शनिवार, 13 मार्च 2010

१२ मार्च, बकरी के साथ ढेर से अतिथि



इस सप्ताह चौपाल अतिथियों से भरा रहा। अवसर था सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के नाटक बकरी के अभिनय पाठ का। यूके के डार्बी नगर से गीतांजलि के सहयोगी सदस्य डॉ. संजय सक्सेना और उनकी पत्नी डाक्टर एलिसन के आने का कार्यक्रम पहले से तय था। एक दिन पहले आबूधाबी से कथाकार कृष्ण बिहारी ने भोपाल से पधारे कवि और गीतकार यतीन्द्रनाथ राही और निर्मला जोशी आने की सूचना भी दी। सुबह सबसे पहले प्रकाश सोनी आए। फिर डॉ. उपाध्याय, सबीहा और शालिनी आ गए। बकरी का पाठ समय से प्रारंभ कर दिया गया। दो अंकों के पूरा होते ही आबूधाबी से अतिथि भी आ गए।

दोपहर के बारह बज रहे थे, हमने चाय का अंतराल लिया और सभी अतिथि इसमें सम्मिलित हुए। दिन को और सफल बनाते हुए मध्य प्रदेश महिला जागृति परिषद की अध्यक्षा कवयित्री निर्मला जोशी ने संस्था की ओर से भेजी गई शॉल पहनाई तो मुझे भारत की सम्मान बाँटने की संस्कृति की स्मृति ताज़ा हो आई। काश मैंने भी कुछ तैयारी रखी होती तो अतिथियों को भी सम्मानित किया जा सकता लेकिन ऐसा संभव न हो सका। यू.के. से पधारे अतिथियों को दुबई में कुछ मित्रों से मिलना था और आबूधाबी से पधारे अतिथियों का दोपहर का भोजन भी दुबई में एक मित्र के यहाँ निश्चित था तो सबने विदा ली। अच्छा यह हुआ के आज बीच बीच में आती जाती तमाम रुकावटों के बावजूद चौपाल के सदस्यों ने नाटक का पाठ पूरा किया।


ऊपर के चित्र में बाएँ से सबीहा मजगाँवकर, यतीन्द्रनाथ राही, आबूधाबी से पधारे एक अतिथि, डॉ. एलिसन, शालिनी, सुनील, डॉ.उपाध्याय, प्रकाश, डॉ. संजय सक्सेना, और कृष्ण बिहारी। बीच के चित्र में सामने दाहिनी ओर भोपाल से पधारी गीतकार निर्मला जोशी और उनके पीछे मैं। नीचे के चित्र में बाएँ से प्रकाश सोनी, सबीहा मजगाँवकर, पीछे सुनील, निर्मला जोशी शॉल पहनाते हुए, प्रवीण सक्सेना, पीछे डॉ.एलिसन, शालिनी और कृष्ण बिहारी।

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