रविवार, 7 मार्च 2010

५ मार्च, कंजूस


चौपाल में आजकल प्रति सप्ताह नाटकों के अभिनय पाठ का क्रम चल रहा है। इस सप्ताह मौलियर के नाटक कंजूस का हिंदी रूपांतर पढ़ा गया। रूपांतरकार है हज़रत आवारा। मुस्लिम परिवेश में रचा-बसा यह एक हास्य नाटक है। इन पाठों का आलेख मंगल-बुध तक ईमेल से भेज दिया जाता है। अधिकतर पीडीएफ प्रारूप में। एक फाइल में पात्रों के पाठ निर्धारित कर के भी संलग्न कर दिए जाते हैं। इस पाठ के लिए उपस्थित थे इसके पात्र-निर्धारण इस प्रकार था- निर्देश-प्रकाश, नासिर-सुनील जसूजा, अज़रा-सबीहा, फर्रुख-संग्राम, मिर्जा-डॉ.साहब, नंबू-कौशिक, दलाल-प्रकाश, फरजाना-पूर्णिमा, खेड़ा-प्रकाश, अलफ़ू-सुनील, मरियम-पूर्णिमा, हवलदार-प्रकाश और असलम-संग्राम। ये पाठ एक तरह से वाक्अभिनय के अभ्यास जैसे होते हैं। प्रस्तुति जैसे नहीं। समय के साथ इन पाठों से यह स्पष्ट होगा कि अलग अलग पात्रों में अलग अलग सदस्य अपनी आवाज़ किस प्रकार ढाल सकते हैं। अभी इन पाठों पर अधिक ध्यान नहीं दिया जाता, केवल नाटक को पढ़ने जैसा भाव रहता है पर आशा है भविष्य में ये पाठ सदस्यों के लिए गंभीर अभ्यास की नींव बनेंगे।

जिन सदस्यों के लिए जो भूमिकाएँ निर्धारित की गयी थीं वे सब तो उपस्थित नहीं थे। डॉ.साहब के पैर में मोच आ गई थी और उनका टखना प्लासटर में है। शालिनी के हाथ पर प्लास्टर है। व्यस्त जीवन में जो एक छुट्टी का दिन मिलता है उसे निश्चय ही आराम में लगाकर उन्होंने अच्छा काम किया। इस बार अचानक संजय ग्रोवर साहब उपस्थित थे। अक्सर पाठक उन्हें अभि-अनु के कवि और व्यंग्यकार संजय ग्रोवर समझते हैं लेकिन ये संजय ग्रोवर अलग हैं। कवि और लेखक संजय ग्रोवर दिल्ली में रहते हैं और कभी कभी अभिनय का शौक रखनेवाले संजय ग्रोवर दुबई के एक व्यवसायी हैं। आशा है अगले सप्ताह चौपाल के दोनों सदस्य डॉ. साहब और शालिनी, इतने बेहतर हो जाएँ कि चौपाल में आ सकें। दोनो सदस्यों के लिए बेहतर स्वास्थ्य की कामनाओं के साथ, दाहिनी ओर प्रस्तुत हैं इस सप्ताह के अभिनय पाठ के दो चित्र। बाएँ से दाएँ इनके परिचय इस प्रकार हैं- पूर्णिमा वर्मन, सबीहा मजगाँवकर, संग्राम, सुनील जसूजा, संजय ग्रोवर और प्रकाश सोनी, फोटो प्रवीण सक्सेना ने ली है।

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