शुक्रवार, 6 मार्च 2009

६ मार्च, अगली तैयारियाँ


6 मार्च को दो कहानियों को पाठ होना था। प्रेमचंद की 'गुल्ली-डंडा' और हरिशंकर परसाईं की 'भोलाराम का जीव'। चौपाल थोड़ा देर से शुरू हुई। कुछ लोग भारत गए हैं और कुछ किसी पिकनिक के कार्यक्रम के कारण नहीं आ सके। आज उपस्थित रहे प्रकाश सोनी, कौशिक साहा, महबूब हसन रिज़वी, मेनका, नीरू, शान, मैं और प्रवीण। बीते नाटक के विषय में कुछ चर्चा हुई। कौशिक ने 'गुल्ली-डंडा' का पाठ किया और प्रकाश ने 'भोलाराम का जीव' का। अगली प्रस्तुति के विषय में भी बात हुई।

रिज़वी साहब सआदत हसन मंटो का नाटक 'बीच मँझधार में' करना चाहते हैं। उसके कुछ हिस्से पढ़े गए और पात्रों के चयन के विषय में कुछ बातचीत हुई। हाँ 26 फ़रवरी की प्रस्तुति से प्रभावित होकर इस बार एक नए मेहमान भी आए थे उनसे नाम पूछना याद नहीं रहा। वे मुंबई में थियेटर की दुनिया से बरसों जुड़े रहे हैं। शायद अगली बार विस्तृत बात करने का अवसर मिलेगा। यों तो शायद नीरू और श्याम भी एक साल बाद आए आज चौपाल में। एक फ़ोटो लिया था, यहाँ प्रस्तुत है। फोटो में प्रवीण, नीरू और मेरे सिवा सभी दिखाई दे रहे हैं।

1 टिप्पणी:

  1. रचनात्मक कार्यक्रमों और उनकी रिपोर्ट के लिए बधाई.
    आप भारत से दूर रह कर भी हिंदी पर कार्य कर रही है, हिंदी के कार्यक्रमों का आयोजन करती हैं और हिंदी की वृद्धि -समृद्धि के लिए लगन पूर्वक साक्रिय हैं , हम आपके प्रयासों के लिए नतमस्तक और ऋणी रहेंगे .
    -विजय

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