कार्यक्रम के अनुसार आज चौपाल में आँसू और मुस्कान का दूसरा भाग पढ़ा जाना था। बहुत दिनों बाद आज दिलीप परांजपे साहब पहुँचे और वह भी सबसे पहले, उसके बाद प्रकाश और फिर शालिनी। थोड़ी देर बाद इरफ़ान आ गए। आज के कार्यक्रम में डॉ राहिल भी उपस्थित रहे। वे कुछ पहले चले गए इसलिए फोटो में कैद नहीं हो सके।
आज की चौपाल में स्पाइस रेडियो पर प्रसारित होने वाले तीन घंटे लंबे कार्यक्रम की चर्चा रही। इसको दिलीप जी प्रस्तुत करने वाले हैं। मल्हार द्वारा प्रस्तुत किए जाने सूफी गीतों के कार्यक्रम के विषय में भी बात हुई जिसमें थियेटरवाला की ओर से कुछ नाट्य तत्त्व का समावेश होने वाला है। इसके बाद आँसू और मुस्कान का दूसरा भाग पूरा किया गया। शिशिर और हेमंत के संवाद क्रमशः प्रकाश और दिलीप जी ने पढ़े तथा बरखा और वर्षा के शालिनी और मैंने। चित्र में बाँए से- मैं, शालिनी, दिलीप परांजपे, प्रकाश और इरफ़ान। दो नियमित सदस्य डॉ. शैलेष उपाध्याय और सबीहा मजगांवर अन्यत्र व्यस्त रहने के कारण चौपल में अनुपस्थित रहे।
शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010
शुक्रवार, 16 अप्रैल 2010
१६ अप्रैल, चौपाल स्थगित
चौपाल में इस सप्ताह आँसू और मुस्कान नाटक का दूसरा भाग पढ़ा जाना था लेकिन सदस्यों के अलग अलग कारणों से अनुपस्थित रहने के कारण ऐसा न हो सका और इस बार की चौपाल स्थगित हो गई।
शुक्रवार, 9 अप्रैल 2010
९ अप्रैल, आँसू और मुस्कान
चौपाल में इस सप्ताह पढ़ा गया वसंत कानेटकर द्वारा लिखित, पी.एल. मयेकर द्वारा नाट्य रूपांतरित तथा डा. शैलेष उपाध्याय द्वारा मराठी से हिंदी में अनूदित नाटक आँसू और मुस्कान। मौसम गर्म हो चला है। दोपहर ग्यारह बजे इतनी गर्मी थी कि हम चाहते हुए भी बाहर बिना एसी के नहीं बैठ सके। जहाँ सहज मंदिर में चौपाल लगती है वहाँ के तीनों एसी सफ़ाई और सर्विसिंग में लगे थे सो हम घर में खाने की मेज़ पर पाठ के लिए बैठे। आज उपस्थित लोगों में थे- डॉ. शैलेष उपाध्याय, सबीहा मजगाँवकर, प्रकाश सोनी, कौशिक साहा, और एक नये सदस्य नीलेश पाटिल। प्रवीण जी सफ़ाई और एसी कर्मचारियों के साथ कुछ अधिक व्यस्त थे इस कारण इस बार चित्र लेना रह गया।
सोमवार, 5 अप्रैल 2010
२ अप्रैल, अल्लादाद खाँ के साथ
पिछले सप्ताह शरद जोशी के नाटक एक था गधा उर्फ अल्लादाद खाँ का फिर न हो सका। कारण? कुछ सदस्य छुट्टी पर थे और बचे हुए सदस्य किसी कारण इसका पाठ न कर सके। इस बार की चौपाल का प्रारंभ मल्हाल के कार्यक्रम के विषय में बातचीत करते हुए शुरू हुआ। बात कहानियों के मंचन से शुरू होकर इमारात में लोकप्रिय नाटकों की शैली तक पहुँची। इस विषय पर भी बात हुई कि हम किस प्रकार कम लोगों के साथ नियमित थियेटर कर सकते हैं। हालांकि हम किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँचे पर बात करने से ही बात बनती है यह सोचकर बातें चलती ही रहती हैं। एक घंटे बाद नाटक का पाठ शुरू हुआ और एक घंटे में पहला अंक पूरा किया गया। पहले अंक में लगभग आधा नाटक पूरा हो जाता है। इस सप्ताह उपस्थित लोग थे बाएँ से प्रकाश सोनी, डॉ. शैलेष उपाध्याय, मैं, डॉ. लता, और सबीहा मजगाँवकर। सबीहा को कुछ जल्दी जाना था सो वे चाय से पहले निकल गयीं।
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