रवार विस्तार से पता चले।

इन सब कार्यक्रमों के चलते बहुत दिनों बाद चौपाल में कुछ ज्यादा लोग दिखाई पड़े। डॉ. शैलेष उपाध्या, सबीहा, प्रकाश, दिलीप परांजपे और शालिनी के साथ इस बार आमिर, सुप्रीत, और सलाम हाज़िर थे। बहुत दिनों बाद अली भाई के भी दर्शन हुए। चित्र में बाएँ से- सलाम, सबीहा, शालिनी, सुमीत, दिलीप परांजपे, आमिर, डॉ. उपाध्याय, अली भाई और प्रकाश।

शनिवार, 15 मई 2010

१४ मई, वार्षिकोत्सव की योजनाएँ


इस बार चौपाल में थियेटरवाला के वार्षिक उत्सव की तैयारी के विषय में बातचीत हुई। तय यह हुआ है कि अनेक छोटी-छोटी प्रस्तुतियों का एक समूह नाट्य संध्या के नाम से प्रस्तुत किया जाए। लोग अलग अलग नाट्य कर्मियों के नाटकों के साथ जुड़े हैं और चौपाल में उपस्थिति कम सी रही है। इस बार प्रकाश, डॉ उपाध्याय और शालिनी उपस्थित रहे। शालिनी ने महाभारत से द्रौपदी का एक लंबा अंश पढ़ा। शायद वे वार्षिकोत्सव के अवसर पर इसे मंचित करेंगी। बाकी लोग क्या करेंगे यह अंतिम आश्चर्य के लिए सुरक्षित रखा गया है। शायद कुछ न कुछ पूर्वाभ्यास के दौरान स्पष्ट हो जाएगा।

शुक्रवार, 7 मई 2010

७ मई, सखाराम बाइंडर




इस बार चौपाल में विजय तेंडुलकर के नाटक सखाराम बाइंडर के पाठ का कार्यक्रम था। निरूपमा वर्मा द्वारा किया गया इसका हिंदी रूपांतर पढ़ा जाना था। डॉ. उपाध्याय और दिलीप परांजपे साहब समय से पहुँचे। शालिनी और प्रकाश को आने में थोड़ी देर हुई। उनके पहुँचते ही डॉ उपाध्याय ने नाटक की कथावस्तु संक्षेप में बताई। नाटक के प्रारंभिक भाग का पाठ हुआ। सबको ही किसी न किसी जगह जाना था इसलिए आज की चौपाल समय से थोड़ा पहले ही समाप्त हो गई।


शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010

२३ अप्रैल, आँसू और मुस्कान का दूसरा भाग

कार्यक्रम के अनुसार आज चौपाल में आँसू और मुस्कान का दूसरा भाग पढ़ा जाना था। बहुत दिनों बाद आज दिलीप परांजपे साहब पहुँचे और वह भी सबसे पहले, उसके बाद प्रकाश और फिर शालिनी। थोड़ी देर बाद इरफ़ान आ गए। आज के कार्यक्रम में डॉ राहिल भी उपस्थित रहे। वे कुछ पहले चले गए इसलिए फोटो में कैद नहीं हो सके।

आज की चौपाल में स्पाइस रेडियो पर प्रसारित होने वाले तीन घंटे लंबे कार्यक्रम की चर्चा रही। इसको दिलीप जी प्रस्तुत करने वाले हैं। मल्हार द्वारा प्रस्तुत किए जाने सूफी गीतों के कार्यक्रम के विषय में भी बात हुई जिसमें थियेटरवाला की ओर से कुछ नाट्य तत्त्व का समावेश होने वाला है। इसके बाद आँसू और मुस्कान का दूसरा भाग पूरा किया गया। शिशिर और हेमंत के संवाद क्रमशः प्रकाश और दिलीप जी ने पढ़े तथा बरखा और वर्षा के शालिनी और मैंने। चित्र में बाँए से- मैं, शालिनी, दिलीप परांजपे, प्रकाश और इरफ़ान। दो नियमित सदस्य डॉ. शैलेष उपाध्याय और सबीहा मजगांवर अन्यत्र व्यस्त रहने के कारण चौपल में अनुपस्थित रहे।

शुक्रवार, 16 अप्रैल 2010

१६ अप्रैल, चौपाल स्थगित

चौपाल में इस सप्ताह आँसू और मुस्कान नाटक का दूसरा भाग पढ़ा जाना था लेकिन सदस्यों के अलग अलग कारणों से अनुपस्थित रहने के कारण ऐसा न हो सका और इस बार की चौपाल स्थगित हो गई।

शुक्रवार, 9 अप्रैल 2010

९ अप्रैल, आँसू और मुस्कान

चौपाल में इस सप्ताह पढ़ा गया वसंत कानेटकर द्वारा लिखित, पी.एल. मयेकर द्वारा नाट्य रूपांतरित तथा डा. शैलेष उपाध्याय द्वारा मराठी से हिंदी में अनूदित नाटक आँसू और मुस्कान। मौसम गर्म हो चला है। दोपहर ग्यारह बजे इतनी गर्मी थी कि हम चाहते हुए भी बाहर बिना एसी के नहीं बैठ सके। जहाँ सहज मंदिर में चौपाल लगती है वहाँ के तीनों एसी सफ़ाई और सर्विसिंग में लगे थे सो हम घर में खाने की मेज़ पर पाठ के लिए बैठे। आज उपस्थित लोगों में थे- डॉ. शैलेष उपाध्याय, सबीहा मजगाँवकर, प्रकाश सोनी, कौशिक साहा, और एक नये सदस्य नीलेश पाटिल। प्रवीण जी सफ़ाई और एसी कर्मचारियों के साथ कुछ अधिक व्यस्त थे इस कारण इस बार चित्र लेना रह गया।

सोमवार, 5 अप्रैल 2010

२ अप्रैल, अल्लादाद खाँ के साथ

पिछले सप्ताह शरद जोशी के नाटक एक था गधा उर्फ अल्लादाद खाँ का फिर न हो सका। कारण? कुछ सदस्य छुट्टी पर थे और बचे हुए सदस्य किसी कारण इसका पाठ न कर सके। इस बार की चौपाल का प्रारंभ मल्हाल के कार्यक्रम के विषय में बातचीत करते हुए शुरू हुआ। बात कहानियों के मंचन से शुरू होकर इमारात में लोकप्रिय नाटकों की शैली तक पहुँची। इस विषय पर भी बात हुई कि हम किस प्रकार कम लोगों के साथ नियमित थियेटर कर सकते हैं। हालांकि हम किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँचे पर बात करने से ही बात बनती है यह सोचकर बातें चलती ही रहती हैं। एक घंटे बाद नाटक का पाठ शुरू हुआ और एक घंटे में पहला अंक पूरा किया गया। पहले अंक में लगभग आधा नाटक पूरा हो जाता है। इस सप्ताह उपस्थित लोग थे बाएँ से प्रकाश सोनी, डॉ. शैलेष उपाध्याय, मैं, डॉ. लता, और सबीहा मजगाँवकर। सबीहा को कुछ जल्दी जाना था सो वे चाय से पहले निकल गयीं।

शुक्रवार, 26 मार्च 2010

२२ मार्च शरद जोशी का एक था गधा

पिछले सप्ताह शरद जोशी के नाटक एक था गधा उर्फ अल्लादाद खाँ का पाठ न हो सकने के कारण कार्यक्रम सूचना के अनुसार इस सप्ताह इस नाटक के पाठ की बारी है। कुछ कारणों से कार्यक्रम का विवरण अभी नहीं मिला है। आशा है विस्तृत सूचना मंगलवार तक प्रकाशित हो सकेगी। (खेद है कि अपरिहार्य कारणों से यह चौपाल नहीं लग सकी)

शुक्रवार, 19 मार्च 2010

१९ मार्च, मल्हार के साथ बातचीत में


इस सप्ताह नियत कार्यक्रम के अनुसार शरद जोशी के नाटक एक था गधा उर्फ अल्लादाद खाँ का पाठ होना था। मौसम गरम होने लगा है। सबके बैठने का प्रबंध बाहर ही था लेकिन आज ऐसा लगा कि शायद बाहर गोष्ठी करने का यह इस मौसम का अंतिम दिन है। सबसे पहले डॉ. उपाध्याय आए, उन्होंने बताया कि सबीहा आज व्यस्त हैं और प्रकाश किसी व्यस्तता के कारण देर से आने वाले हैं। थोड़ी देर में डॉ. लता पधारीं और चिकित्सा की दुनिया में होने वाली देशी विदेशी सेमीनारों पर एक रोचक वार्तालाप सुनने का अवसर मिला। थोड़ी देर में प्रकाश आ गए। क्या हम नाटक का पाठ शुरू करें? संवाद पढ़ने वाले सभी लोग तो नहीं आए थे।


शायद ऊष्मा आज न भी आए तो हमें पाठ शुरू कर देना चाहिए इतनी बात हुई ही थी कि ऊष्मा, तृप्ति और मयूरा आ गयीं। वे मल्हार नामक संगीत संस्था की सदस्या हैं, जो अक्सर संगीत के कार्यक्रम प्रस्तुत करते रहते हैं। संस्था के अध्यक्ष जोगीराज सिकिदार हैं। वे इस बार सूफ़ी संगीत पर आधारित एक कार्यक्रम करना चाहते हैं जिसके कुछ अंश नाट्य आधारित होंगे। अगर यह योजना कार्यान्वित हुई तो शायद थियेटरवाला इसमें नाट्य सहयोग करेंगे। थोड़ी देर में कौशिक भी पहुँच गए। सारा समय इसके विभिन्न पहलुओं पर बातचीत करते हुए गुज़रा और नाट्य पाठ नहीं हो सका। शायद नाटक हम अगली बार पढ़ेंगे। चित्र में बाएँ से तृप्ति, डा.लता, डॉ.उपाध्याय, ऊष्मा, प्रकाश, मैं और मयूरा। जिस समय फोटो ली गई उस समय तक कौशिक नहीं आए थे इसलिए वे चित्र में नहीं हैं। अलबत्ता ऊष्मा का कॉफी मग उनके साथ ही चाय से पहले हाजिर हो गया था जो मेज की शोभा बढ़ा रहा है।

शनिवार, 13 मार्च 2010

१२ मार्च, बकरी के साथ ढेर से अतिथि



इस सप्ताह चौपाल अतिथियों से भरा रहा। अवसर था सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के नाटक बकरी के अभिनय पाठ का। यूके के डार्बी नगर से गीतांजलि के सहयोगी सदस्य डॉ. संजय सक्सेना और उनकी पत्नी डाक्टर एलिसन के आने का कार्यक्रम पहले से तय था। एक दिन पहले आबूधाबी से कथाकार कृष्ण बिहारी ने भोपाल से पधारे कवि और गीतकार यतीन्द्रनाथ राही और निर्मला जोशी आने की सूचना भी दी। सुबह सबसे पहले प्रकाश सोनी आए। फिर डॉ. उपाध्याय, सबीहा और शालिनी आ गए। बकरी का पाठ समय से प्रारंभ कर दिया गया। दो अंकों के पूरा होते ही आबूधाबी से अतिथि भी आ गए।

दोपहर के बारह बज रहे थे, हमने चाय का अंतराल लिया और सभी अतिथि इसमें सम्मिलित हुए। दिन को और सफल बनाते हुए मध्य प्रदेश महिला जागृति परिषद की अध्यक्षा कवयित्री निर्मला जोशी ने संस्था की ओर से भेजी गई शॉल पहनाई तो मुझे भारत की सम्मान बाँटने की संस्कृति की स्मृति ताज़ा हो आई। काश मैंने भी कुछ तैयारी रखी होती तो अतिथियों को भी सम्मानित किया जा सकता लेकिन ऐसा संभव न हो सका। यू.के. से पधारे अतिथियों को दुबई में कुछ मित्रों से मिलना था और आबूधाबी से पधारे अतिथियों का दोपहर का भोजन भी दुबई में एक मित्र के यहाँ निश्चित था तो सबने विदा ली। अच्छा यह हुआ के आज बीच बीच में आती जाती तमाम रुकावटों के बावजूद चौपाल के सदस्यों ने नाटक का पाठ पूरा किया।


ऊपर के चित्र में बाएँ से सबीहा मजगाँवकर, यतीन्द्रनाथ राही, आबूधाबी से पधारे एक अतिथि, डॉ. एलिसन, शालिनी, सुनील, डॉ.उपाध्याय, प्रकाश, डॉ. संजय सक्सेना, और कृष्ण बिहारी। बीच के चित्र में सामने दाहिनी ओर भोपाल से पधारी गीतकार निर्मला जोशी और उनके पीछे मैं। नीचे के चित्र में बाएँ से प्रकाश सोनी, सबीहा मजगाँवकर, पीछे सुनील, निर्मला जोशी शॉल पहनाते हुए, प्रवीण सक्सेना, पीछे डॉ.एलिसन, शालिनी और कृष्ण बिहारी।

रविवार, 7 मार्च 2010

५ मार्च, कंजूस


चौपाल में आजकल प्रति सप्ताह नाटकों के अभिनय पाठ का क्रम चल रहा है। इस सप्ताह मौलियर के नाटक कंजूस का हिंदी रूपांतर पढ़ा गया। रूपांतरकार है हज़रत आवारा। मुस्लिम परिवेश में रचा-बसा यह एक हास्य नाटक है। इन पाठों का आलेख मंगल-बुध तक ईमेल से भेज दिया जाता है। अधिकतर पीडीएफ प्रारूप में। एक फाइल में पात्रों के पाठ निर्धारित कर के भी संलग्न कर दिए जाते हैं। इस पाठ के लिए उपस्थित थे इसके पात्र-निर्धारण इस प्रकार था- निर्देश-प्रकाश, नासिर-सुनील जसूजा, अज़रा-सबीहा, फर्रुख-संग्राम, मिर्जा-डॉ.साहब, नंबू-कौशिक, दलाल-प्रकाश, फरजाना-पूर्णिमा, खेड़ा-प्रकाश, अलफ़ू-सुनील, मरियम-पूर्णिमा, हवलदार-प्रकाश और असलम-संग्राम। ये पाठ एक तरह से वाक्अभिनय के अभ्यास जैसे होते हैं। प्रस्तुति जैसे नहीं। समय के साथ इन पाठों से यह स्पष्ट होगा कि अलग अलग पात्रों में अलग अलग सदस्य अपनी आवाज़ किस प्रकार ढाल सकते हैं। अभी इन पाठों पर अधिक ध्यान नहीं दिया जाता, केवल नाटक को पढ़ने जैसा भाव रहता है पर आशा है भविष्य में ये पाठ सदस्यों के लिए गंभीर अभ्यास की नींव बनेंगे।

जिन सदस्यों के लिए जो भूमिकाएँ निर्धारित की गयी थीं वे सब तो उपस्थित नहीं थे। डॉ.साहब के पैर में मोच आ गई थी और उनका टखना प्लासटर में है। शालिनी के हाथ पर प्लास्टर है। व्यस्त जीवन में जो एक छुट्टी का दिन मिलता है उसे निश्चय ही आराम में लगाकर उन्होंने अच्छा काम किया। इस बार अचानक संजय ग्रोवर साहब उपस्थित थे। अक्सर पाठक उन्हें अभि-अनु के कवि और व्यंग्यकार संजय ग्रोवर समझते हैं लेकिन ये संजय ग्रोवर अलग हैं। कवि और लेखक संजय ग्रोवर दिल्ली में रहते हैं और कभी कभी अभिनय का शौक रखनेवाले संजय ग्रोवर दुबई के एक व्यवसायी हैं। आशा है अगले सप्ताह चौपाल के दोनों सदस्य डॉ. साहब और शालिनी, इतने बेहतर हो जाएँ कि चौपाल में आ सकें। दोनो सदस्यों के लिए बेहतर स्वास्थ्य की कामनाओं के साथ, दाहिनी ओर प्रस्तुत हैं इस सप्ताह के अभिनय पाठ के दो चित्र। बाएँ से दाएँ इनके परिचय इस प्रकार हैं- पूर्णिमा वर्मन, सबीहा मजगाँवकर, संग्राम, सुनील जसूजा, संजय ग्रोवर और प्रकाश सोनी, फोटो प्रवीण सक्सेना ने ली है।

रविवार, 28 फ़रवरी 2010

२६ फरवरी, मुसंदम की सैर

चौपाल में आज का दिन वार्षिक सैर पर मुसंदम जाने का था। फारस की खाड़ी में स्थित इस अंतरीप पर जाने का कार्यक्रम पिछले एक महीने से चल रहा था। शुक्रवार की सुबह मुसंदम के लिए निकलना था और शनिवार की सुबह लौटना था। हालाँकि यह स्थान दुबई से ज्यादा दूर नहीं पर सीमा पार ओमान देश में स्थित होने के कारण पासपोर्ट साथ रखना होता है। मुसंदम तक दुबई से 3 घंटे की ड्राइव इमारात की सबसे सुंदर ड्राइवों में से एक है। लंबे रास्ते में एक ओर सागर तो दूसरी ओर पहाड़ों का साथ सुहावने मौसम को और भी सुखद बनाता हैं। चित्र में दाहिनी ओर इसका एक दृश्य देखा जा सकता है।

मुसंदम का विशेष आकर्षण नौका विहार है। इन्हें डॉल्फिन क्रूज के नाम से भी जाना जाता है। सजी धजी सुविधा संपन्न इन नौकाओं में सैर करते हुए सागर पर कलाबाजियाँ लगाती डाल्फिन मछलियाँ देखने, गोता लगाने और समुद्रतट पर सुस्ताने, खाना पकाने और खाने के सुरक्षित प्रबंध यहाँ की सैर को रोचक बनाते हैं। यह स्थान रोमांचक पर्यटन के शौकीन लोगों में भी बहुत लोकप्रिय है। मछली मारने, गोता लगाने, नौकायन और मोटरबोट तथा वाटर स्कूटर के शौकीन लोग यहाँ सर्दियों में अच्छा समय बिता सकते है। चौपाल के सभी सदस्य इस सैर में शामिल नहीं हो सके थे पर जो लोग शामिल हुए उन्होंने कैसे समय बिताया इसकी खबर रखी है सबीहा के कैमरे ने यहाँ पर।

पाठकों को याद होगा कि हमने एक लेखन कार्यशाला आयोजित की थी इसमें सर्वश्रेष्ठ चुनी गई दो रचनाओं में से डॉ शैलेष उपाध्याय की रचना को यहाँ और अविनाश वाचस्पति की रचना को यहाँ पढ़ा जा सकता है।

रविवार, 21 फ़रवरी 2010

१९ फरवरी, कुत्ते

सुषमा बक्शी के हिंदी रूपांतर में विजय तेंडुलकर के मराठी नाटक कुत्ते के पाठ का दिन था आज। सबसे पहले डॉ उपाध्याय और सबीहा पहुँचे। फिर संग्राम मूफी सुनील और डॉ. लता भी आ गए। नाटक की कथा कुछ हँसी मज़ाक और सामाजिक व्यंग्य से शुरू होकर झटकेदार त्रासदी पर समाप्त होती है। अभी मालूम नहीं है कि इस नाटक का मंचन हम करेंगे कि नहीं लेकिन यह नाटक जन सामान्य को पसंद आएगा या सबकी रुचि का इसको बनाया जा सकता है इसमें संदेह सा लगा। प्रकाश को ऑफिस के काम से आबूधाबी जाना था इसलिए वे अनुपस्थित रहे। रागिनी और शालिनी भी नहीं आए थे। इसलिए पाठ जैसा होना चाहिए था वैसा नहीं हुआ। फिर भी सबने मिलजुल कर नाटक का पाठ पूरा कर के चौपाल को सफल बनाया और विजय तेंदुलकर जैसे लोकप्रिय नाटककार को उनके एक और नाटक से जानने का अवसर का लाभ उठाया।

अक्सर हम कहानियों का पाठ करते हैं। बहुत से सदस्यों को उसमें रुचि नहीं है। बहुत से सदस्यों को नाटक के पाठ में भी रुचि नहीं है। वे केवल तभी आना पसंद करते हैं जब रिहर्सल शुरू हो गया हो या अभिनय पाठ द्वारा चयन प्रक्रिया का दिन हो। अभिनय को मिलजुल कर माँजने, वाक् कला को निखारने, मंच अभिनय के नए गुर सीखने में सदस्यों की रुचि काफ़ी कम है। कुल मिलाकर यह कि जब नाटकों और सीरियलों में बिना कुछ सीखे ही काम मिल जाता है तो ज्यादा दिमाग, समय और श्रम खर्च करने की क्या ज़रूरत है इस प्रकार की सोच है लोगों की। सीरियलों और मँहगे नाटकों में जिस कमी को ध्वनि प्रकाश और तकनीक से पूरा कर लिया जाता है, उसकी व्यवस्था अभी तक हम नहीं करते आए हैं। हमें भी उस व्यवस्था की ओर मुड़ना है या मेहनत की ओर अभी हम यह तय नहीं कर पाए हैं।

शनिवार, 13 फ़रवरी 2010

१२ फरवरी, द परफ़ैक्ट हस्बैंड


आज का दिन काजल ओझा वैद्य के गुजराती नाटक का हिंदी रूपांतर पढ़ने का था। रूपांतर डॉ. शैलेष उपाध्याय ने किया है। अभिनय पाठ के लिए नाटक का आलेख सहयोगियों में बाँट दिया गया था। सभी लोग उपस्थित भी थे। समय कम होने के कारण सिर्फ दो अंकों का पाठ ही किया जा सका लेकिन जितनी देर तक अभिनय पाठ चला हम सब हँसते रहे।

नाटक की कथावस्तु एक ऐसी महिला के आसपास बुनी गई है जिसे सर्वगुण संपन्न एक ऐसे पति की तलाश है जो हर समय उसके आसपास घूमते हुए प्रेम प्रदर्शन करता रहे। जब उसका पति ऐसा नहीं कर पाता तो वह बाज़ार से एक रोबोट खरीद लाती है। फिर तो हास्य और व्यंग्य की असीमित संभावनाएँ खड़ी हो जाती हैं। यों तो रोबो के आने से पहले भी नाटककार ने उपभोक्ता संस्कृति और उधार के आभिजात्य पर व्यंग्य कसने का कोई अवसर नहीं छोड़ा है। अभी तय नहीं है कि हम यह नाटक करेंगे या नहीं लेकिन यह तो निश्चित है कि अगर यह नाटक हुआ तो लोग हँसते हँसते पागल हो जाएँगे। व्यंग्य को परिस्थितियों और घटनाओं के साथ उलझाकर रोचक ढंग से प्रस्तुत करना बड़ा ही चुनौती भरा काम है पर यह नाटक निश्चय ही ऐसी चुनौतियों को पूरा करता है। कामदी नाटकों की माँग यों भी बनी ही रहती है। आशा है हम जल्दी ही इसका मंचन करेंगे। आज उपस्थित लोगों में थे डॉ. उपाध्याय, प्रकाश, कौशिक, सबीहा, मेनका, शालिनी, डॉ. लता, सुनील और बहुत दिनों बाद अवतरित मूफ़ी।

शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2010

५ फरवरी, रत्नाकर मतकरी का दुभंग


आज की चौपाल में रत्नाकर मतकरी के दुभंग का पाठ होना था। सुबह से तेज़ हवा चल रही थी और लगता था बाहर बैठना संभव न होगा शायद बारिश आ जाए। लेकिन समय सुहावना बना रहा। लोग कुछ देर से पहुँचे पर जिस जिस को पाठ के लिए बुलाया गया था वे सब आ गये। रत्नाकर मतकरी के इस मराठी नाटक का हिंदी रूपांतर किया था सरोजिनी वर्मा ने। नाटक की कहानी जानी पहचानी सी थी। यह स्वाभाविक भी था क्यों कि नाटक पुराना था फिर भी एक मसाला फ़िल्म सी कहानी अधिकतर लोगों को मनोरंजक लगी।

अभिनय पाठ में शिवराम की भूमिका के संवाद संग्राम ने, दमयंती की भूमिका के संवाद कविता ने, दीवान की भूमिका के संवाद कौशिक ने, शकुन की भूमिका के संवाद शालिनी ने, देवदत्त की भूमिका के संवाद डॉ. उपाध्याय ने और बापूजी की भूमिका के संवाद सुनील ने पढ़े। नाटक काफ़ी लंबा था और इसको पढ़ना कुछ देर से शुरू किया गया था इसलिए केवल दो अंक ही पढे जा सके। तीसरे अंक की कहानी डॉ. उपाध्याय ने संक्षेप में सुना दी। सदा की तरह कुछ बातचीत के साथ चाय पीते हुए चौपाल समाप्त हुई। आज उपस्थित लोगों में थे- संग्राम, कौशिक, सुनील, रागिनी, सबीहा, डॉ. लता, कविता, शालिनी, प्रकाश और डॉ. उपाध्याय। फोटो प्रवीण जी ने लिया।