शुक्रवार, 20 फ़रवरी 2009

२० फ़रवरी, रिहर्सल और तैयारियाँ


एक सप्ताह भी नहीं बचा, दोनों नाटकों का मंचन एक साथ होना है, गुरुवार 26 फरवरी की शाम 9 बजे। समय कुछ देर का है लेकिन गुरुवार काम का दिन है। 7 बजे लोग काम से वापस लौटते हैं 9 बजे से पहले थियेटर नहीं पहुँच सकेंगे। अगला दिन शुक्रवार है यानी साप्ताहिक छुट्टी का दिन, जब बच्चों को स्कूल जाना नहीं होता और आमतौर पर सभी देर तक सोते हैं।

दिन का प्रारंभ चौदह के रिहर्सल से हुआ। 12 बजे से जलूस का रिहर्सल था लेकिन लोग 10 बजे से आने शुरू हो गए थे। विशेष रुप से नेपथ्यवाले लोग जिन्हें सेट बनाना है या दूसरे काम करने हैं। नाटक संगीत के साथ सेट हो गया है। जलूस में एक चीख है जो 2-3 बार आती है। अजीब बात है कि वह चीख हर जगह अलग है और बनावटी भी। लगता है वह सिर्फ़ डमी है कौशिक अंतिम दिन के लिए किसी बेहतर चीख का इंतज़ाम कर लेंगे। हाँ दोनों नाटकों का संगीत कौशिक साहा देख रहे हैं। प्रकाश की स्थितियाँ समझ ली गई हैं- कब अंधेरा है, कब किसके ऊपर प्रकाश है, कहाँ स्थिर स्पॉट हैं और कहाँ वे पात्र का पीछा करेंगे, अंधेरे में किसको कहाँ से प्रवेश करना है और कब किसको प्रकाश में दिखाई देना है।

बिमान दा ने नेपथ्यवालों के लिए फरमान जारी कर दिया है। संगीत वाले कुर्सी नहीं खिसकाएँगे। स्क्रिप्टवाले पन्ने नहीं खड़काएँ और खाँसने वाले दबे पैरों खाँसी दबाकर नेपथ्य से दूर चले जाएँगे। लग रहा है कि प्रदर्शन के दिन नज़दीक आ गए हैं। रिहर्सल एक ही बार हुआ पर सब कुछ तैयार है। कुछ लोग आज की चौपाल में नए थे संग्राम, क्रिस्टोफ़र और कविता पहली बार आए थे। उन्हें रिहर्सल देखकर नाटक अच्छा लगा।

चौदह और जलूस के बीच में चाय पी गई बाकी तो बस रिहर्सल रिहर्सल। जलूस का रिहर्सल 1:30 पर समाप्त हुआ पर कुछ लोगों ने बाद तक अपने अपने टुकड़ों का अलग से अभ्यास किया। आशा है यह प्रदर्शन ज़बरदस्त रहेगा। दाहिनी ओर ऊपर जलूस का एक दृश्य और बायीं ओर नीचे चौदह का। नाटक में टिकट नहीं हैं, प्रवेशपत्र मुफ्त हैं, इनको पाने के विवरण के लिए नीचे दिए गए पोस्टर पर क्लिक करें। विशेष विवरण प्रेस समीक्षा यहाँ उपलब्ध है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें