विस्तृत विवरण लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
विस्तृत विवरण लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शनिवार, 13 जून 2009

१२ जून, कम उपस्थिति ज्यादा बातें।


यह सप्ताह हम तुम और गैंडा फूल के प्रदर्शन का है। अधिकतर रिहर्सल दुबई में ही चल रहे हैं। क्यों कि कलाकार दुबई के हैं। कुछ लोग भारत गए हैं या अन्य किसी देश। इस सबके चलते इस बार चौपाल में उपस्थित कम रही। बहुत से विषयों पर चर्चा हुई जिसमें सबसे पहले हबीब तनवीर तथा सड़क दुर्घटना में दिवंगत ओमप्रकाश आदित्य, नीरज पुरी और लाडसिंह गुर्जर के श्रद्धांजलि दी गई। फ़िल्म सीरियलो, नाटकों तथा फिल्मों की आधुनिक शैली व उनके बदलते रूप पर बातचीत हुई। पुराना मंच बनाम नया मंच पर लंबी बहस भी हुई।

कार्यक्रम के अनुसार आज चरणदास चोर का पाठ होना था पर किसी का वैसा मूड बना नहीं। आज उपस्थित लोगों में थे- प्रकाश, दिलीप परांजपे, मेनका, कौशिक, मैं और प्रवीण सक्सेना। एक नए मेहमान भी थे मुस्तफ़ा। कौशिक देर से आए थे। वे हम तुम की प्रकाश व्यवस्था और संगीत को लेकर प्रकाश से बात करते रहे। चौपाल थोड़ा देर से शुरू हुई थी। १ बजे खतम हुई। लंदन से तेजेन्द्र शर्मा और ज़किया ज़ुबैरी ने थियेटर वाला के लिए कुछ धनराशि भेजी थी वह आज उन्हें दे दी गई। इसका उपयोग अगले प्रदर्शन में हो सकेगा।

शनिवार, 6 जून 2009

५ जून, नई समस्याएँ नए दोस्त

यह सप्ताह कुछ विशेष समस्याओं के सुलझाने का था। जिस थियेटर में हम लगातार बुकिंग कर रहे हैं उसका प्रबंधन बदल गया है और अब चूँकि टेक्निकल स्टाफ़ का समय सुबह १० से ५ बजे तक का ही है, शाम को शो करने के हमें तकनीकी सहयोग के ओवर टाइम के पैसे अपने पास से देने होंगे। ओवर टाइम का मूल्य उतना ही है जितना एक दिन की थियेटर बुकिंग का। कुल मिलाकर यह कि शाम को शो करने के लिए अब हमें दुगना खर्च करना होगा। इस सबसे निबटने के सबने मिलकर दो तरीके खोजे हैं। ११ वाले शो की तारीख बढ़ाकर धनस्रोतों को बेहतर किया जाय और आगे की प्रस्तुतियों के लिए निमंत्रण-पत्र बंद कर दिए जाएँ। कुछ और भी विचार हैं। पर फिलहाल दो नाटक तैयार हैं 'हम तुम' और 'गेंदा फूल' (या गेंडाफ़ूल)। इन्हें अब ११ जून के स्थान पर १८ जून को मंचित होना है। आशा है तबतक सारी व्यवस्था हो जाएगी। पोस्टर तैयार हैं निमंत्रण पत्र का डिज़ाइन भी बन गया है। अच्छा है छपकर नहीं आ गया तिथि को बदलना जो है।

आज की चौपाल में कम लोग थे- रागिनी, मेनका, शांति, प्रकाश और कौशिक। दो नए लोग पहली बार आए थे। मनोज पाटिल और उनकी पत्नी बिंदु पाटिल। दोनों मराठी नाटकों के क्षेत्र में सक्रिय और अनुभवी हैं। ये ऐसे दंपत्ति हैं जो पति-पत्नी दोनों ही नाटकों के क्षेत्र में हैं। ऐसा काफ़ी कम देखने में आता है। चौपाल के कार्यक्रम का प्रारंभ अशोक चक्रधर के व्यंग्य जय हो की जयजयकार से शुरू हुआ जिसे कौशिक साहा ने पढ़ा, इसके बाद अनूप शुक्ला का व्यंग्य 'होना चियरबालाओं का' को प्रकाश सोनी ने पढ़ा। फिर खजूर में अटका का पहला अंक मिलजुलकर पढ़ा गया। शायद इसका मंचन सितंबर में होगा। प्रवीण जी का कैमरा आज जवाब दे गया इसलिए इस बार की कोई फ़ोटो नहीं हो पाई। इस बार चित्र के स्थान पर प्रस्तुत हैं 'हम तुम' और 'गेंदा फूल' के पोस्टर।

शनिवार, 30 मई 2009

२९ मई, दूसरा जन्मदिन


आज विशेष अवसर था चौपाल की दूसरी वर्षगाँठ का। इस उपलक्ष्य में फ़िल्म शो, आशु-अभिनय और रात्रिभोज की तैयारियाँ की गई थीं। साल भर बाद इतने लोग एक साथ मिलते हैं। लगभग ३० लोग इस बार एकत्रित हुए। साहित्य और रंगकर्मियों के परिवार भी साथ थे। सबके मन में खुशी और उत्साह था।

विशेष आकर्षण यह था कि नाटकों में जिसने जो रोल निभाए थे वे उसी परिधान और अभिनय में रहने वाले थे। शाम ७ बजे तक लॉन सज चुका था। छोटे बल्ब टिमटिमाने लगे थे और संगीत शुरू हो गया था। अंधेरा होते ही मेहमान भी आने लगे। सक्खूबाई, हवलदार, मैट्रीशिया, कोर्टमार्शल के अभिनेता सब अपने अपने रंग में... जिन लोगों ने पूरी पार्टी में अपनी रौनक बनाए रखी उसमें मूफ़ी का हवलदार और मेनका की सुक्खूबाई सबका दिल जीत कर ले गए। कोल्ड ड्रिंक और कवाब मज़ेदार रहे। खाना स्वादिष्ट था।

खाने से पहले फिल्मों के सत्र में सुनील की कुछ नायाब विज्ञापन, कुछ पुरस्कारप्राप्त छोटी फ़िल्में और कुछ अन्य छोटी रोचक फ़िल्मों को देखने का कार्यक्रम था। एक घंटे लंबे इस कार्यक्रम में सुनील के संग्रह से निकाली गई ये फ़िल्में काफ़ी पसंद की गईं। विशेष रूप से इलाना याहव की रेत कला पर आधारित फ़िल्म और छोटी फ़िल्म लिटिल टेररिस्ट। इसके बाद रात्रिभोज का कार्यक्रम हुआ और अंत में अभिनय प्रदर्शन। रागिनी का मैट्रीशिया, मेनका का सुक्खूबाई और मूफ़ी के हवलदार के एकल प्रदर्शन के बाद प्रकाश, कौशिक और कल्याण ने तुरंत दी गई एक स्थिति पर आशु-अभिनय प्रस्तुत किया। आशु-अभिनय अर्थात दृश्य, संवाद और अभिनय जिनके विषय में पहले से कलाकारों को कुछ नहीं मालूम था। उसी समय विषय दिया गया जिस पर तुरंत संवाद और अभिनय बिना किसी रहर्सल के तुरंत ५ मिनट के अंदर प्रस्तुत करना था। अभिनय के लिए पुरस्कारों की व्यवस्था भी की गई थी। निर्णायकों ने सर्व सम्मति से मेनका और कल्याण को पुरस्कार के योग्य समझा। बाद में केक काटा गया और इस तरह चौपाल की वर्षगाँठ को सबने मिलजुलकर यादगार बनाया।

शनिवार, 16 मई 2009

१५ मई, बार-बार दिन ये आए


१५ मई को तीन रचनाओं का पाठ होना था। निर्मल वर्मा की कहानी "डेढ़ इंच ऊपर" और अंतोन चेखव के दो एकांकी "द बियर" और "द गुड डॉक्टर" के हिन्दी रूपांतर का। किसी कारण से चेखव के नाटकों का हिंदी रूपांतर नहीं हो सका था। डॉ. उपाध्याय ने डेढ़ इंच ऊपर का भाव पाठ किया। चेखव के एक नाटक का पाठ कविता, कल्याण और अश्विनी ने किया।

आज बहुत से लोग आए थे। संजय और अर्चना पहली बार आए। संजय शारजाह में पिछले एक साल से हैं जबकि अर्चना को आए अभी ३ महीने ही हुए हैं। बहुत दिनों बाद अली भाई आए थे। एक और सदस्य बहुत दिनों बाद आया। अन्य लोगों में रागिनी, रिज़वी साहब, प्रकाश, कौशिक, मूफ़ी, सबीहा और शांति थे। आज डॉ साहब का जन्मदिन था। वे कुछ मिठाइयों के साथ आए थे- पारंपरिक तरबूज और सेब वाली मिठाइयाँ साथ में मार्स के विलायती चॉकलेट। कौशिक केक लाए थे। फिर क्या था, केक कटा और गाया गया बार बार दिन ये आए... चाय तो थी ही।

रागिनी और दिलीप परांजपे २८ मई को "घर की मुर्गी" प्रस्तुत कर रहे हैं। २६ और २७ को एक बंगाली और एक मराठी नाटक होंगे। सबने अपने अपने नाटकों की घोषणा की। थियेटरवाला की अगली बुकिंग ११ जून की है। उसके लिए हम-तुम नामक एक घंटे का नाटक तो तैयार है पर दूसरे के निश्चय अभी तक नहीं हो सका है शायद अगली गोष्ठी तक हो जाए। चित्र में जन्मदिन का हुल्लड़ :-) मचाते कविता, डॉ. साहब, अश्विन, रागिनी और अली भाई।

रविवार, 10 मई 2009

८ मई, छुट्टी का दिन

७ मई को बड़े भाई साहब और दस्तक का प्रदर्शन था। जिस दिन कोई प्रदर्शन होता है उसके अगले दिन छुट्टी रहती है। यानि शुक्रवार चौपाल नहीं लगती। इस हिसाब से शुक्रवार ८ मई, छुट्टी का दिन था। छुट्टी के बावजूद लोग खुश नहीं थे। सबका मन उदास उदास। कारण था कि पिछले दो सालों से जिस चीज़ का कभी अनुभव नहीं हुआ उसे आज झेला था। प्रदर्शन अच्छा हुआ था। दर्शकों से बात हुई। सबने प्रशंसा के शब्द कहे लेकिन दर्शकों की उपस्थिति कम थी हॉल पूरा भरा नहीं। दुबई में एक बॉलीवुड सितारे के नाटक के कारण ज्यादातर भीड़ वहीं थी। ३०० दर्शकों को क्षमता वाले इस हॉल में १०० लोग भी नहीं आए थे। यह दिन भी एक न एक दिन देखना तो था। हम पैसे बचाने के लिए साल भर की तारीखें एक साथ बुक करते हैं और इस बीच अगर कोई बड़ा कार्यक्रम उसी दिन आ पड़ा तो उसका नुक्सान तो हमें ही उठाना पड़ेगा। बाद में तारीख बदलना संभव नहीं होता है। खैर खुशी की बात यह थी कि प्रदर्शन अच्छा रहा। अगले शुक्रवार फिर मिलना है और एक और नाटक का मंचन होना है। इस प्रकार के अनुभव सुखद तो नहीं होते पर जीवन का पाठ ज़रूर पढ़ाते हैं। शारजाह में हिंदी नाटकों का परिदृश्य नया नया ही है। इसकी कोई पृष्ठभूमि नहीं है नियमित नाटकों के मंचन से हम यहाँ दर्शकों को निर्माण करें और एक हिंदी नाटकों की एक स्वस्थ परंपरा स्थापित करें यही लक्ष्य है और इस दिशा में हमारा प्रयत्न सदा बना रहे ईश्वर से यही प्रार्थना है। इस प्रदर्शन के फ़ोटो अभी नहीं आए हैं आते ही प्रदर्शित करेंगे। प्रकाश ने सबको धन्यावाद संदेश भेजे फिलहाल वही संदेश ब्लॉग के पाठकों लिए यहाँ प्रस्तुत है।

शनिवार, 2 मई 2009

१ मई, तैयारियाँ-तैयारियाँ

दस्तक और बड़े भाई साहब की तैयारी पूरी हो चुकी है। पोस्टर और निमंत्रण पत्र छप कर आ गए हैं। यह प्रस्तुति ७ मई को होनी है। प्रस्तुति के पहले की बहुत सी बातें आज की चौपाल का हिस्सा बनीं। पोस्टर की एक प्रति हमारे पाठकों के लिए प्रस्तुत है। प्रवेश पत्र पाने की विस्तृत जानकारी इन पोस्टरों में है। बड़े भाई साहब कथा सम्राट प्रेमचंद की कालजयी रचना है। छोटे भाई द्वारा कही गई दो भाईयों की इस कहानी में दोनों भाइयों की मनोरंजक तुलना है जिसमें स्नेह, आदर्श, विरोधाभास और संवेदना के ढेरों रंग है। दो भाइयों के दैनिक जीवन से जुड़ी इस कहानी में परंपरा और आधुनिकता का टकराव के साथ वर्तमान शिक्षा प्रणाली पर करारा व्यंग्य भी देखने को मिलता है। हास्य और व्यंग्य से भरपूर यह नाटक बच्चों पर पढ़ाई के दबाव और उसके मनोविज्ञान को भी रोचकता से बयान करता है।

दस्तक के विषय थोड़ी जानकारी पहली प्रस्तुति के समय यहाँ दी जा चुकी है। ज्यादा जानकारी तो नाटक देखकर ही मिल सकेगी। आज काफ़ी लोग उपस्थित थे। हालाँकि मीर के न आने से बड़े भाई साहब का रिहर्सल नहीं हो सका। इस नाटक में दो ही लोग हैं। कभी भी रिहर्सल हो सकता है तो परेशानी की विशेष कोई बात नहीं वैसे भी रिहर्सल तो आजकल रोज़ चल रहे हैं। आज हमारे बीच रंगमंच से स्नेह रखने वाला एक नया चेहरा था प्रिया का। इसके अतिरिक्त प्रकाश, कौशिक, डॉ.उपाध्याय, मूफ़ी, अश्विनि, रागिनी, सबीहा, संग्राम, मेनका और ज़ुल्फ़ी उपस्थित थे। हाँ एक और चेहरा भी था जिसका नाम पूछना फिर रह गया... ख़ैर फिर कभी। आज दस्तक के रिहर्सल के बाद निर्मल वर्मा की कहानी वीकएंड का पाठ हुआ। यह कहानी तीन एकांत का हिस्सा है। निर्मल वर्मा की तीन कहानियों ‘धूप का एक टुकड़ा’, ‘डेढ़ इंच ऊपर’ और ‘वीकएंड’ की मंच-प्रस्तुति देवेंद्र राज के निर्देशन में तीन एकांत शीर्षक से की गई थी। शायद तीन एकांत जैसा कुछ थियेटरवाला की आगामी किसी प्रस्तुति में देखने को मिले।

शनिवार, 25 अप्रैल 2009

२४ अप्रैल, धूप का टुकड़ा

आज की चौपाल में अगली प्रस्तुति दस्तक का रिहर्सल और निर्मल वर्मा की कहानी "धूप का एक टुकड़ा" का पाठ होना था। चौपाल के कुछ सदस्य दुबई में थियेट्रिक्स द्वारा प्रस्तुत 'द वुड बी जेंटेलमैन' के साथ व्यस्त हैं और कुछ ट्रैकिंग के एक कार्यक्रम में। इस कारण उपस्थिति कम सी थी। थियेटरवाला के अगले प्रदर्शन के लिए ७ मई को थियेटर मिला है। इसलिए विशेष महत्व दस्तक के रिहर्सल का था। प्रकाश, डॉ.उपाध्याय और दारा समय से आ गए थे। कौशिक के आते ही रिहर्सल शुरू हो गया। रिहर्सल बड़े भाई साहब का भी होना था पर मीर और जुल्फी दोनों ही किसी कारण नहीं आ सके।

कुछ देर बार मेनका और क्रिस्टोफ़र साहब आ गए। रिहर्सल के बाद निर्मल वर्मा की कहानी को पढ़ा क्रिस्टोफ़र साहब ने। सबने इस कहानी के मंचन के विषय में विचार विमर्श किया। संगीत और प्रकाश के मामले, मंच की डिज़ायनिंग... मंचन की तिथि निश्चित नहीं है पर तैयारियाँ तो बहुत पहले से शुरू हो जाती हैं। क्रिस्टोफ़र साहब और मेनका बाद में आए थे तो इस बार फोटो में उनके चेहरे नहीं आ पाए। डॉ. उपाध्याय किसी विशेष कार्य से जल्दी चले गए। बाकी लोग देर तक पुरानी और नई प्रस्तुतियों के बारे में विस्तृत चर्चा करते रहे। (चित्र में- संवादों का अभ्यास करते प्रकाश और कौशिक मैं डॉ. साहब और दारा सुनते हुए।)

शुक्रवार, 17 अप्रैल 2009

१८ अप्रैल, मीडिया में थियेटरवाला

एक्सप्रेस गल्फ़ न्यूज़ का नया टैबलॉयड है, जो शहर की सांस्कृतिक गतिविधियों की सूचना और समीक्षा देता है, आज इसमें थियेटरवाला छाया रहा (चित्र में दाहिनी ओर)। अखबार के वेब संस्करण में इसकी उपस्थित रही(यहाँ देखें)। सबसे पहले सबीहा आईं इसकी एक कॉपी लेकर, जब हमने इसको शुक्रवार चौपाल के लिए स्कैन किया। बाद में डॉ.उपाध्याय भी एक प्रति लाए। बहुत से लोगों ने इसे सुबह ही देख लिया था, फिर से देखा और एक दूसरे की तस्वीरों पर मज़ेदार कमेंट्स किये।

आज के कार्यक्रम में सबसे पहले दस्तक का रिहर्सल होना था। एक घंटे के इस नाटक का शारजाह में मंचन होना है। इसी के साथ बड़े भाई साहब को भी प्रस्तुत करने की योजना है। ये दोनों नाटक पहले दुबई में खेले जा चुके हैं। रिहर्सल शुरू हुआ और लगभग एक घंटे बाद दुबई मेल आ गई। दुबई से आज विशेष अतिथि थे क्रिस्टोफ़र साहब जो इमारात की जाने-माने रंगकर्मी है। इसके बाद के पी सक्सेना का छोटा नाटक पढ़ा गया- खिलजी का दांत। आज उपस्थित लोगों में थे- प्रकाश सोनी, कौशिक साहा, डॉ. शैलेष उपाध्याय, सबीहा मजगांवकर, शांति, दोनों भाई मीर और इरफ़ान, क्रिस्टोफ़र साहब, अश्विनी, जुल्फ़ी शेख और प्रवीण सक्सेना।

शनिवार, 11 अप्रैल 2009

१० अप्रैल, नाटकों का पोस्टमॉर्टम

९ अप्रैल की शाम मिलिंद तिखे की शाम रही। पहला नाटक राई का पहाड़ उनका लिखा हुआ था तो दूसरा पोस्टमॉर्टम उनके द्वारा मराठी से हिन्दी में रूपांतरित। दोनों कामदी नाटक दर्शकों को गुदगुदाने में सफल रहे। पहले नाटक में जहाँ टी वी चैनलों द्वारा समाचारों को नाटकीय ढंग से प्रस्तुत करने पर व्यंग्य था वहीं दूसरे एकांकी में रंगमंच के पीछे होने वाली भूलों को मनोरंजक ढंग से प्रस्तुत किया गया था। मिलिंद तिखे पिछले कई दशकों से इमारात में हैं और लगभग नियमित रूप से चुपचाप लिखते रहे हैं।


राई का पहाड़ का निर्देशन महबूब हसन रिज़वी ने किया था और पोस्टमॉर्टम का श्रीकांत रेले ने। यहाँ प्रस्तुत हैं राई का पहाड़ के कुछ चित्र- ज़ुल्फ़ी शेख के कैमरे से। १० भूमिकाओं वाले इस नाटक में मंच पर टीवी समाचार वाचक की भूमिका मीर इमरान हुसैन और सरयू गजधर ने, निर्देशक की ऐज़ाज चौधरी ने, लेखक की एहाज़खान ने, हवलदार की ज़ुल्फ़ी शेख ने, रिपोर्टर की मुफ़द्दल बूटवाला ने, ज्योतिष गुरु की सबीहा मजगावकर ने और रेनू की शांति ने निभाई थी।


आज १० अप्रैल यानी नाटकों के एक दिन बाद जमी चौपाल में हमेशा की तरह कुछ समय नाटकों की प्रस्तुति के बाद प्रस्तुति का पोस्टमॉर्टम करने में गया। इसके बाद कुछ प्रसिद्ध और कुछ समसामयिक रचनाओं का पाठ हुआ। मुंशी प्रेमचंद की कहानी शतरंज के खिलाड़ी को पढ़ा डॉ. शैलेष उपाध्याय ने। मनोहर पुरी के व्यंग्य गर्म है जूतों का बाज़ार को पढ़ा जुल्फ़ी शेख ने और कृष्ण कल्पित की एक शराबी की सूक्तियाँ को पढ़ा प्रकाश सोनी ने।


एक दिन पहले सब देर रात घर गए थे। लगा था कि इस शुक्रवार उपस्थिति कम रहेगी पर काफ़ी लोग आ गए। सबीहा, मेनका, डॉ.उपाध्याय, प्रकाश सोनी, कौशिक साहा, जुल्फी शेख, मिलिन्द तिखे, मूफ़ी, रिज़वी साहब और अश्विन के साथ शुक्रवार की सुबह मज़ेदार रही। चित्र में सब लोग नहीं दिख रहे हैं पर अब तो ब्लॉग पढ़ने वाले सबको नामों से पहचानते ही हैं। अरे हाँ... नाटक के चित्र अभी तक नहीं आए। जैसे ही आते हैं यहाँ लगाने की कोशिश करेंगे। (गोष्ठी का चित्र हट चुका है और उसकी जगह नाटक के चित्र लग गए हैं। शायद कुछ और बेहतर चित्र आने वाले हैं। तब तक ये सबका मनोरंजन करेंगे।)

शनिवार, 4 अप्रैल 2009

३ अप्रैल, नरगिस और चीलें


९ अप्रैल को रिज़वी साहब मिलिंद तिखे का नाटक राई का पहाड़ करने वाले हैं। इसके साथ ही होगा श्रीकांत रेले का पोस्टमॉर्टम... यह तो हुआ इस माह का कार्यक्रम पर आज का कार्यक्रम था 'कम्बख़्त साठे का क्या करें' का पाठ। नाटक में दो ही पात्र हैं जिसे कल्याण और कविता पढ़ने वाले थे पर ११ बजे तक दोनों में से कोई पहुँचा नहीं था। इसलिए सबने निश्चय किया कि समय का सदुपयोग करते हुए सरला अग्रवाल की कहानी नरगिस और भीष्म साहनी की कहानी चीलें का पाठ पहले कर लिया जाए। दोनों कहानियाँ लंबी थीं। नरगिस को अश्विनी, सबीहा और सुनील ने पढ़ा और चीलें को प्रकाश और मिलिन्द जी ने। कुछ बात राई के पहाड़ के रिहर्सलों की हुई। कुछ पुराने कार्यक्रमों की। इस बीच दुबई वाले आ गए कविता किसी कारण से नहीं आ सकी तो साठे रह ही गया। आगे के कार्यक्रमों में शायद शारजाह में 'दस्तक' जल्दी ही दोहराया जाए। इसके बाद 'कम्बख़्त साठे का क्या करें' की बारी होगी। सुनील शायद 'सुल्तान' करने का मन बना रहा है। सबकुछ निश्चित सा नहीं है। चाय पीने के बाद सब घर की ओर निकल पड़े। अरे... अरे... फ़ोटो तो इस बार रह ही गए। प्रवीन जी जल्दी से अंदर गए और कैमरा लेकर आए। सब लोग अंदर आए और एक समूह चित्र ले लिया गया। देखें तो आज कौन कौन उपस्थित है।

शुक्रवार, 27 मार्च 2009

२७ मार्च, विश्व रंगमंच दिवस


२७ मार्च, एक विशेष दिन, विश्व रंगमंच दिवस को विशेष ढंग से मनाने हम जुड़े इस शुक्रवार। भारत से दो विशेष अतिथि कवियों श्रीमती निर्मला जोशी और श्री यतीन्द्र राही को लेकर पधारे आबू धाबी से कृष्ण बिहारी। गोष्ठी के प्रारंभ में प्रकाश सोनी ने विश्व रंगमंच दिवस और विश्व रंगमंच दिवस के संदेशों के विषय में जानकारी दी। साथ ही कुछ विश्व रंगमंच दिवस के संदेशों को पढ़कर सुनाया भी। 2009 का संदेश ऑगस्टो बोल का था जिसे सबीहा ने पढ़ा। 2007 का संदेश महा महिम शेख डॉ. सुल्तान बिन मुहम्मद अल कासिमी का था जिसे मिलिन्द तिखे ने पढ़ा। 2002 का संदेश गिरीश कर्नाड का था जिसे मेनका ने पढ़ा। सब संदेशों का सार यह कि रंगमंच हमें सुसंस्कृत बनाता है, यह हमारी संस्कृति की पहचान है, हमारी अभिव्यक्ति का सबसे परिष्कृत रूप है और हमारे मन को प्रफुल्लता से भर देता है। चित्र में आज के अतिथि बाएँ से निर्मला जोशी, कृष्ण बिहारी, संदीप कुमार पांडेय और यतीन्द्र राही।


डॉ.शैलेष उपाध्याय ने शरद जोशी का एक व्यंग्य पढ़ा, ऐजाज़ ने कुछ रचनाएँ प्रस्तुत कीं। कुछ नवगीत मैंने सुनाए, कृष्ण बिहारी ने अपनी कहानी सुनाई, निर्मला जी और राही जी के गीत मुक्तक और कविताएँ हुईं। कुल मिलाकर दिन कवितामय रहा। चाय हुई और बहुत सी बातचीत भी। चित्र में बाएँ से- महबूब हसन रिज़वी, मीर, शांति, मिलिन्द तिखे, ऐजाज़ और मिन्हास। जो लोग चित्र में दिखाई नहीं दे रहे हैं उनमें मेरे अतिरक्त थे- डॉ. शैलेष उपाध्याय, उमेश, दारा, मेनका, प्रकाश, सबीहा, ज़ुल्फ़ी और खुर्शीद आलम। आगामी प्रस्तुतियों के विषय में कोई बात करने का समय नहीं रहा। तो वह सब ... अगली बार...

शनिवार, 21 मार्च 2009

२० मार्च, एक घोड़ा दो सवार

राई का पहाड़ जोर-शोर से तैयारी पर है। लेकिन मई में कौन सा नाटक खेला जाना है इसका निश्चय अभी तक नहीं हुआ है... आज की चौपाल विशेषरूप से यही तय करने के लिए थी। उसके बाद एक घोड़ा तीन सवार पढ़ा जाना था और उसके बाद राई का पहाड़ का रिहर्सल होना था। गोष्ठी का समय 10:30 का था। 10:40 तक प्रकाश, कौशिक, सबीहा, मैं, दारा, उमेश पहुँच चुके थे। थोड़ी देर में अली भाई भी आ गए। बिमान दा का इंतज़ार था पर उनका फ़ोन बज नहीं रहा था। बाद में पता चला उन्होंने नया फ़ोन लिया है। पाँच मिनट के अंदर मेनका, मिन्हास, मूफ़ी और रिज़वी साहब भी आ गए। ये लोग बैठे ही थे कि बिमान दा भी आ पहुँचे। बस शुरू हो गई चौपाल...

तो मई में हम क्या करने जा रहे हैं? हमारे पास फ़िलहाल दो स्क्रिप्ट्स ही हैं। 'एक घोड़ा तीन सवार' और 'खजूर में अटका'। यों तो 'साठे का क्या करें' किया जा सकता है और 'दस्तक' तो तैयार भी हैं। इनमें से कोई त्रासदी नहीं लेकिन ये गंभीर किस्म के नाटक हैं। स्पांसर को कामदी यानी कॉमेडी चाहिए। स्पांसर नहीं तो नाटक कैसे होगा? लेकिन कॉमेडी तो सभी करते हैं फिर हममें खास क्या है? चाहे 'बड़े भाई साहब' हो या 'बल्लभपुर की रूपकथा', 'संक्रमण' या 'दस्तक' या 'चौदह' या 'जलूस' हमने ऐसे नाटक किए है जो या साहित्य की चुनी हुई कृतियों पर आधारित हैं या उनमें कुछ ख़ास है। लेकिन कुछ खास करने के लिए पैसों की दिक्कत हमेशा बनी रहती है। फ़िलहाल तो हमें 'खजूर से अटका' और 'एक घोड़ा तीन सवार' में से ही एक का चयन करना होगा। और वह भी आज क्यों कि थियेटर की बुकिंग 28 मई की है। हमें कम से कम 40 रिहर्सल तो चाहिए ही चाहिए। 'खजूर से अटका' प्रकाश पहले कर चुके हैं तो उनके दिमाग में सबकुछ साफ़ सा है, लेकिन एक बड़ी समस्या है- इसके लिए विशेष सेट चाहिए। सेट की कीमत? अंदाज लगाया गया... लगभग दो ढाई हज़ार दिरहम से कम नहीं बैठेगी। फिर?

यह विचार विमर्श चल ही रहा था कि दुबई मेल आ गई। दुबई के लोग यानी रागिनी, शांति, अश्विन, मीर। साथ में रागिनी की छोटी बिटिया। अनेक बातों के बीच नाम पूछने का समय ही नहीं रहता। पिछली एक बार शान और नीरू का बेटा भी आया था वह भी बाहर लॉन पर अकेला खेलता रहा। लगता है कि दो चार बच्चे हमेशा आएँ तो सबको दोस्त मिल जाएँगे, पर आजकल तो बच्चे भी कितने व्यस्त से रहते हैं। हाँ एक नया चेहरा भी था- शेख।

राई का पहाड़ में मेनका, सबीहा, मूफ़ी, ज़ुल्फ़ी, मीर... पूरी टीम ठीक से याद नहीं आ रही। अगली बार सबके नाम सही सही याद कर के लिखूँगी, पात्रों के नाम भी और कलाकारों के नाम भी। फोटो दुबई मेल के आने से पहले खीचे गए थे सो दुबई के सब लोग रह गए। ऊपर के चित्र में बाएँ से शेख, रिज़वी साहब, मिन्हास बिमान दा, अली भाई, मूफ़ी, उमेश और दारा। नीचे के चित्र में बाएँ से दारा, मेनका, मैं, सबीहा, कौशिक, प्रकाश। फोटो प्रवीण जी की मेहरबानी से। तो...28 मई यानी एक घोड़ा दो में से किस सवार को मिला? 'खजूर से अटका' को या 'एक घोड़ा तीन सवार को'? यह मुझे पता नहीं चल सका क्यों कि किसी के यहाँ ज़रूरी जाना था और गोष्ठी के बीच से उठना पड़ा। खैर, अगली बार...

शुक्रवार, 13 मार्च 2009

१३ मार्च, रिपोर्टर पर रिपोर्ट

आज की चौपाल में होली मनाई जानी थी। सबसे पहले प्रकाश दिखाई पड़े दारा के साथ, सफेद कामदार कुर्ता, हाथ में जलेबियाँ, वाह वाह आज तो सबको जोश आना ही था। उन्होंने इकट्ठी की थी कुछ ज़बरदस्त होली सामग्री। डॉ. उपाध्याय के झोले में भी बैकअप की तरह हमेशा कुछ न कुछ होता है। आज पढ़ी गईं दीपक गुप्ता की व्यंग्य कविताएँ, इला प्रसाद की कहानी, राजेन्द्र त्यागी का व्यंग्य और मेरी कविता - रंग।

6-7 लोग ही आए थे पर हमने पाठ का कार्यक्रम शुरू कर दिया। नाटक का रिहर्सल करने वाले अक्सर देर से आते हैं। दुबई से आने वालों को भी कभी कभी देर हो जाती है। राजेन्द्र त्यागी का व्यंग्य डॉ.शैलेष उपाध्याय ने पढ़ा, दीपक गुप्ता की कंप्यूटर से संबंधित कविता मूफ़ी ने और राजनीति एक बस प्रकाश ने पढ़ी। सबीहा ने सतपाल ख़याल और संजय विद्रोही की होली से संबंधित ग़ज़लें पढ़ीं। इसके अतिरिक्त कुछ पंचदार टुकड़ों- दारा का 'मैं मुन्नी के बिना नहीं जी सकता', मूफ़ी का 'येस येस नो नो' और महबूब हसन रिज़वी का 'भाइयों और बहनों' की प्रस्तुति प्रभावशाली रही।

आज के कार्यक्रम का विशेष आकर्षण गल्फ़ एक्सप्रेस के रिपोर्टर का आगमन रहा। वे पूरे कार्यक्रम में मुख्य अतिथि की तरह छाए रहे। फोटोग्राफ़र देखकर किसका मन फ़ोटो खिंचाने का नहीं करता बस सब आ गए ग्रुप फोटो की मुद्रा में। इस बार आज की जमघट के सभी चेहरे एक साथ आ गए। न किसी की पीठ और न कोई छूटा। ऊपर की फ़ोटो, में बाएँ से- बैठे हुए प्रेस रिपोर्टर, शांति, प्रवीण, मैं, मेनका, मूफ़ी, इरफ़ान और एक नया सदस्य जिसका नाम पूछना रह गया। खड़े हुए बाएँ से- एजाज़, दारा, मिलिंद तिखे, प्रकाश, सबीहा, डॉ.उपाध्याय, रिज़वी साहब, अश्विन और मीर।

फोटो सेशन के बाद मैं चाय के लिए अंदर आई और रिपोर्टर साहब बिना चाय पिए नौ दो ग्यारह, प्रेस की ओर रवाना हो गए। कुल मिलाकर यह कि रिपोर्टर की फोटो तो मिली लेकिन उन पर कोई रिपोर्ट नहीं लिखी जा सकी। चाय के बाद मिलिंद तिखे के नाटक 'राई का पहाड़' पढ़ा गया। इस माह की मंच-प्रस्तुति कुछ कारणों से निरस्त हो गई है आशा है अप्रैल की प्रस्तुति महबूब हसन रिज़वी के निर्देशन में होगी।

शुक्रवार, 6 मार्च 2009

६ मार्च, अगली तैयारियाँ


6 मार्च को दो कहानियों को पाठ होना था। प्रेमचंद की 'गुल्ली-डंडा' और हरिशंकर परसाईं की 'भोलाराम का जीव'। चौपाल थोड़ा देर से शुरू हुई। कुछ लोग भारत गए हैं और कुछ किसी पिकनिक के कार्यक्रम के कारण नहीं आ सके। आज उपस्थित रहे प्रकाश सोनी, कौशिक साहा, महबूब हसन रिज़वी, मेनका, नीरू, शान, मैं और प्रवीण। बीते नाटक के विषय में कुछ चर्चा हुई। कौशिक ने 'गुल्ली-डंडा' का पाठ किया और प्रकाश ने 'भोलाराम का जीव' का। अगली प्रस्तुति के विषय में भी बात हुई।

रिज़वी साहब सआदत हसन मंटो का नाटक 'बीच मँझधार में' करना चाहते हैं। उसके कुछ हिस्से पढ़े गए और पात्रों के चयन के विषय में कुछ बातचीत हुई। हाँ 26 फ़रवरी की प्रस्तुति से प्रभावित होकर इस बार एक नए मेहमान भी आए थे उनसे नाम पूछना याद नहीं रहा। वे मुंबई में थियेटर की दुनिया से बरसों जुड़े रहे हैं। शायद अगली बार विस्तृत बात करने का अवसर मिलेगा। यों तो शायद नीरू और श्याम भी एक साल बाद आए आज चौपाल में। एक फ़ोटो लिया था, यहाँ प्रस्तुत है। फोटो में प्रवीण, नीरू और मेरे सिवा सभी दिखाई दे रहे हैं।

शनिवार, 28 फ़रवरी 2009

२६ फ़रवरी, एक सफल शाम


२६ की शाम सफल रही। पांच सौ की क्षमता वाला थियेटर पूरा भरा, मौसम सुहावना बना रहा और मध्यांतर की चाय स्वादिष्ट। यों तो यह विवरण २७ को लिखा जाना था पर सफलता के बाद की थकान और उत्सव में सबकुछ डूबा रहा। गुरूवार के प्रदर्शन के उपलक्ष्य में शुक्रवार चौपाल नहीं लगी। अनुज के यहाँ शाम का डिनर भी था। अनुज यानी अनुज प्रसाद जिन्हें लोग श्वेता प्रसाद के पिता के रूप में अधिक जानते हैं और श्वेता प्रसाद को भी लोग श्वेता प्रसाद के नाम से कम, मकड़ी या इकबाल वाली लड़की के रूप में ज्यादा जानते हैं। तो इस बार अनुज भारत वापस जा रहे हैं शायद लंबे समय के लिए। चौपाल के साथ वे मित्र, सहयोगी, मार्गदर्शक के रूप में जुड़े रहे। उनकी उपस्थिति उत्साहवर्धक होती थी। आगामी चौपालों में यह कमी सदा महसूस होगी।

पहले चित्र में जलूस के एक दृश्य में अनुज पुलिसवाले की भूमिका में। इसी चित्र में बायीं ओर बूढ़े की भूमिका में डॉ.शैलेष उपाध्याय और पीछे आम आदमी की भूमिका में अन्य अभिनेता। अगला चित्र नेपथ्य से है। चौदह के बिलकुल बाद का। सेट हटाते हुए- चलो चलो सामान जल्दी हटाओ दूसरे नाटक का सेट लगाना है।

२६ के दोनों नाटक सफल रहे। यों तो बेहतर होने की गुंजाइश हमेशा रहती है और अगली चौपाल में शायद विस्तार से इसकी चर्चा होगी। खास बात यह है कि लोगों ने एकजुट होकर काम किया। चौदह का सेट ज़बरदस्त था। मुख्य भूमिका में मेनका का अभिनय सुंदर रहा। मूफ़ी ने खूब हँसाया, ऊष्मा पहली बार मंच पर थी पर आत्मविश्वास अच्छा रहा।

यह सबीहा का लिखा और निर्देशित किया हुआ नाटक था। एक वाक्य में कहा जाए तो सबीहा मजगाँवकर की चल निकली। साथ की फ़ोटो में बायीं ओर से मिसेज़ चावला की भूमिका में मेनका हेमरजानी, सिमरन की भूमिका में ऊष्मा शाह और धनराज की भूमिका में मुफ़द्दल बूटवाला।

जुलूस का प्रदर्शन भी जानदार रहा। पात्रों ने अपनी अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया। विशेष कुछ कहने की बात नहीं है क्यों कि बिमान दा पुराने निर्देशक हैं पात्र भी सब अनुभवी थे। इस कार्यक्रम की खास बात यह रही कि कौशिक साहा के रूप में एक अच्छा पार्श्व संगीतकार चौपाल के हाथ लगा। चौदह और चौपाल दोनों में संगीत उन्हीं का था। उसे भी बड़ी बात यह कि बड़ा हॉल पूरा भर गया। हाँलाँकि उस समय हॉल की तस्वीर शायद किसी ने नहीं ली। नाटक की तस्वीरें काफ़ी हैं बायीं ओर के हाशिए पर उसमें से कुछ दिखाई देंगी। इस पृष्ठ पर नाटक के पीछे की दो तस्वीरें प्रस्तुत हैं। पहली ऊपर सेट हटाते हुए और दूसरी सबसे नीचे- कौशिक साहा संगीत कक्ष में संगीत पर नियंत्रण रखते हुए।

शुक्रवार, 20 फ़रवरी 2009

२० फ़रवरी, रिहर्सल और तैयारियाँ


एक सप्ताह भी नहीं बचा, दोनों नाटकों का मंचन एक साथ होना है, गुरुवार 26 फरवरी की शाम 9 बजे। समय कुछ देर का है लेकिन गुरुवार काम का दिन है। 7 बजे लोग काम से वापस लौटते हैं 9 बजे से पहले थियेटर नहीं पहुँच सकेंगे। अगला दिन शुक्रवार है यानी साप्ताहिक छुट्टी का दिन, जब बच्चों को स्कूल जाना नहीं होता और आमतौर पर सभी देर तक सोते हैं।

दिन का प्रारंभ चौदह के रिहर्सल से हुआ। 12 बजे से जलूस का रिहर्सल था लेकिन लोग 10 बजे से आने शुरू हो गए थे। विशेष रुप से नेपथ्यवाले लोग जिन्हें सेट बनाना है या दूसरे काम करने हैं। नाटक संगीत के साथ सेट हो गया है। जलूस में एक चीख है जो 2-3 बार आती है। अजीब बात है कि वह चीख हर जगह अलग है और बनावटी भी। लगता है वह सिर्फ़ डमी है कौशिक अंतिम दिन के लिए किसी बेहतर चीख का इंतज़ाम कर लेंगे। हाँ दोनों नाटकों का संगीत कौशिक साहा देख रहे हैं। प्रकाश की स्थितियाँ समझ ली गई हैं- कब अंधेरा है, कब किसके ऊपर प्रकाश है, कहाँ स्थिर स्पॉट हैं और कहाँ वे पात्र का पीछा करेंगे, अंधेरे में किसको कहाँ से प्रवेश करना है और कब किसको प्रकाश में दिखाई देना है।

बिमान दा ने नेपथ्यवालों के लिए फरमान जारी कर दिया है। संगीत वाले कुर्सी नहीं खिसकाएँगे। स्क्रिप्टवाले पन्ने नहीं खड़काएँ और खाँसने वाले दबे पैरों खाँसी दबाकर नेपथ्य से दूर चले जाएँगे। लग रहा है कि प्रदर्शन के दिन नज़दीक आ गए हैं। रिहर्सल एक ही बार हुआ पर सब कुछ तैयार है। कुछ लोग आज की चौपाल में नए थे संग्राम, क्रिस्टोफ़र और कविता पहली बार आए थे। उन्हें रिहर्सल देखकर नाटक अच्छा लगा।

चौदह और जलूस के बीच में चाय पी गई बाकी तो बस रिहर्सल रिहर्सल। जलूस का रिहर्सल 1:30 पर समाप्त हुआ पर कुछ लोगों ने बाद तक अपने अपने टुकड़ों का अलग से अभ्यास किया। आशा है यह प्रदर्शन ज़बरदस्त रहेगा। दाहिनी ओर ऊपर जलूस का एक दृश्य और बायीं ओर नीचे चौदह का। नाटक में टिकट नहीं हैं, प्रवेशपत्र मुफ्त हैं, इनको पाने के विवरण के लिए नीचे दिए गए पोस्टर पर क्लिक करें। विशेष विवरण प्रेस समीक्षा यहाँ उपलब्ध है।

शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2009

१३ फरवरी, चौदह अंकुश और जलूस


सारी सर्दियों के बाद आज पहली बार हम साहित्य पाठ के लिए बाहर बैठे। चौपाल के दो अड्डे हैं। गर्मियों में मंदिर के भीतर एसी में और सर्दियों में बाहर धूप में। इस बार इतनी सर्दी पड़ी है कि मौसम में पहली बार बाहर बैठना हो सका है। जबकि पिछले साल हम लोग सर्दियों भर कभी भीतर बैठे ही नहीं, साहित्य पाठ सदा बाहर ही होता था।

आज के साहित्य पाठ का समय 11 बजे से था। सबीहा ने पिछली बार कहा था कि उसको 12 बजे तक का समय रिहर्सल के लिए चाहिए। प्रस्तुति का समय नज़दीक आ रहा है। इसलिए साहित्य पाठ के लिए बाहर बगीचे में बैठना ही था। इस सप्ताह शांति और कल्याण दोनों बहुत दिनों बाद आए थे। प्रकाश, डॉ.उपाध्याय और मीर ने मिलकर मन्नू भंडारी की कहानी अंकुश पढ़ी। कहानी पढ़ने और सुनने के लिए हम सात लोग ही थे। बाएँ से प्रकाश, रिज़वी साहब, मैं मीर, डॉ. उपाध्याय, रिज़वान और शांति(पीछे से)। कल्याण को रिहर्सल देखना ज्यादा पसंद है। सबीहा, मेनका, मूफ़ी और ऊष्मा नाटक में व्यस्त थे। कुछ बातचीत हुई तब तक बिमान दा, कौशिक और अली भाई आदि जलूस के सब लोग आ गए थे। सब पर प्रदर्शन का तनाव दिखाई देने लगा है। चाय में खास मज़ा नहीं आया।

चौपाल के मंदिर वाले अड्डे की तस्वीरें काफ़ी प्रकाशित हो चुकी हैं। बाहर की तस्वीरों की बारी अभी तक नहीं आई। आज पहली बार बाहर का एक चित्र प्रस्तुत है। कुछ तस्वीरे जलूस की भी ली गई थीं पर वे किसी और दिन। 10 बजे चौदह का रिहर्सल मंदिर में शुरू हो गया था। जलूस का रिहर्सल भी जारी है लेकिन उसका समय बारह बजे से था। यह रिहर्सल डेढ़ बजे तक जारी रहा।

शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2009

६ फरवरी, बड़ा थियेटर बढ़ा किराया


इस हफ़्ते चौपाल खुश है, मानो वसंत का उपहार हाथ लगा है। एक बड़ा थियेटर कम किराये पर साल भर के लिए माह में एक बार मिलने वाला है। बड़े और सुविधासंपन्न थियेटर की खुशी के साथ-साथ बढ़े हुए किराये की फ़िक्र भी है। फ़िक्र सिर्फ़ किराये की नहीं दर्शकों की भी है। चार सौ दर्शकों की क्षमता वाला हॉल भर न सका तो क्या होगा? हमने जिस तरह के कम पात्रों वाले नाटकों की तैयारी की थी उनको वहाँ किस प्रकार खेला जाएगा। हाल के पहले बड़े प्रवेश हॉल का खालीपन दूर करने के लिए हम क्या करेंगे? शो से पहले दर्शकों के प्रतीक्षा समय को किस प्रकार मनोरंजक बनाया जाएगा? थियेटर परिसर में कोई कॉफी या पेस्ट्री शॉप न होने से कितना अजीब लगेगा आदि अनेक सवालों पर आज बात हुई। बहुत दिनों बाद इतने सारे लोग जुड़े थे। नाटक की प्रस्तुति के दिन नज़दीक आते हैं तो लोग जुड़ने लगते हैं। चौदह का रिहर्सल साढ़े नौ बजे से शुरू होना था पर आज देर हुई। अच्छा यह हुआ कि आज चारों पात्र थे इसलिए थोड़ी देर तक रिहर्सल चला।


इसके बाद शुरू हुआ साहित्य के पाठ का कार्यक्रम। जैसा पहले से तय था उसीके अनुसार दो लेख और तीन कविताएँ पढ़ी गईं। चाय की ऐतिहासिक यात्रा का पाठ सुनील ने किया और झाड़ूदेवी की कथा का अनुज सक्सेना ने। (दाहिनी ओर के चित्र में अनुज झाड़ूदेवी की कथा का पाठ करते हुए।) दुश्यंत कुमार की तीन कविताओं का पाठ प्रकाश सोनी ने किया। बहुत दिनों बाद इतने लोग आए थे। अश्विन, बिमान दा, रागिनी, उष्मा, अनुज... बहुत दिनों बाद अठारह प्याले चाय बनी। चित्र में इतने लोग दिखते नहीं, समूह का एक कोना कैमरे में बंद नहीं हुआ, जहाँ डॉ.उपाध्याय, अली भाई, प्रकाश सोनी, इरफ़ान और मीर थे। कुछ हड़बड़ी सी थी शाम के हवन की। इसलिए चाय के बाद होने वाला जलूस का रिहर्सल ज़रा जल्दी बंद करना पड़ा। हाँ एक और सदस्य जो किसी फ़ोटो में नहीं पर हर रोज़ चौपाल में रहते हैं वे हैं प्रवीन सक्सेना। यहाँ प्रकाशित सारे फ़ोटो उन्हीं के लिए हुए हैं।

शुक्रवार, 30 जनवरी 2009

३० जनवरी, मज़े का मौसम


बहुत दिनों के बाद आज मौसम सुहावना था। चौदह का रिहर्सल सुबह साढ़े नौ बजे शुरू हो गया। निर्देशक सबीहा और कलाकार मेनका व मूफ़ी समय पर पहुँचे। बेटी का पात्र निभा रही ऊष्मा किसी कारण पूरे रिहर्सल में नहीं आ सकी। एक रिहर्सल के बाद सबीहा ने कहा बहुत बुरा बहुत बुरा... पर मुझे लगा कि काफ़ी अच्छा हो रहा है। खास पात्र तो मिसेज़ चावला ही हैं जिसका अभिनय मेनका कर रही है। वह काफ़ी अच्छा उभरकर आने लगा है। चौदह का प्रदर्शन चौदह तारीख़ को होना है। यानी चौदह दिन बाकी हैं लगता है तबतक सब ठीक हो जाएगा। रिहर्सल के कुछ फ़ोटो लिए हैं न...न... सब नहीं, एक यहाँ लगाती हूँ। मेनका और मूफ़ी मिसेज़ चावला और नौकर के पात्रों में।

रिहर्सल पूरा होते होते डॉ. उपाध्याय, अश्विन और प्रकाश सोनी आ पहुँचे थे। जल्दी ही अली भाई, कौशिक और अनुज सक्सेना भी आ गए। मेनका, सबीहा मैं और मूफ़ी पहले से ही थे। आज के साहित्य पाठ का कार्यक्रम शुरू हुआ। पहला पाठ था शरद जोशी के व्यंग्य उत्तर दिशा और शंख बिन कुतुबनुमा का, भावपाठ प्रकाश सोनी ने किया। दूसरे व्यंग्य का शीर्षक था अतिथि तुम कब जाओगे जिसे मूफ़ी ने पढ़ा। तीसरा व्यंग्य हरिशंकर परसाईं का था द्रोणाचार्य और अंगूठा जिसे डॉ.शैलेष उपाध्याय ने पढ़ा। इसके बाद सबने चाय पी और जुलूस का पाठ शुरू हुआ।

इस बीच मीर और इरफ़ान भी आ पहुँचे तो सब अपनी अपनी मुद्रा में फ़र्श पर आ गए। जुलूस का रिहर्सल दोपहर डेढ़ बजे तक जारी रहा। कुछ फ़ोटो जलूस के रिहर्सल के भी हैं पर उन्हें अभी नहीं प्रकाशित करेंगे। पहले तो 14 फरवरी को चौदह का मंचन होना है। जुलूस की कहानी उसके बाद शुरू करेंगे। हाँ दाहिनी ओर फ़ोटो है पाठ के ज़रा पहले की...भई पाठ और रिहर्सल तो चलते ही रहेंगे कुछ ज़रूरी बातें भी हो जाएँ... प्रकाश सोनी समूह को संबोधित करते हुए...

शनिवार, 24 जनवरी 2009

२३ जनवरी, सर्दियों में पिकनिक


पिछले कुछ दिनों से मौसम का मिज़ाज ठीक नहीं रहा है। शुक्रवार को भी हवा तेज़ और ठंडी थी ऊपर से समंदर का किनारा। सर्दियों के मज़े लेते शुक्रवार चौपाल के सदस्य, उनके मित्र और परिवार ममज़ार पार्क पहुँचे और एक बार्बेक्यू चूल्हे को कब्ज़े में कर के उसके आसपास अड्डा जमाया। चटाइयाँ बिछा दी गई और खाने-पीने की चीज़ें निकाल ली गईं। बच्चों ने खेलना शुरू कर दिया और परिवार व मित्र एक दूसरे के परिचय में लग गए।

दूर पर लगे किसी फ़िलिपिनो समूह के टेंट से गिटार का संगीत वातावरण में घुल रहा था तो दूसरी ओर किसी अरबी समूह का लाव लश्कर कुर्सी मेज़ और गार्डेन अम्ब्रैला के साए तले अपना साम्राज्य जमाए था। पिकनिक है तो क्या रिहर्सल नहीं होगा? जलूस के निर्देशक बिमान दा भारत की यात्रा पर हैं। उनकी अनुपस्थिति में बच्चों की क्लास ले रहे हैं अली भाई। शुरू का हिस्सा लगभग तैयार है पर उसका भी रिहर्सल तो होना है ना? बाकायदा रिहर्सल हुआ और अंतिम दृश्यों की रीडिंग भी। चित्र में नाटक के प्रति समूह की लगन देखी जा सकती है। कैसे मनोयोग से सब आपना अपना पाठ सामने रखे, पढ़ने में लगे हैं। लगे रहो बच्चों, मेहनत का फल मीठा होता है।

पिकनिक के समय खाने पीने और मौज मस्ती की कमी नहीं पर जबतक गरम गरम कवाब और टिक्के न हों बार्बेक्यू का मज़ा नहीं, सो सुलग चला चूल्हा और रसोई में उस्ताद महिला मंडली ने संभाल लिया मोर्चा। कभी किसी अभिनेत्री को खाना पकाते देखा है? नहीं देखा न? तो फिर देखिए देखिए ये अभिनेत्रियाँ किस शौक से सीक पर कवाब का मसाला लपेट रही हैं और किस मनोयोग से टिक्के सेंक रही हैं। देखो! देखो! वह सीक पलटो टिक्का कहीं जल न जाए! भई, महिलाओं के बिना कही ढंग का खाना पकता है!

खाने के साथ साथ बहुत कुछ और भी पकता रहा... अपना बल्लभपुर का संजीव है ना जो आजकल बाहरीन में हैं, वह बहुत दिनो बाद इस पिकनिक पर दिखा और चूल्हे के पास जमा रहा... प्रकाश जापानी पंखे से देर तक अरबी शोलों को हवा देता रहा, आमिर का लाल झोला हर फ़ोटो में हीरो की तरह चमकता रहा... अली भाई के जूते साँवली सलोनी रेत को रंगीनी का पाठ पढ़ाते रहे... और डॉ.साहब अंत तक पानी के डब्बे की सेहत को संभालते रहे...। कुल मिलाकर बहुत ऐश हो गई... दोपहर ढलने को आई, चलो पकाने वालों तुम भी कुछ खा लो... और सब मिल बैठे खाने के अंतिम दौर में जो गरमागरम संवादों और ठंडी हवा के साथ देर तक चलता रहा।