शुक्रवार, 30 जनवरी 2009

३० जनवरी, मज़े का मौसम


बहुत दिनों के बाद आज मौसम सुहावना था। चौदह का रिहर्सल सुबह साढ़े नौ बजे शुरू हो गया। निर्देशक सबीहा और कलाकार मेनका व मूफ़ी समय पर पहुँचे। बेटी का पात्र निभा रही ऊष्मा किसी कारण पूरे रिहर्सल में नहीं आ सकी। एक रिहर्सल के बाद सबीहा ने कहा बहुत बुरा बहुत बुरा... पर मुझे लगा कि काफ़ी अच्छा हो रहा है। खास पात्र तो मिसेज़ चावला ही हैं जिसका अभिनय मेनका कर रही है। वह काफ़ी अच्छा उभरकर आने लगा है। चौदह का प्रदर्शन चौदह तारीख़ को होना है। यानी चौदह दिन बाकी हैं लगता है तबतक सब ठीक हो जाएगा। रिहर्सल के कुछ फ़ोटो लिए हैं न...न... सब नहीं, एक यहाँ लगाती हूँ। मेनका और मूफ़ी मिसेज़ चावला और नौकर के पात्रों में।

रिहर्सल पूरा होते होते डॉ. उपाध्याय, अश्विन और प्रकाश सोनी आ पहुँचे थे। जल्दी ही अली भाई, कौशिक और अनुज सक्सेना भी आ गए। मेनका, सबीहा मैं और मूफ़ी पहले से ही थे। आज के साहित्य पाठ का कार्यक्रम शुरू हुआ। पहला पाठ था शरद जोशी के व्यंग्य उत्तर दिशा और शंख बिन कुतुबनुमा का, भावपाठ प्रकाश सोनी ने किया। दूसरे व्यंग्य का शीर्षक था अतिथि तुम कब जाओगे जिसे मूफ़ी ने पढ़ा। तीसरा व्यंग्य हरिशंकर परसाईं का था द्रोणाचार्य और अंगूठा जिसे डॉ.शैलेष उपाध्याय ने पढ़ा। इसके बाद सबने चाय पी और जुलूस का पाठ शुरू हुआ।

इस बीच मीर और इरफ़ान भी आ पहुँचे तो सब अपनी अपनी मुद्रा में फ़र्श पर आ गए। जुलूस का रिहर्सल दोपहर डेढ़ बजे तक जारी रहा। कुछ फ़ोटो जलूस के रिहर्सल के भी हैं पर उन्हें अभी नहीं प्रकाशित करेंगे। पहले तो 14 फरवरी को चौदह का मंचन होना है। जुलूस की कहानी उसके बाद शुरू करेंगे। हाँ दाहिनी ओर फ़ोटो है पाठ के ज़रा पहले की...भई पाठ और रिहर्सल तो चलते ही रहेंगे कुछ ज़रूरी बातें भी हो जाएँ... प्रकाश सोनी समूह को संबोधित करते हुए...

गुरुवार, 29 जनवरी 2009

३० जनवरी के कार्यक्रम

शुक्रवार 30 जनवरी को चौपाल में सुबह 9:30 से अगले मासिक नाटक चौदह का रिहर्सल होगा। 10:30 से 11:30 तक शरद जोशी की कुछ व्यंग्य रचनाओं का पाठ होगा। 11:30 से 12:00 चाय का समय होगा और इसके बाद जलूस का रिहर्सल होगा। सभी सादर आमंत्रित हैं।

शनिवार, 24 जनवरी 2009

२३ जनवरी, सर्दियों में पिकनिक


पिछले कुछ दिनों से मौसम का मिज़ाज ठीक नहीं रहा है। शुक्रवार को भी हवा तेज़ और ठंडी थी ऊपर से समंदर का किनारा। सर्दियों के मज़े लेते शुक्रवार चौपाल के सदस्य, उनके मित्र और परिवार ममज़ार पार्क पहुँचे और एक बार्बेक्यू चूल्हे को कब्ज़े में कर के उसके आसपास अड्डा जमाया। चटाइयाँ बिछा दी गई और खाने-पीने की चीज़ें निकाल ली गईं। बच्चों ने खेलना शुरू कर दिया और परिवार व मित्र एक दूसरे के परिचय में लग गए।

दूर पर लगे किसी फ़िलिपिनो समूह के टेंट से गिटार का संगीत वातावरण में घुल रहा था तो दूसरी ओर किसी अरबी समूह का लाव लश्कर कुर्सी मेज़ और गार्डेन अम्ब्रैला के साए तले अपना साम्राज्य जमाए था। पिकनिक है तो क्या रिहर्सल नहीं होगा? जलूस के निर्देशक बिमान दा भारत की यात्रा पर हैं। उनकी अनुपस्थिति में बच्चों की क्लास ले रहे हैं अली भाई। शुरू का हिस्सा लगभग तैयार है पर उसका भी रिहर्सल तो होना है ना? बाकायदा रिहर्सल हुआ और अंतिम दृश्यों की रीडिंग भी। चित्र में नाटक के प्रति समूह की लगन देखी जा सकती है। कैसे मनोयोग से सब आपना अपना पाठ सामने रखे, पढ़ने में लगे हैं। लगे रहो बच्चों, मेहनत का फल मीठा होता है।

पिकनिक के समय खाने पीने और मौज मस्ती की कमी नहीं पर जबतक गरम गरम कवाब और टिक्के न हों बार्बेक्यू का मज़ा नहीं, सो सुलग चला चूल्हा और रसोई में उस्ताद महिला मंडली ने संभाल लिया मोर्चा। कभी किसी अभिनेत्री को खाना पकाते देखा है? नहीं देखा न? तो फिर देखिए देखिए ये अभिनेत्रियाँ किस शौक से सीक पर कवाब का मसाला लपेट रही हैं और किस मनोयोग से टिक्के सेंक रही हैं। देखो! देखो! वह सीक पलटो टिक्का कहीं जल न जाए! भई, महिलाओं के बिना कही ढंग का खाना पकता है!

खाने के साथ साथ बहुत कुछ और भी पकता रहा... अपना बल्लभपुर का संजीव है ना जो आजकल बाहरीन में हैं, वह बहुत दिनो बाद इस पिकनिक पर दिखा और चूल्हे के पास जमा रहा... प्रकाश जापानी पंखे से देर तक अरबी शोलों को हवा देता रहा, आमिर का लाल झोला हर फ़ोटो में हीरो की तरह चमकता रहा... अली भाई के जूते साँवली सलोनी रेत को रंगीनी का पाठ पढ़ाते रहे... और डॉ.साहब अंत तक पानी के डब्बे की सेहत को संभालते रहे...। कुल मिलाकर बहुत ऐश हो गई... दोपहर ढलने को आई, चलो पकाने वालों तुम भी कुछ खा लो... और सब मिल बैठे खाने के अंतिम दौर में जो गरमागरम संवादों और ठंडी हवा के साथ देर तक चलता रहा।

मंगलवार, 20 जनवरी 2009

२३ जनवरी के कार्यक्रम

शुक्रवार 23 जनवरी को प्रातः कालीन गोष्ठी इस बार नहीं होगी। सभी सदस्यो के लिए सबीहा ने ममज़ार पार्क पर पिकनिक का आयोजन किया है। इस पिकनिक में शामिल होने के लिए सबीहा के फोन पर संपर्क करें।

शुक्रवार, 16 जनवरी 2009

१६ जनवरी, बारिश के बावजूद

१६ जनवरी की चौपाल की शुरूवात ठीक नहीं रही। रात भर तेज़ बारिश हुई। सर्दी काफ़ी बढ़ गई। उसका पता भी ऐसे चला कि हमारा सहायक निज़ाम अपना जैकेट पहने दिखाई दिया। वह कभी जैकेट नहीं पहनता और बड़ी शान से कहता है सर्दी बूढ़ों को लगती है, मुझे सर्दी नहीं लगती। सो निज़ाम मियाँ जैकेट पहने बड़ा सा ब्रश लिए धड़ाधड़ छत का पानी निकाल रहे थे। यहाँ बारिश साल में तीन-चार दिन ही होती है इसलिए छतों के ढाल ठीक हों इस पर ध्यान नहीं दिया जाता। खुले में जहाँ हम चौपाल के लिए बैठते है वहाँ भी पानी भरा हुआ था। निज़ाम जी बोले,
"यहाँ आज चौपाल नहीं लग सकती सबको मंदिर में बैठना होगा।"
"लेकिन मंदिर में भी तो पानी चला जाता है। मैंने अंदर जाकर देखा पानी के दो घेरे ही थे। काँच की दीवार छींटों पर जमी हुई धूल से बदरंग थी। निज़ाम ने 10-15 मिनट में सब दुरुस्त कर दिया।
यों तो चौपाल 10:30 पर शुरू होती है पर नाटकों की शृंखला के कारण सबीहा अपने अगले नाटक चौदह का रिहर्सल 9:30 से करना चाहती थी।

पिछले 4 दिनों से बुखार में हूँ, पर सोचा मूड ठीक करने का यही सबसे अच्छा तरीका है कि कपड़े बदलो और पहुँच जाओ सबके बीच। सबसे पहले मेनका पहुँची वह इस नाटक की मुख्य पात्र है। उसका रोल संभ्रांत परिवार की एक फ़ैशनेबल और नकचढ़ी महिला का है। फिर सबीहा और मूफ़ी भी आ गए। चौदह के रिहर्सल के बाद नाटक के पाठ के समय मैं चौपाल में शामिल हुई।

मंदिर में कोई कालीन नहीं है। टाइल भयंकर ठंडे थे चादर बिछाने के बावजूद मुझे काफ़ी सर्दी महसूस हुई। सोचा अब अपने कमरे में चलना चाहिए नहीं तो बुखार 5 दिन में भी ठीक नहीं होगा। इस तरह आज चौदह का रिहर्सल और जलूस का रिहर्सल छूट गया। इनके चित्र आज रह ही गए। पर कोई बात नहीं ये रिहर्सल सप्ताह के अन्य दिन भी होते रहेंगे। तबीयत ठीक रही तो अगले शुक्रवाले से पहले भी रिहर्सल के कुछ चित्र यहाँ डाल सकूँगी।
आज की अदरक वाली हिन्दुस्तानी चाय प्रकाश और सुनील ने बनाई। प्रकाश को तो आप जानते ही हैं एक दिन सुनील से भी परिचय हो जाएगा। परिचय तो सभी से कराना है पर धीरे धीरे। आज की गोष्ठी में प्रकाश, सुनील, डॉ उपाध्याय, सबीहा, मेनका, मुहम्मद अली, महबूब हसन रिज़वी, मूफ़ी, इरफ़ान, मीर, आमिर और कौशिक शामिल हुए। कुल मिलाकर ये कि बारिश के बावजूद गोष्ठी सफल रही।

हाँ चित्रों में लोगों से परिचय करवा दूँ पहले चित्र में बाएँ से डॉ.उपाध्याय, सबीहा और मूफ़ी। दूसरे चित्र में बाएँ से चश्मे में मुहम्मद अली, महबूब हसन रिज़वी, मेनका और डॉ.उपाध्याय। तीसरे चित्र में बाएँ से मूफ़ी, इरफ़ान, मीर, मैं, मुहम्मद अली (पूरे नहीं दिखते) और रिज़वी साहब(पीछे से)। कुछ लोगो के चित्र नहीं आ सके। खैर अगली बार...

मंगलवार, 13 जनवरी 2009

१६ जनवरी के कार्यक्रम

शुक्रवार १६ जनवरी को चौपाल में सुबह १०:३० पर शंकर शेष के नाटक "आधी रात बाद" का पाठ होगा और इस नाटक को वार्षिक शृंखला में सम्मिलित करने की संभावनाओं पर विचार होगा। इसके बाद आगामी प्रस्तुतियों "जुलूस" और "चौदह" का रिहर्सल होगा। जो भी आ सकें सबका स्वागत है।

शुक्रवार, 9 जनवरी 2009

९ जनवरी की प्रस्तुति- दस्तक


9 जनवरी की शुक्रवार चौपाल वर्सिलीज़ होटल के अबू शगारा क्लब में लगी जहाँ कुछ विशेष अतिथियों के सामने थियेटरवाला की ओर से दस्तक नाटक का मंचन किया गया। अतिथियों का स्वागत और कार्यक्रम का संचालन डॉ. शैलेश उपाध्याय ने किया। मुख्य अतिथि लंदन निवासी प्रवासी कथा लेखिका ज़किया ज़ुबैरी इस कार्यक्रम के लिए विशेष रूप से पधारी थीं। मैंने उन्हें दर्शकों से मिलवाया और सबसे उनका परिचय करवाया। नाटक से पहले मुहम्मद अली द्वारा ज़किया जी की कहानी मारिया के भाव-पाठ ने दर्शकों को मुग्ध कर दिया।
इसके बाद दस्तक का मंचन हुआ। गंभीर प्रकृति के इस एक घंटे लंबे नाटक में दो एक दृश्य ऐसे भी थे जो दर्शकों के चेहरों पर मुस्कान ले आए। 70-75 दर्शकों की क्षमता वाला यह हाल दर्शकों से पूरा भरा था। सीमित साधनों वाले इस मंच पर प्रकाश, सेट और संगीत की व्यवस्था सुरुचिपूर्ण रही। नाटक के बाद आधे-घंटे का समीक्षा सत्र भी हुआ जिसमें दर्शकों ने कहानी और नाटक से संबंधित प्रश्न पूछे, सुझाव दिए और विचार प्रस्तुत किए। कहानी से संबंधित प्रश्नों के उत्तर लेखिका ज़किया जी ने दिए और नाटक से संबंधित प्रश्नों के उत्तर अभिनेता व निर्देशक प्रकाश सोनी ने। दर्शकों द्वारा मुहम्मद अली के कथा-पाठ और दस्तक के अभिनय की भूरि भूरि प्रशंसा की गई। कार्यक्रम के अंत में सबके लिए चाय की व्यवस्था की गई थी। कार्यक्रम के चित्र बाईं ओर स्लाइड शो में देखे जा सकते हैं।

रविवार, 4 जनवरी 2009

९ जनवरी को दस्तक का मंचन


यह सप्ताह हम सबके लिए विशिष्ट है क्यों कि इस सप्ताह से एक विशेष शृंखला का आरंभ हो रहा है। शृंखला है नाट्य-उत्सव की, जिसके अंतर्गत कुछ थियेटर समूह मिलकर दुबई में हर माह लगभग एक घंटे की एक प्रस्तुति देंगे। इसके लिए एक छोटा थियेटर ढूँढा है जिसमें ७०-८० लोगों के बैठने की व्यवस्था है।

९ जनवरी को पहले नाटक दस्तक का मंचन होगा जो थियेटरवालाज़ की ओर से है। नाटक का विषय तो इतना अनोखा नहीं पर इसके प्रतिपादन (ट्रीटमेंट) में नयापन है। दो लेखकों को एड्स पर एक नाटक लिखने का अनुबंध मिलता है। नाटक में क्या लिखा जाए, क्या दृश्य हों, क्या कहानी हो इन्हीं सब बातों पर चर्चा करते हुए नाटक उनके जीवन में प्रवेश कर जाता है। वे लेखक होते हुए भी नाटक के पात्रों का दर्द महसूस करते हैं और उनकी संवेदनाओं में बहते उतरते हैं।

पहले शो में प्रवेश मुफ़्त है यानी टिकट नहीं है, तो दुबई और आसपास के लोग इसमें आराम से आ सकते हैं। नाटक दुबई के वर्सिलीज़ होटल में स्थित अबू नवाज़ क्लब के मंच पर दोपहर चार बजे से शुरू होगा। कलाकार है प्रकाश सोनी और कौशिक साहा। विशेष विवरण के लिए दाहिनी ओर के चित्र को क्लिक करें। इसमें नाटक के विषय में विस्तृत जानकारी दी गई है। (शुक्रवार के सभी सक्रिय सदस्यों से यहाँ भेंट की जा सकती है और अगर आप भी साहित्य या नाटक में रुचि रखते हैं तो हमारी टीम के सदस्य बन सकते हैं।)

दस्तक के मंचन के उपलक्ष्य में शारजाह में सुबह 10:30 बजे होने वाली गोष्ठी 9 जनवरी को नहीं होगी।

यह भी देखें


शुक्रवार, 2 जनवरी 2009

२ जनवरी, साल की पहली गोष्ठी


शुक्रवार चौपाल पर आज पठन-पाठन का विषय था अशोक चक्रधर की कविताएँ। समूह में सदस्यों की उपस्थित कम रही। कुछ नए साल के उत्सव की थकान और कुछ मुहर्रम के वातावरण के कारण। कविताओं का पठन पाठन सबीहा मज़गाँवकर, प्रकाश सोनी, कौशिक साहा, डॉ. शैलेष उपाध्याय और मैंने किया। इसके बाद दस्तक का रिहर्सल हुआ। यह एक घंटे चलने वाला नाटक है जिसे हम थियेटरवाला के बैनर तले 9 जनवरी को दुबई में वर्सिलीज़ होटल में मंचित करने जा रहे हैं। (चित्र में बायीं ओर प्रकाश सोनी और दाहिनी ओर कौशिक साहा नाटकीय मुद्रा में) यह कार्यक्रम शारजाह के सहज मंदिर में होता है इसलिए यहाँ कोई जूते पहने नहीं दिखाई देगा।


शुक्रवार चौपाल शारजाह संयुक्त अरब इमारात में प्रति शुक्रवार सुबह 10:30 से 12:30 बजे तक चलने वाली साप्ताहिक गोष्ठी है। इसका प्रारंभ सन 2007 में मई माह के अंतिम शुक्रवार को हुआ था। विशेष रूप से अली भाई और प्रकाश के प्रयत्नों से। अली भाई यानी मुहम्मद अली जो इमारात की दुनिया में अपनी आवाज़ के लिए जाने जाते हैं। वे यहाँ रेडियो और विज्ञापन का जाना माना नाम हैं। प्रकाश यानी ओमप्रकाश सोनी, हैं तो प्रकाशन के व्यवसाय में पर उनकी अभिनय यात्रा मुंबई में नादिरा बब्बर जैसी प्रतिभावान निर्देशक के साथ शुरू हुई। वे उनके बेगमजान जैसे लोकप्रिय नाटकों में अभिनय कर चुके हैं और पिछले लगभग पाँच बरसों से शारजाह में हैं। इस गोष्ठी में अनेक नाटक समूहों के प्रतिनिधि, साहित्य व रंगकर्मी भाग लेते हैं। नृत्य अभिनय और साहित्य की कार्यशालाएँ होती हैं और शारजाह पधारे विशिष्ट लोगों से मिलने का सौभाग्य भी हमें मिलता है।


डॉ.शैलेश उपाध्याय और सबीहा मज़गांवकर इस गोष्ठी का नियमित हिस्सा हैं। डॉ उपाध्याय अभिनय और साहित्य में रुचि रखते हैं। सबीहा हम सबमें छोटी है लेकिन वह सबकी बॉस है यानी हमारे सब कामों की क्रियेटिव डायरेक्टर। नाटकों के रिहर्सल की तिथियाँ और स्थान तय करना, कलाकारों को संयोजित करना और हज़ारों कामों को सफलता पूर्वक संभालना उसके बाएँ हाथ का काम है। इसके अतिरिक्त प्रतिबिम्ब के महबूब हसन रिज़वी और डेट के अनुज सक्सेना भी इस गोष्ठी में लगभग नियमित रूप से आते रहे हैं। परदेस के व्यस्त जीवन में सब लोग इस प्रकार की गंभीर गोष्ठियों के लिए समय निकाल सकें यह संभव नहीं फिर भी आमतौर पर गोष्ठी में उपस्थित लोगों की संख्या 10 के आसपास रहती है। जब नाटकों के अभ्यास और कार्यशालाएँ होती हैं तो स्वाभाविक रूप से इनकी संख्या बढ़ जाती है और लगभग 20-25 तक हो जाती है।