शनिवार, 4 अप्रैल 2009

३ अप्रैल, नरगिस और चीलें


९ अप्रैल को रिज़वी साहब मिलिंद तिखे का नाटक राई का पहाड़ करने वाले हैं। इसके साथ ही होगा श्रीकांत रेले का पोस्टमॉर्टम... यह तो हुआ इस माह का कार्यक्रम पर आज का कार्यक्रम था 'कम्बख़्त साठे का क्या करें' का पाठ। नाटक में दो ही पात्र हैं जिसे कल्याण और कविता पढ़ने वाले थे पर ११ बजे तक दोनों में से कोई पहुँचा नहीं था। इसलिए सबने निश्चय किया कि समय का सदुपयोग करते हुए सरला अग्रवाल की कहानी नरगिस और भीष्म साहनी की कहानी चीलें का पाठ पहले कर लिया जाए। दोनों कहानियाँ लंबी थीं। नरगिस को अश्विनी, सबीहा और सुनील ने पढ़ा और चीलें को प्रकाश और मिलिन्द जी ने। कुछ बात राई के पहाड़ के रिहर्सलों की हुई। कुछ पुराने कार्यक्रमों की। इस बीच दुबई वाले आ गए कविता किसी कारण से नहीं आ सकी तो साठे रह ही गया। आगे के कार्यक्रमों में शायद शारजाह में 'दस्तक' जल्दी ही दोहराया जाए। इसके बाद 'कम्बख़्त साठे का क्या करें' की बारी होगी। सुनील शायद 'सुल्तान' करने का मन बना रहा है। सबकुछ निश्चित सा नहीं है। चाय पीने के बाद सब घर की ओर निकल पड़े। अरे... अरे... फ़ोटो तो इस बार रह ही गए। प्रवीन जी जल्दी से अंदर गए और कैमरा लेकर आए। सब लोग अंदर आए और एक समूह चित्र ले लिया गया। देखें तो आज कौन कौन उपस्थित है।

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