सोमवार, 5 अप्रैल 2010

२ अप्रैल, अल्लादाद खाँ के साथ

पिछले सप्ताह शरद जोशी के नाटक एक था गधा उर्फ अल्लादाद खाँ का फिर न हो सका। कारण? कुछ सदस्य छुट्टी पर थे और बचे हुए सदस्य किसी कारण इसका पाठ न कर सके। इस बार की चौपाल का प्रारंभ मल्हाल के कार्यक्रम के विषय में बातचीत करते हुए शुरू हुआ। बात कहानियों के मंचन से शुरू होकर इमारात में लोकप्रिय नाटकों की शैली तक पहुँची। इस विषय पर भी बात हुई कि हम किस प्रकार कम लोगों के साथ नियमित थियेटर कर सकते हैं। हालांकि हम किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँचे पर बात करने से ही बात बनती है यह सोचकर बातें चलती ही रहती हैं। एक घंटे बाद नाटक का पाठ शुरू हुआ और एक घंटे में पहला अंक पूरा किया गया। पहले अंक में लगभग आधा नाटक पूरा हो जाता है। इस सप्ताह उपस्थित लोग थे बाएँ से प्रकाश सोनी, डॉ. शैलेष उपाध्याय, मैं, डॉ. लता, और सबीहा मजगाँवकर। सबीहा को कुछ जल्दी जाना था सो वे चाय से पहले निकल गयीं।

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