आज की चौपाल में रत्नाकर मतकरी के दुभंग का पाठ होना था। सुबह से तेज़ हवा चल रही थी और लगता था बाहर बैठना संभव न होगा शायद बारिश आ जाए। लेकिन समय सुहावना बना रहा। लोग कुछ देर से पहुँचे पर जिस जिस को पाठ के लिए बुलाया गया था वे सब आ गये। रत्नाकर मतकरी के इस मराठी नाटक का हिंदी रूपांतर किया था सरोजिनी वर्मा ने। नाटक की कहानी जानी पहचानी सी थी। यह स्वाभाविक भी था क्यों कि नाटक पुराना था फिर भी एक मसाला फ़िल्म सी कहानी अधिकतर लोगों को मनोरंजक लगी।
अभिनय पाठ में शिवराम की भूमिका के संवाद संग्राम ने, दमयंती की भूमिका के संवाद कविता ने, दीवान की भूमिका के संवाद कौशिक ने, शकुन की भूमिका के संवाद शालिनी ने, देवदत्त की भूमिका के संवाद डॉ. उपाध्याय ने और बापूजी की भूमिका के संवाद सुनील ने पढ़े। नाटक काफ़ी लंबा था और इसको पढ़ना कुछ देर से शुरू किया गया था इसलिए केवल दो अंक ही पढे जा सके। तीसरे अंक की कहानी डॉ. उपाध्याय ने संक्षेप में सुना दी। सदा की तरह कुछ बातचीत के साथ चाय पीते हुए चौपाल समाप्त हुई। आज उपस्थित लोगों में थे- संग्राम, कौशिक, सुनील, रागिनी, सबीहा, डॉ. लता, कविता, शालिनी, प्रकाश और डॉ. उपाध्याय। फोटो प्रवीण जी ने लिया।
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