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२७ मार्च, एक विशेष दिन, विश्व रंगमंच दिवस को विशेष ढंग से मनाने हम जुड़े इस शुक्रवार। भारत से दो विशेष अतिथि कवियों श्रीमती निर्मला जोशी और श्री यतीन्द्र राही को लेकर पधारे आबू धाबी से कृष्ण बिहारी। गोष्ठी के प्रारंभ में प्रकाश सोनी ने विश्व रंगमंच दिवस और विश्व रंगमंच दिवस के संदेशों के विषय में जानकारी दी। साथ ही कुछ विश्व रंगमंच दिवस के संदेशों को पढ़कर सुनाया भी। 2009 का संदेश ऑगस्टो बोल का था जिसे सबीहा ने पढ़ा। 2007 का संदेश महा महिम शेख डॉ. सुल्तान बिन मुहम्मद अल कासिमी का था जिसे मिलिन्द तिखे ने पढ़ा। 2002 का संदेश गिरीश कर्नाड का था जिसे मेनका ने पढ़ा। सब संदेशों का सार यह कि रंगमंच हमें सुसंस्कृत बनाता है, यह हमारी संस्कृति की पहचान है, हमारी अभिव्यक्ति का सबसे परिष्कृत रूप है और हमारे मन को प्रफुल्लता से भर देता है। चित्र में आज के अतिथि बाएँ से निर्मला जोशी, कृष्ण बिहारी, संदीप कुमार पांडेय और यतीन्द्र राही।
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डॉ.शैलेष उपाध्याय ने शरद जोशी का एक व्यंग्य पढ़ा, ऐजाज़ ने कुछ रचनाएँ प्रस्तुत कीं। कुछ नवगीत मैंने सुनाए, कृष्ण बिहारी ने अपनी कहानी सुनाई, निर्मला जी और राही जी के गीत मुक्तक और कविताएँ हुईं। कुल मिलाकर दिन कवितामय रहा। चाय हुई और बहुत सी बातचीत भी। चित्र में बाएँ से- महबूब हसन रिज़वी, मीर, शांति, मिलिन्द तिखे, ऐजाज़ और मिन्हास। जो लोग चित्र में दिखाई नहीं दे रहे हैं उनमें मेरे अतिरक्त थे- डॉ. शैलेष उपाध्याय, उमेश, दारा, मेनका, प्रकाश, सबीहा, ज़ुल्फ़ी और खुर्शीद आलम। आगामी प्रस्तुतियों के विषय में कोई बात करने का समय नहीं रहा। तो वह सब ... अगली बार...