शनिवार, 5 सितंबर 2009
४ सितंबर की चौपट चौपाल
बहुत दिनों बाद इस बार चौपाल चौपट रही। इसके कई कारण हैं। रमज़ान का महीना शुरू हो चुका है और इसके प्रारंभिक दिनों में इफ़्तार से पहले कोई घर से निकलना नहीं चाहता है। मौसम भी गर्म है। लंबी छुट्टियों के बाद यह दूसरी चौपाल थी और छुट्टियों से लौटे लोगों का मन अभी एकाग्र नही हुआ है। तीसरे ओम प्रकाश सोनी जिन्हें हम प्यार से प्रकाश कहते हैं और जो इस थियेटरवाला की रीढ़ हैं, अपनी नवजात बिटिया और परिवार को लाने भारत गए हैं। एक और कारण भी था सदस्यों की अनुपस्थिति का-- इस सप्ताह शुक्रवार चौपाल से पहले दो आकस्मिक गोष्ठियाँ और हो चुकी थीं। आकस्मिक इस लिए कि इंडियन हाई स्कूल दुबई की कांता भाटिया ने फ़ोन किया कि इंडियन स्कूल और भारतीय दूतावास के सौजन्य से 14 सितंबर को हिंदी दिवस का आयोजन किया जा रहा है। इस अवसर पर उनके थियेटर के लिए एक घंटे का नाटक चाहिए। इंडियन स्कूल दुबई का थियेटर इमारात के सबसे अच्छे थियेटरों में से है। वहाँ प्रस्तुति देना सुखद होता है। सहायक वस्तुओं (प्रॉप्स) का भंडार, प्रकाश और ध्वनि व्यवस्था, मंच के दोनों और बने, खुले खुले ग्रीन रूम, और ग्रीन रूम से बाहर ही बाहर स्कूल की बढ़िया कैंटीन तक जाने का रास्ता इसे दूसरे थियेटरों से अलग करते हैं। प्रेक्षागृह की क्षमता भी अधिक है शायद 1000 के आसपास होगी। हॉल बड़ा हो और पूरा भरा हो तो अभिनेताओं को अभिनय का असली मज़ा मिलता है।
हाँ तो बात नाटक की हो रही थी। हिंदी दिवस पर नाटक खेलना है तो किसी हिंदी साहित्यिक कृति पर ही होना चाहिए। समय कम है वर्ना कोई नया नाटक भी खेला जा सकता था। हमें कौन सा पुराना नाटक खेलना है उसमें कौन-कौन अभिनय कर रहा है। क्या अभिनेताओं में कोई मुस्लिम भी हैं और अगर हैं तो क्या वे रिहर्सल पर आ सकेंगे यह बात निश्चित करने के लिए आकस्मिक गोष्ठियाँ बुलानी पड़ी थीं। नाटक चुन लिया गया है। प्रकाश सोनी जिस भूमिका में अभिनय करते थे उसे कौशिक साहा करेंगे। संवाद के पृष्ठों का आदान प्रदान आदि भी हो गया। बस इसी सबके चलते शुक्रवार चौपाल में इस बार डॉ उपाध्याय को छोड़कर कोई नहीं आ सका। हम हिंदी दिवस पर कौन सा नाटक खेल रहे हैं और नाटक कैसा रहा इसकी सूचना अगले शुक्रवार तक स्थगित रखती हूँ। फोटो इस बार नहीं खिची इसलिए संक्रमण का एक पुराना चित्र प्रस्तुत है। यह चित्र पिछले साल दुबई में समकालीन साहित्य सम्मेलन, के अवसर पर 30 जुलाई 2008 को लिया गया था। यह मंचन बिना प्रकाश और ध्वनि के नुक्कड़ नाटक की तरह खेला गया था। चित्र में बाएँ से डॉ.शैलेष उपाध्याय, सबीहा मज़गाँवकर (बैठे हुए) और ओम प्रकाश सोनी।
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