शनिवार, 7 नवंबर 2009
६ नवंबर, हँसी और जिंदगी
आज की चौपाल हलचल और रौनक वाली थी। काफ़ी लोग आए हुए थे और एक छोटे एकांकी के मंचन का कार्यक्रम भी था। लोगों का आना ज़रा जल्दी शुरू हुआ। एकांकी के कलाकार एक बार अभ्यास करना चाहते थे। लेकिन जब तक सारे अभिनेता इकट्ठा होते अन्य सदस्य भी आने शुरू हो गए थे, इसलिए अभ्यास नहीं किया गया। बहुत दिनों बाद चौपाल में 16 लोग थे। सबका एकत्र होना अच्छा लगा। प्रकाश के आते ही साहित्य पाठ का कार्यक्रम शुरू हो गया। मनोहर सहदेव की व्यंग्य रचना 'कागज के रावण मत फूँको' तथा हरिशंकर परसाईं की 'बोर' का पाठ किया गया।
इसके बाद चाय हुई और उसके बाद एकांकी हँसी और जिंदगी का प्रदर्शन हुआ। यह नाटक एक नुक्कड़ नाटक जैसा था जिसमें जीवन में हँसी और खुशी के महत्त्व को दर्शाया गया था। उपस्थित लोगों में डॉ. लता, अनुपमा, हेमंत और बाबर पहली बार आए थे। आमिर की पत्नी भी बहुत दिनों बाद चौपाल में आयीं। कुल मिलाकर सब कुछ आनंददायक रहा। कार्यक्रम के कुछ चित्र यहाँ प्रस्तुत हैं। सबसे ऊपर वाले चित्र में नाटक के कलाकारों में हैं- बाएँ से - मीर, इरफान, डॉ.उपाध्याय, कौशिक, बाबर, मेनका, सबीहा, अनुपमा, हेमंत और दिलीप परांजपे। दाहिनी ओर के चित्र में एकांकी का एक दृश्य है और उससे नीचे का चित्र व्यंग्य पाठ के अवसर का है।
कार्यक्रम के बाद कुछ पल विचार विमर्श के रहे। अगले सप्ताह की प्रस्तुति, गेंडाफूल के आगामी प्रदर्शन और कलाकारों की डेट्स की समस्याएँ। बहुत बार पुराने नाटक की प्रस्तुति के समय भी किसी न किसी कलाकार की अनुपस्थिति के कारण नए कलाकार को वह भूमिका करनी होती है। एक तरह से यह अच्छा ही है एक ही पात्र को जब दो लोग निभाते हैं तो नाटक में कुछ न कुछ नया पन भी आ जाता है। कुछ ऐसी ही व्यवस्था आगे होने वाले कुछ नाटकों के लिए की गयी। महर्रम और बकरीद आने वाले हैं। संयुक्त अरब इमारात का राष्ट्रीय दिवस भी पास ही है। ऐसे में छुट्टियों की भारमार है। सब घर में रहना चाहते हैं कोई बाहर आकर रिहर्सल में शामिल होना नहीं चाहता। इस सबके चलते अगला बड़ा प्रदर्शन फरवरी से पहले होने की उम्मीद नहीं।
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