शनिवार, 2 मई 2009

१ मई, तैयारियाँ-तैयारियाँ

दस्तक और बड़े भाई साहब की तैयारी पूरी हो चुकी है। पोस्टर और निमंत्रण पत्र छप कर आ गए हैं। यह प्रस्तुति ७ मई को होनी है। प्रस्तुति के पहले की बहुत सी बातें आज की चौपाल का हिस्सा बनीं। पोस्टर की एक प्रति हमारे पाठकों के लिए प्रस्तुत है। प्रवेश पत्र पाने की विस्तृत जानकारी इन पोस्टरों में है। बड़े भाई साहब कथा सम्राट प्रेमचंद की कालजयी रचना है। छोटे भाई द्वारा कही गई दो भाईयों की इस कहानी में दोनों भाइयों की मनोरंजक तुलना है जिसमें स्नेह, आदर्श, विरोधाभास और संवेदना के ढेरों रंग है। दो भाइयों के दैनिक जीवन से जुड़ी इस कहानी में परंपरा और आधुनिकता का टकराव के साथ वर्तमान शिक्षा प्रणाली पर करारा व्यंग्य भी देखने को मिलता है। हास्य और व्यंग्य से भरपूर यह नाटक बच्चों पर पढ़ाई के दबाव और उसके मनोविज्ञान को भी रोचकता से बयान करता है।

दस्तक के विषय थोड़ी जानकारी पहली प्रस्तुति के समय यहाँ दी जा चुकी है। ज्यादा जानकारी तो नाटक देखकर ही मिल सकेगी। आज काफ़ी लोग उपस्थित थे। हालाँकि मीर के न आने से बड़े भाई साहब का रिहर्सल नहीं हो सका। इस नाटक में दो ही लोग हैं। कभी भी रिहर्सल हो सकता है तो परेशानी की विशेष कोई बात नहीं वैसे भी रिहर्सल तो आजकल रोज़ चल रहे हैं। आज हमारे बीच रंगमंच से स्नेह रखने वाला एक नया चेहरा था प्रिया का। इसके अतिरिक्त प्रकाश, कौशिक, डॉ.उपाध्याय, मूफ़ी, अश्विनि, रागिनी, सबीहा, संग्राम, मेनका और ज़ुल्फ़ी उपस्थित थे। हाँ एक और चेहरा भी था जिसका नाम पूछना फिर रह गया... ख़ैर फिर कभी। आज दस्तक के रिहर्सल के बाद निर्मल वर्मा की कहानी वीकएंड का पाठ हुआ। यह कहानी तीन एकांत का हिस्सा है। निर्मल वर्मा की तीन कहानियों ‘धूप का एक टुकड़ा’, ‘डेढ़ इंच ऊपर’ और ‘वीकएंड’ की मंच-प्रस्तुति देवेंद्र राज के निर्देशन में तीन एकांत शीर्षक से की गई थी। शायद तीन एकांत जैसा कुछ थियेटरवाला की आगामी किसी प्रस्तुति में देखने को मिले।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें