२५ दिसंबर को चौपाल में लंदन में रहने वाले हिंदी लेखक महेन्द्र दवेसर दीपक के आतिथ्य का अवसर मिला। क्रिसमस का दिन था और सुबह तेज़ बारिश हुई थी। लगता था आज चौपाल खुले में नहीं लग सकेगी। सब लोग भी पता नहीं आ सकें या नहीं। सर्दियों के ऐसे सुंदर दिन बहुत कम समय के लिए आते हैं जब हम खुले में चौपाल लगा सकें। आज सुबह घनी बारिश हुई थी। लेकिन चौपाल के समय तक पानी खुल गया और हल्की धूप निकल आयी जिसके कारण मौसम सुहावना बना रहा। सबसे पहले डॉ.उपाध्याय आए फिर मेनका और कौशिक भी आ गए, मैं और प्रवीण जी थे ही। हम प्रकाश और दीपक जी की प्रतीक्षा में थे। भारतीय विदेश सेवा के अवकाश प्राप्त अधिकारी महेन्द्र दवेसर दीपक अपना 80वाँ जन्मदिन मनाने सपरिवार दुबई की यात्रा पर थे। उनको चौपाल तक लाने और वापस ले जाने का सौजन्य प्रकाश सोनी निभा रहे थे। जल्दी ही वे लोग आ पहुँचे और चौपाल का कार्यक्रम प्रारंभ हुआ।
उपस्थित सदस्यों में प्रकाश के अतिरिक्त थे डॉ. शैलेष उपाध्याय, मेनका, कौशिक साहा और प्रवीण सक्सेना। दीपक जी के तीन कहानी संग्रह प्रकाशित हुए हैं- पहले कहा होता, बुझे दिये की आरती और अपनी अपनी आग। उन्होंने चौपाल में अपनी अपनी आग संग्रह में से दो कहानियों का पाठ किया ये कहानियाँ थीं- नहीं... और सूखी बदली। कहानियों पर चर्चा हुई और हमने इमारात के नाट्य परिदृश्य के विषय में दीपक जी को बताया। इसके पहले निश्चित कार्यक्रम के अनुसार प्रकाश सोनी ने अमृतलाल नागर की कहानी पड़ोसन की चिट्ठियाँ पढ़ी और डॉ. उपाध्याय ने खुसरों की कहमुकरियाँ। हमेशा की तरह चाय के साथ लगभग दोपहर के एक बजे चौपाल समाप्त हुई।
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