छुट्टियों के बावजूद इस बार चौपाल में रौनक रही। सबसे पहले डॉ. उपाध्याय आए, फिर राजन सभरवाल, मैं और प्रवीण थे ही, थोड़ी देर में प्रकाश सोनी भी आ गए।
कार्यक्रम के अनुसार मौलियर का नाटक बिच्छू पढ़ा गया। इसका मंचन किया जाना है या नहीं यह तय नहीं हुआ है लेकिन कुछ कहानियों के मंचन की बात सबके मन में है। शायद अगली चौपाल में यह बात पूरी तरह निश्चित हो जाय कि सितंबर के पहले सप्ताह में कहानियों को लेकर हम क्या और कहाँ करने वाले हैं।
हमेशा की तरह अदरक वाली भारतीय चाय के साथ चौपाल का समापन हुआ। बेशक इस बार चाय के साथ चीकू भी थे, बगीचे में लगा चीकू के पेड़ का मधुरतम उपहार !
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