शुक्रवार, 26 मार्च 2010

२२ मार्च शरद जोशी का एक था गधा

पिछले सप्ताह शरद जोशी के नाटक एक था गधा उर्फ अल्लादाद खाँ का पाठ न हो सकने के कारण कार्यक्रम सूचना के अनुसार इस सप्ताह इस नाटक के पाठ की बारी है। कुछ कारणों से कार्यक्रम का विवरण अभी नहीं मिला है। आशा है विस्तृत सूचना मंगलवार तक प्रकाशित हो सकेगी। (खेद है कि अपरिहार्य कारणों से यह चौपाल नहीं लग सकी)

शुक्रवार, 19 मार्च 2010

१९ मार्च, मल्हार के साथ बातचीत में


इस सप्ताह नियत कार्यक्रम के अनुसार शरद जोशी के नाटक एक था गधा उर्फ अल्लादाद खाँ का पाठ होना था। मौसम गरम होने लगा है। सबके बैठने का प्रबंध बाहर ही था लेकिन आज ऐसा लगा कि शायद बाहर गोष्ठी करने का यह इस मौसम का अंतिम दिन है। सबसे पहले डॉ. उपाध्याय आए, उन्होंने बताया कि सबीहा आज व्यस्त हैं और प्रकाश किसी व्यस्तता के कारण देर से आने वाले हैं। थोड़ी देर में डॉ. लता पधारीं और चिकित्सा की दुनिया में होने वाली देशी विदेशी सेमीनारों पर एक रोचक वार्तालाप सुनने का अवसर मिला। थोड़ी देर में प्रकाश आ गए। क्या हम नाटक का पाठ शुरू करें? संवाद पढ़ने वाले सभी लोग तो नहीं आए थे।


शायद ऊष्मा आज न भी आए तो हमें पाठ शुरू कर देना चाहिए इतनी बात हुई ही थी कि ऊष्मा, तृप्ति और मयूरा आ गयीं। वे मल्हार नामक संगीत संस्था की सदस्या हैं, जो अक्सर संगीत के कार्यक्रम प्रस्तुत करते रहते हैं। संस्था के अध्यक्ष जोगीराज सिकिदार हैं। वे इस बार सूफ़ी संगीत पर आधारित एक कार्यक्रम करना चाहते हैं जिसके कुछ अंश नाट्य आधारित होंगे। अगर यह योजना कार्यान्वित हुई तो शायद थियेटरवाला इसमें नाट्य सहयोग करेंगे। थोड़ी देर में कौशिक भी पहुँच गए। सारा समय इसके विभिन्न पहलुओं पर बातचीत करते हुए गुज़रा और नाट्य पाठ नहीं हो सका। शायद नाटक हम अगली बार पढ़ेंगे। चित्र में बाएँ से तृप्ति, डा.लता, डॉ.उपाध्याय, ऊष्मा, प्रकाश, मैं और मयूरा। जिस समय फोटो ली गई उस समय तक कौशिक नहीं आए थे इसलिए वे चित्र में नहीं हैं। अलबत्ता ऊष्मा का कॉफी मग उनके साथ ही चाय से पहले हाजिर हो गया था जो मेज की शोभा बढ़ा रहा है।

शनिवार, 13 मार्च 2010

१२ मार्च, बकरी के साथ ढेर से अतिथि



इस सप्ताह चौपाल अतिथियों से भरा रहा। अवसर था सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के नाटक बकरी के अभिनय पाठ का। यूके के डार्बी नगर से गीतांजलि के सहयोगी सदस्य डॉ. संजय सक्सेना और उनकी पत्नी डाक्टर एलिसन के आने का कार्यक्रम पहले से तय था। एक दिन पहले आबूधाबी से कथाकार कृष्ण बिहारी ने भोपाल से पधारे कवि और गीतकार यतीन्द्रनाथ राही और निर्मला जोशी आने की सूचना भी दी। सुबह सबसे पहले प्रकाश सोनी आए। फिर डॉ. उपाध्याय, सबीहा और शालिनी आ गए। बकरी का पाठ समय से प्रारंभ कर दिया गया। दो अंकों के पूरा होते ही आबूधाबी से अतिथि भी आ गए।

दोपहर के बारह बज रहे थे, हमने चाय का अंतराल लिया और सभी अतिथि इसमें सम्मिलित हुए। दिन को और सफल बनाते हुए मध्य प्रदेश महिला जागृति परिषद की अध्यक्षा कवयित्री निर्मला जोशी ने संस्था की ओर से भेजी गई शॉल पहनाई तो मुझे भारत की सम्मान बाँटने की संस्कृति की स्मृति ताज़ा हो आई। काश मैंने भी कुछ तैयारी रखी होती तो अतिथियों को भी सम्मानित किया जा सकता लेकिन ऐसा संभव न हो सका। यू.के. से पधारे अतिथियों को दुबई में कुछ मित्रों से मिलना था और आबूधाबी से पधारे अतिथियों का दोपहर का भोजन भी दुबई में एक मित्र के यहाँ निश्चित था तो सबने विदा ली। अच्छा यह हुआ के आज बीच बीच में आती जाती तमाम रुकावटों के बावजूद चौपाल के सदस्यों ने नाटक का पाठ पूरा किया।


ऊपर के चित्र में बाएँ से सबीहा मजगाँवकर, यतीन्द्रनाथ राही, आबूधाबी से पधारे एक अतिथि, डॉ. एलिसन, शालिनी, सुनील, डॉ.उपाध्याय, प्रकाश, डॉ. संजय सक्सेना, और कृष्ण बिहारी। बीच के चित्र में सामने दाहिनी ओर भोपाल से पधारी गीतकार निर्मला जोशी और उनके पीछे मैं। नीचे के चित्र में बाएँ से प्रकाश सोनी, सबीहा मजगाँवकर, पीछे सुनील, निर्मला जोशी शॉल पहनाते हुए, प्रवीण सक्सेना, पीछे डॉ.एलिसन, शालिनी और कृष्ण बिहारी।

रविवार, 7 मार्च 2010

५ मार्च, कंजूस


चौपाल में आजकल प्रति सप्ताह नाटकों के अभिनय पाठ का क्रम चल रहा है। इस सप्ताह मौलियर के नाटक कंजूस का हिंदी रूपांतर पढ़ा गया। रूपांतरकार है हज़रत आवारा। मुस्लिम परिवेश में रचा-बसा यह एक हास्य नाटक है। इन पाठों का आलेख मंगल-बुध तक ईमेल से भेज दिया जाता है। अधिकतर पीडीएफ प्रारूप में। एक फाइल में पात्रों के पाठ निर्धारित कर के भी संलग्न कर दिए जाते हैं। इस पाठ के लिए उपस्थित थे इसके पात्र-निर्धारण इस प्रकार था- निर्देश-प्रकाश, नासिर-सुनील जसूजा, अज़रा-सबीहा, फर्रुख-संग्राम, मिर्जा-डॉ.साहब, नंबू-कौशिक, दलाल-प्रकाश, फरजाना-पूर्णिमा, खेड़ा-प्रकाश, अलफ़ू-सुनील, मरियम-पूर्णिमा, हवलदार-प्रकाश और असलम-संग्राम। ये पाठ एक तरह से वाक्अभिनय के अभ्यास जैसे होते हैं। प्रस्तुति जैसे नहीं। समय के साथ इन पाठों से यह स्पष्ट होगा कि अलग अलग पात्रों में अलग अलग सदस्य अपनी आवाज़ किस प्रकार ढाल सकते हैं। अभी इन पाठों पर अधिक ध्यान नहीं दिया जाता, केवल नाटक को पढ़ने जैसा भाव रहता है पर आशा है भविष्य में ये पाठ सदस्यों के लिए गंभीर अभ्यास की नींव बनेंगे।

जिन सदस्यों के लिए जो भूमिकाएँ निर्धारित की गयी थीं वे सब तो उपस्थित नहीं थे। डॉ.साहब के पैर में मोच आ गई थी और उनका टखना प्लासटर में है। शालिनी के हाथ पर प्लास्टर है। व्यस्त जीवन में जो एक छुट्टी का दिन मिलता है उसे निश्चय ही आराम में लगाकर उन्होंने अच्छा काम किया। इस बार अचानक संजय ग्रोवर साहब उपस्थित थे। अक्सर पाठक उन्हें अभि-अनु के कवि और व्यंग्यकार संजय ग्रोवर समझते हैं लेकिन ये संजय ग्रोवर अलग हैं। कवि और लेखक संजय ग्रोवर दिल्ली में रहते हैं और कभी कभी अभिनय का शौक रखनेवाले संजय ग्रोवर दुबई के एक व्यवसायी हैं। आशा है अगले सप्ताह चौपाल के दोनों सदस्य डॉ. साहब और शालिनी, इतने बेहतर हो जाएँ कि चौपाल में आ सकें। दोनो सदस्यों के लिए बेहतर स्वास्थ्य की कामनाओं के साथ, दाहिनी ओर प्रस्तुत हैं इस सप्ताह के अभिनय पाठ के दो चित्र। बाएँ से दाएँ इनके परिचय इस प्रकार हैं- पूर्णिमा वर्मन, सबीहा मजगाँवकर, संग्राम, सुनील जसूजा, संजय ग्रोवर और प्रकाश सोनी, फोटो प्रवीण सक्सेना ने ली है।