रविवार, 27 दिसंबर 2009

२५ दिसंबर, आगमन महेन्द्र दवेसर 'दीपक' का

२५ दिसंबर को चौपाल में लंदन में रहने वाले हिंदी लेखक महेन्द्र दवेसर दीपक के आतिथ्य का अवसर मिला। क्रिसमस का दिन था और सुबह तेज़ बारिश हुई थी। लगता था आज चौपाल खुले में नहीं लग सकेगी। सब लोग भी पता नहीं आ सकें या नहीं। सर्दियों के ऐसे सुंदर दिन बहुत कम समय के लिए आते हैं जब हम खुले में चौपाल लगा सकें। आज सुबह घनी बारिश हुई थी। लेकिन चौपाल के समय तक पानी खुल गया और हल्की धूप निकल आयी जिसके कारण मौसम सुहावना बना रहा। सबसे पहले डॉ.उपाध्याय आए फिर मेनका और कौशिक भी आ गए, मैं और प्रवीण जी थे ही। हम प्रकाश और दीपक जी की प्रतीक्षा में थे। भारतीय विदेश सेवा के अवकाश प्राप्त अधिकारी महेन्द्र दवेसर दीपक अपना 80वाँ जन्मदिन मनाने सपरिवार दुबई की यात्रा पर थे। उनको चौपाल तक लाने और वापस ले जाने का सौजन्य प्रकाश सोनी निभा रहे थे। जल्दी ही वे लोग आ पहुँचे और चौपाल का कार्यक्रम प्रारंभ हुआ।

उपस्थित सदस्यों में प्रकाश के अतिरिक्त थे डॉ. शैलेष उपाध्याय, मेनका, कौशिक साहा और प्रवीण सक्सेना। दीपक जी के तीन कहानी संग्रह प्रकाशित हुए हैं- पहले कहा होता, बुझे दिये की आरती और अपनी अपनी आग। उन्होंने चौपाल में अपनी अपनी आग संग्रह में से दो कहानियों का पाठ किया ये कहानियाँ थीं- नहीं... और सूखी बदली। कहानियों पर चर्चा हुई और हमने इमारात के नाट्य परिदृश्य के विषय में दीपक जी को बताया। इसके पहले निश्चित कार्यक्रम के अनुसार प्रकाश सोनी ने अमृतलाल नागर की कहानी पड़ोसन की चिट्ठियाँ पढ़ी और डॉ. उपाध्याय ने खुसरों की कहमुकरियाँ। हमेशा की तरह चाय के साथ लगभग दोपहर के एक बजे चौपाल समाप्त हुई।

शनिवार, 19 दिसंबर 2009

१८ दिसंबर, सफल मंचन के संतोष का अवकाश

१७ दिसंबर को भारतीय दूतावास, आबूधाबी में संक्रमण और गैंडाफूल के मंचन से कलाकार और दर्शक दोनो संतुष्ट दिखे। इस कार्यक्रम की योजना काफ़ी पहले से बन चुकी थी लेकिन काफ़ी परेशानियों से गुज़रना पड़ा। कलाकारों की व्यक्तिगत व्यस्तताएँ और यात्राएँ नाटकों के पूर्वाभ्यास को डाँवाडोल करती रहीं। संक्रमण में सबीहा द्वारा अभिनीत भूमिका में इस बार रागिनी थीं। उनके फ़ेसबुक प्रोफ़ाइल से लगता है कि उनका अभिनय दर्शकों द्वारा काफ़ी पसंद किया गया। कार्यक्रम की समाप्ति पर प्रकाश का फोन भी आया था। वे भी प्रसन्नचित्त और संतुष्ट मालूम होते थे। चित्र अभी नहीं आए हैं जैसे ही आएँगे लिंक यहाँ देने का प्रयत्न करेंगे।

इस कार्यक्रम का आयोजन आबूधाबी में होना था, जिसके लिए इमारात के जानेमाने, कथाकार कवि और 'निकट' के संपादक कृष्ण बिहारी ने दूतावास के साथ मिलकर ज़ोरदार तैयारियाँ की थीं। दूतावास का थियेटर पारंपरिक थियेटर नहीं है तो भी कलाकारों को वहाँ अभिनय कर संतुष्टि मिली, यह बड़ी उपलब्धि दोनो नाटक दर्शकों ने पसंद किए और जी भर कर सराहना मिली। आयोजन के सफल संचालन और सुव्यवस्था में दूतावास के साथ कृष्ण बिहारी के व्यक्तिगत प्रयत्नों का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा। कार्यक्रम के बाद रात्रिभोज की व्यवस्था थी जिसके कारण शारजाह और दुबई के कलाकारों को घर लौटते काफ़ी रात हो गई थी। वैसे भी कड़ी मेहनत और सफल कार्यक्रम के उपलक्ष्य में एक दिन की छुट्टी तो बनती ही है। कुल मिलाकर यह कि १८ दिसंबर को सफल मंचन के संतोष में चौपाल की छुट्टी रही।

रविवार, 13 दिसंबर 2009

११ दिसंबर, पूर्वाभ्यास का दिन

१७ दिसंबर को भारतीय दूतावास, आबूधाबी में संक्रमण और गैंडाफूल के मंचन का कार्यक्रम है। इनके पूर्वाभ्यास के लिए सबको ११ तारीख की सुबह साढ़े दस बजे मिलना था। लेकिन... एक तरफ मौसम कुछ सुस्त रहा और कलाकारों की व्यस्तता कुछ तेज़। संक्रमण में माँ की भूमिका निभानेवाली कलाकार सबीहा छुट्टी पर भारत में हैं उनके स्थान पर रागिनी अभिनय करेंगी। इस परिवर्तन के कारण लगातार रिहर्सलों की ज़रूरत है। गेंडाफूल की एक कलाकार कविता भी भारत की यात्रा पर जाने वाली हैं। अगर ऐसा हुआ तो उनका स्थान मेनका लेंगी। सब अनुभवी कलाकार हैं पर संवादों को याद करना और उसमें घुलकर अभिनय का बाहर आना इसमें समय लगता है।

पिछले एक कार्यक्रम से टीम को संतोष नहीं हुआ था। आशा है यह कार्यक्रम उससे बेहतर रहेगा। सारे कलाकार न हों तो पूर्वाभ्यास ढंग से नहीं होता। इस कारण आज भी बाकी कलाकार अभ्यास की मनःस्थिति तक नहीं पहुँच सके। प्रकाश ने नेमिचंद्र जैन द्वारा किया गया मोहन राकेश के नाटकों का संग्रह खोला और आधे अधूरे का पाठ शुरू किया। कुछ देर बाद मैं पहुँची फिर मेनका और प्रवीण जी भी आ गए। गेंडाफूल की डावाँडोल परिस्थितियों को देखते हुए ज़रूरी समझा गया कि इसकी स्क्रिप्ट की फोटोकॉपी मेनका को दे दी जाय। प्रकाश उसकी फोटोकॉपी कराने बाहर गए। इस बीच डॉ. उपाध्याय और मैने हरिशंकर परसाईं की कुछ व्यंग्य रचनाओं का पाठ किया। प्रकाश लौटे तो बारिश के हल्के छींटे गिरने लगे थे। मैं चाय बनाने के लिए उठी और मेनका व प्रकाश गेंडाफूल का पाठ करने लगे। फ्रिज में अदरक नहीं थी सो इस बार सिर्फ इलायची से काम चलाना पड़ा। इमारात में चाय तो सभी पीते हैं पर बारिश का मज़ा कभी कभी ही आता है। इस दृष्टि से आज का दिन सफल रहा।

गुरुवार, 3 दिसंबर 2009

४ दिसंबर, उजालों से छिटका सूरज


इस सप्ताह चौपाल का विषय था- नाट्य-पाठ। नाटक का नाम - "उजालों से छिटका सूरज" यह नाटक रोबर्ट एन्डरसन के नाटक टी एंड सिंपेथी का हिंदी रूपांतर है। रूपांतरकार हैं जितेन्द्र कपूर, लेकिन ऐसा अक्सर होता है कि जो विषय तय किया जाता है उस पर बात नहीं होती या हो पाती। चर्चा का प्रारंभ पिछले हफ्ते हुए गेंडाफूल के प्रदर्शन से हुआ। प्रति माह एक नाटक करने का जो नियम हमने बनाया था उसमें कभी कदा रुकावट आई है। इसको कैसे दूर किया जाय इस बात पर बात हुई। कुछ नाटक जब दुबारा होते हैं तब उनके प्रदर्शन में कुछ ढीलापन देखने में आता है। उसके क्या कारण हैं और उनको दूर कैसे किया जाय इस विषय पर भी बात हुई। पिछले दिनो जिस थियेटर को नियमित रूप से बुक करते थे उसका प्रबंधन बदलने के बाद उसका खर्च दुगने से भी ज्यादा हो गया है इसलिए नाटक करने के लिए किसी नयी जगह की तलाश भी अभी तक पूरी नहीं हुई है।

कुछ लोगों का विचार है कि हम होटलों की बार का प्रयोग इसके लिए कर सकते हैं। जहाँ मंच और बैठने की सुविधा तो होती ही है चाय की सुविधा भी मिल जाती है। प्रकाश और ध्वनि की वैसी व्यवस्था तो नही होती जैसी थियेटर में होती है। स्पाट लाइट नहीं होती, डिम की जाने वाली प्रकाश व्यवस्था भी नहीं होते। फेड आउट के स्थान पर स्विच ऑन-ऑफ करने पड़ते हैं। यहाँ इस प्रकार के होटल साफ सुथरे व्यवस्थित और आकर्षक होते हैं और दिन में बार खाली भी रहती है इस कारण कम खर्च में मिल जाती है। लेकिन कुछ लोगों की धारणा इनके विषय में ठीक नहीं है। उनका कहना है कि जब ताकतवर नीग्रो सुरक्षा गार्ड पार्किंग में आपकी कार को बाज़ दृष्टि से देखते हुए सख्ती से ठीक पार्किंग के आदेश देते हैं तो अच्छा नहीं लगता। खैर देखते हैं सबका निर्णय क्या होता है और काम आगे कैसे बढ़ता है। हमने प्रति सप्ताह चौपाल में एक 5 से 10 मिनट की प्रस्तुति का निर्णय भी लिया है। अगली बार डॉ.उपाध्याय शरद जोशी का एक व्यंग्य प्रस्तुत करेंगे। देखते हैं यह प्रयोग कितना रचनात्मक सिद्ध होता है। आज आने वालों के चित्र दाहिनी ओर हैं। सभी पुराने बलॉग पढ़नेवाले साथी इन्हें अब तक ठीक से पहचनाने लगे हैं फिर भी सुविधा के लिए बाएँ से प्रकाश सोनी, डॉ.शैलेष उपाध्याय, मैं, मेनका और कौशिक साहा। फ़ोटो प्रवीण जी ने लिया है।

शनिवार, 28 नवंबर 2009

२७ नवंबर, बकरीद की छुट्टी

बकरीद का उपलक्ष्य में इस शुक्रवार चौपाल की छुट्टी रही। अगली चौपाल ४ दिसंबर को लगेगी। तब फिर से उपस्थित होंगे नये समाचारों के साथ।

शनिवार, 21 नवंबर 2009

२० नवंबर, प्रो. हिज़बिज़बिज़


आज की चौपाल के विशेष आकर्षण रहे प्रो. हिज़बिज़बिज़। सब लोग नहीं जानते हैं कि सत्यजित राय ने रहस्य और रोमांच से भरपूर अनेक कहानियाँ लिखी हैं। प्रो. हिज़बिज़बिज़ ऐसी ही एक कहानी थी। उनकी लिखी ऐसी एक कहानी फ्रिंस हम पहले ही पढ़ चुके हैं।

उपस्थिति आज भी कम रही। कुछ तो इसलिए कि सब लोग बकरीद की तैयारियों में व्यस्त हैं। दूसरे २१ की शाम शारजाह लेडीज़ क्लब के लिए थियेटरवाला और इन टू आर्ट की ओर से गेंडा-फूल का मंचन भी होना था। कुछ लोग उसके रिहर्सल में व्यस्त रहे। आज उपस्थित लोगों में थे- सबीहा, प्रकाश, प्रवीण और मैं। प्रवीण जी का कैमरा आज नहीं चला सेल ठीक से चार्ज नहीं हुए थे इसलिए आज की फोटोग्राफ़र बनीं सबीहा। चित्र में बाएँ से प्रवीण सक्सेना, प्रकाश सोनी और मैं।

रविवार, 15 नवंबर 2009

१३ नवंबर और तीन कहानियाँ


आज की चौपाल में तीन अनूदित कहानियों के पाठ का कार्यक्रम था। वर्षा अडलाज़ा की गुजराती कहानी का हिंदी रूपांतर 'चाँद के उजाले में', जिसे डॉ. लता ने पढ़ा, अमर जलील की सिंधी कहानी का हिंदी रूपांतर 'तारीख का कफ़न' जिसे डॉ. उपाध्याय ने पढ़ा और शांताराम सोमयाजी की कन्नड़ कहानी 'पानी पर चलनेवाला' जिसे प्रकाश सोनी ने पढ़ा। उपस्थित लोगों में थे- डॉ लता, डॉ उपाध्याय, प्रकाश सोनी, मैं, प्रवीन और मेनका।

साहित्य पाठ में रुचि रखनेवाले सदस्य कम ही हैं। फिर आजकल मौसम भी सुहावना हो चला है, सारे दिन ट्रैकिंग और सैर सपाटे का मौसम इमारात में लंबा नहीं होता। इसलिए सुहावने मौसम को छोड़कर साहित्य पढ़ने के लिए आना तब तक संभव नहीं जबतक इसमें गहरी रुचि न हो। चौपाल के अनेक सदस्य एक ट्रैकिंग समूह से जुड़े हैं। आज का उनका दिन यहाँ अनुपस्थिति का रहा। मौसम की मेहरबानी के कारण हम भी सहज मंदिर की बजाय बाहर लॉन के सामने बने बरामदे में बैठे। चित्र में बाएँ से मेनका, डॉ.लता, मैं, प्रकाश सोनी और डॉ.उपाध्याय। फोटो प्रवीण सक्सेना ने लिया।

शनिवार, 7 नवंबर 2009

६ नवंबर, हँसी और जिंदगी


आज की चौपाल हलचल और रौनक वाली थी। काफ़ी लोग आए हुए थे और एक छोटे एकांकी के मंचन का कार्यक्रम भी था। लोगों का आना ज़रा जल्दी शुरू हुआ। एकांकी के कलाकार एक बार अभ्यास करना चाहते थे। लेकिन जब तक सारे अभिनेता इकट्ठा होते अन्य सदस्य भी आने शुरू हो गए थे, इसलिए अभ्यास नहीं किया गया। बहुत दिनों बाद चौपाल में 16 लोग थे। सबका एकत्र होना अच्छा लगा। प्रकाश के आते ही साहित्य पाठ का कार्यक्रम शुरू हो गया। मनोहर सहदेव की व्यंग्य रचना 'कागज के रावण मत फूँको' तथा हरिशंकर परसाईं की 'बोर' का पाठ किया गया।


इसके बाद चाय हुई और उसके बाद एकांकी हँसी और जिंदगी का प्रदर्शन हुआ। यह नाटक एक नुक्कड़ नाटक जैसा था जिसमें जीवन में हँसी और खुशी के महत्त्व को दर्शाया गया था। उपस्थित लोगों में डॉ. लता, अनुपमा, हेमंत और बाबर पहली बार आए थे। आमिर की पत्नी भी बहुत दिनों बाद चौपाल में आयीं। कुल मिलाकर सब कुछ आनंददायक रहा। कार्यक्रम के कुछ चित्र यहाँ प्रस्तुत हैं। सबसे ऊपर वाले चित्र में नाटक के कलाकारों में हैं- बाएँ से - मीर, इरफान, डॉ.उपाध्याय, कौशिक, बाबर, मेनका, सबीहा, अनुपमा, हेमंत और दिलीप परांजपे। दाहिनी ओर के चित्र में एकांकी का एक दृश्य है और उससे नीचे का चित्र व्यंग्य पाठ के अवसर का है।


कार्यक्रम के बाद कुछ पल विचार विमर्श के रहे। अगले सप्ताह की प्रस्तुति, गेंडाफूल के आगामी प्रदर्शन और कलाकारों की डेट्स की समस्याएँ। बहुत बार पुराने नाटक की प्रस्तुति के समय भी किसी न किसी कलाकार की अनुपस्थिति के कारण नए कलाकार को वह भूमिका करनी होती है। एक तरह से यह अच्छा ही है एक ही पात्र को जब दो लोग निभाते हैं तो नाटक में कुछ न कुछ नया पन भी आ जाता है। कुछ ऐसी ही व्यवस्था आगे होने वाले कुछ नाटकों के लिए की गयी। महर्रम और बकरीद आने वाले हैं। संयुक्त अरब इमारात का राष्ट्रीय दिवस भी पास ही है। ऐसे में छुट्टियों की भारमार है। सब घर में रहना चाहते हैं कोई बाहर आकर रिहर्सल में शामिल होना नहीं चाहता। इस सबके चलते अगला बड़ा प्रदर्शन फरवरी से पहले होने की उम्मीद नहीं।

शनिवार, 31 अक्तूबर 2009

३० अक्तूबर, सहयोग का विस्तार

आज की चौपाल लंबी बातचीत के साथ समाप्त हुई। बातचीत का विषय ऐसी संभावना की खोज था जहाँ नाटकों का मंचन एक से अधिक समूहों द्वारा मिलकर किया जाए और मंचन के खर्चो का बटवारा हो सके। तीन नाटक समूहों के अध्यक्ष इस चौपाल में उपस्थित थे। थियेटरवाला के प्रकाश, प्रतिबिम्ब के महबूब हसन रिजवी और रिहर्सल एंड ड्रामा के दिलीप परांजपे। नाटकों के इस प्रकार मंचन करने में किस थियेटर का उपयोग किया जाएगा,कौन कौन से नाटक समूह इसमें शामिल होना पसंद करेंगे और नाटक की लंबाई तथा विषय क्या रहेंगे इस विषय पर भी चर्चा हुई।

सभी समूह इस बात पर एक मत थे कि इस तरह से प्रयोग सफल हो सकते हैं। मिलकर नाटक किए जाएं तो डेढ़-डेढ़ घंटे के दो नाटक ठीक रहेंगे। कुछ का मत था कि 40-45 मिनट के तीन एकांकी या कहानियाँ करना भी ठीक रहेगा जबकि कुछ ने तीन एकांकियों या कहानियों के प्रति सहमति नहीं दिखाई उनका कहना था कि स्टेज सजाने में समय लगता है और दो अंतराल कार्यक्रम के लिए ठीक नहीं रहेंगे। कुछ का कहना था कि संयुक्त कार्यक्रम में से एक हल्का फुल्का और दूसरा गंभीर नाटक होना चाहिए जबकि कुछ का विचार था कि दोनो नाटक एक ही मूड के हों तो अधिक अच्छा होगा। क्या अगला नाटक नवंबर में खेला जा सकता है? क्या दिसंबर और जनवरी में मंच प्रस्तुति के लिए हमारे पास कुछ है इस संभावना की भी खोज हुई।

दुबई मेल इस बार भी नहीं आई। शायद अगली भेंट हो। बिमान दा वापस इमारात लौट आए हैं इस बात की भी सूचना मिली। वे इस बार शारजाह में नहीं दुबई में रह रहे हैं। प्रकाश भी अपनी नई नौकरी बदलने के बाद दुबई स्थानांतरित हो गए हैं। कुल मिलाकर यह कि चौपाल के अधिकतर सदस्य अब दुबई में हैं और शारजाह में अब कम लोग ही रह गए हैं। आज उपस्थित लोगों में थे चित्र में बाएँ से प्रकाश, सबीहा, मेनका, आमिर रिजवी साहब, दिलीप परांजपे, मीर, मूफ़ी और इरफ़ान। बहुत दिनों बाद मिले तो सब बदले बदले लग रहे थे। सबीहा काफी दुबली लगीं, दिलीप साहब ने नया विग बनवाया है जबकि मीर और इरफान ने अपने सिर के बाल मुंडवा रखे थे।

सोमवार, 26 अक्तूबर 2009

२३ अक्तूबर, तैयारियाँ खिलजी के दाँत की

बहुत दिनों बाद इस सप्ताह चौपाल फिर से सहज मंदिर में लगी। सबीहा के निर्देशन में के. पी. सक्सेना के नाटक खिलजी के दाँत के मंचन का योजना बन रही है। कभी एक दो बार चौपाल न लगे तो अगली बार कम लोग आते हैं। इस बार भी कुछ ऐसा ही था। प्रकाश के यहाँ मेहमान थे इसलिए वे अनुपस्थित रहे लेकिन डॉ. साहब और कौशिक भारत से लौट आए हैं तो चौपाल में उनकी उपस्थिति रही। मेनका और सबीहा भी आए, आमिर बहुत दिनों बाद दिखाई दिए। प्रवीण और मैं तो थे ही। बात विशेष रूप से खिलजी के दाँत के मंचन की संभावनाओं और कठिनाइयों के विषय में हुई। धन की व्यवस्था सबसे बड़ी समस्या रहती है। यह नाटक हास्य-व्यंग्य से भरपूर है और लगभग ४० मिनट का है तो दो नाटक समूहों को एक साथ मिलाकर दो नाटक करने की योजना पर भी बातचीत हुई। शायद इसे फरवरी में मंचित किया जाएगा। सबने मिलकर नाटक का पाठ भी किया। चित्र में बाएँ से- कौशिक, डॉ. उपाध्याय, आमिर, सबीहा और मेनका।

रविवार, 11 अक्तूबर 2009

९ अक्तूबर, जमघट अली भाई के घर पर

शुक्रवार चौपाल इस बार अली भाई के घर पर लगी। सबीहा का फोन जिसमें निज़ाम का नंबर था दगा दे गया। इस लिए फोटो नहीं खिंची और निज़ाम से संपर्क न होने के कारण चौपाल सहज मंदिर में नहीं लग सकी, जहाँ वह हमेशा लगती है। प्रकाश अपना घर बदल रहे हैं अतः वे भी अनुपस्थित रहे। 3 अक्तूबर को मंचित लियो आर्ट्स के नाटक "जिस लाहौर..." के विषय में बात हुई और 'खिलजी के दाँत' नाटक पढ़ा गया। अली भाई के अतिरिक्त इस चौपाल में डॉ. उपाध्याय, और सबीहा उपस्थित थे। साढ़े ग्यारह तक मोहित और मेनका भी पहुँच गए। मोहित इस चौपाल के नये सदस्य हैं। दोपहर के लगभग एक बजे चौपाल समाप्त हुई।

रविवार, 4 अक्तूबर 2009

२ अक्तूबर, शहर से अनुपस्थित

इस बार मैं अपने शहर शारजाह से दूर सहारनपुर के एक गाँव में हूँ। खुशी की बात यह है कि इस गाँव में इंटरनेट है। ईमेल चेक करने के लिए इस कैफ़े में आई हूँ। प्रकाश का ईमेल आया है। इस बार की चौपालके विषय में वे लिखते हैं कि this friday we are not having chaupal as dr sab is in india, too. sabiha and others are involved in 'jis lahore nahi dekhya...aap bhi nahi hai.... vaise bhi gine chune log hi aate hai...to socha seedhe agle friday hi mile... लगता है चौपाल के पाठकों अब आगले सप्ताह की जानने को मिलेगा कि शारजाह के थियेटरवाला क्या कर रहे हैं। ठीक है तो फिर अगली बार ही मिलते हैं।

शनिवार, 26 सितंबर 2009

२५ सितंबर, साथियों की वापसी


ईद के बाद यह पहला शुक्रवार था। बहुत से लोगों के आने की उम्मीद थी लेकिन लगता है लोग अभी त्योहार के नशे से उबरे नहीं हैं। डॉ.उपाध्याय आज सबसे पहले पहुँचे। हालाँकि प्रकाश आमतौर पर सबसे पहले आते हैं लेकिन वे घर बदलने की वयस्तताओं में हैं, इस बार उनका आना संभव नहीं हुआ। सबीहा समय से आने वालों में हैं पर इस बार वे कुछ देर से आयीं। बहुत दिनों से गायब मूफ़ी को देखकर सबके चेहरे पर खुशी छा गई। थोड़ी ही देर में मेनका भी आ गयीं। बस अपनी चौकड़ी पूरी हो गई। तमाम दिनों से बंद बातों का डिब्बा खुल गया। अगली प्रस्तुति के विषय में तो बात हुई ही तमाम ऐसी बातें भी हुईं जो नाटक या चौपाल से संबंधित नहीं थीं। टीवी सीरियलों की बातें, नई फ़िल्मों की बातें और भी बहुत सी बातें। आज के कार्यक्रम में हमें अशोक लाल का नाटक आम आदमी... पढ़ना था लेकिन पात्र पूरे ने होने के कारण हमने गुलज़ार की कहानी धुआँ और भीष्म साहनी की कहानी चीफ़ की दावत पढ़ी। मेनका कभी चाय नहीं पीती हैं। सबीहा भी तबतक चाय पीना पसंद नहीं करतीं जबतक रिहर्सल की थकान न हो। चाय के लिए मना न करने वालों में आज सिर्फ दो लोग थे डॉ.उपाध्याय और मूफ़ी, यानि बहुमत में दम नहीं था। सबीहा ने बीच का रास्ता अपनाया और बोलीं के वे बिना दूध की चाय पी सकती हैं जिसे यहाँ की भाषा में सुलेमानी कहते हैं। फिर तो सभी सुलेमानी के लिए तैयार हो गए। चौपाल में आज पहली बार सुलेमानी की बहार रही। जिस सहज मंदिर में चौपाल लगती है वहाँ कुछ कुर्सियाँ भी रहती हैं। कुछ लोग हैं जो ज़मीन पर बैठकर ध्यान नहीं कर सकते। आज हम कुछ ही लोग थे तो कुर्सियों पर ही बैठ गए। चित्र में बाएँ से-डा.उपाध्याय, मूफ़ी, सबीहा और मेनका। फोटो प्रवीण सक्सेना ने ली है। बहुत दिनों से दुबई मेल नहीं आयी है। शायद वे अगली बार से चौपाल में शामिल होना शुरू करें। इस अगले सप्ताह से मैं तीन हफ़्ते की छुट्टी पर हूँ सबीहा ने वादा किया है कि वे चौपाल लिखना जारी रखेंगी। मूफ़ी का केटरिंग का व्यवसाय है। चाय उनके ज़िम्मे रहेगी। किसी कारण से वे न आ सके तो डॉ.उपाध्याय का सौजन्य तो है ही। कमरा खोलने और एसी चालू करने का काम निज़ाम करेगा। बस इसी बात पर हमने विदा ली।

शनिवार, 19 सितंबर 2009

१८ सितंबर, सफल सप्ताह

यह सप्ताह चौपाल के बहुत से सदस्यों के लिए असीमित व्यस्तताओं से भरा रहा। रमज़ान की चहल-पहल, नौकरी की भाग-दौड़ और इस सब के साथ इंडियन स्कूल में कहानी संक्रमण की प्रस्तुति के लिए डॉ. उपाध्याय,प्रकाश, सबीहा और कौशिक को काफ़ी भागदौड़ का सामना करना पड़ा। अंतिम समय पर कल्याण और संग्राम भी सहयोग के लिए आ मिले तो प्रदर्शन अच्छा रहा। सब खुश थे। दूतावास से कौंसलाधीश और सांस्कृतिक सचिव की उपस्थिति ने अभिनेताओं को खासा रोमांचित किया। साथ के चित्र में प्रदर्शन से पहले ग्रीनरूम से बाएँ से डॉ.उपाध्याय, प्रकाश, संग्राम, सबीहा, कल्याण और त्रिवेणी। कौशिक तब तक पहुँचा नहीं था, सुबह की भाग दौड़ वाली व्यस्त सड़कों पर ट्रैफ़िक के बीच से उसका फ़ोन ज़रूर आ गया था। अच्छा यह रहा कि नाटक से पहले कुछ और भी कार्यक्रम थे और वह समय से पहुँच गया। प्रस्तुति के कुछ चित्र डॉ.उपाध्याय ने पिकासा पर यहाँ रखे हैं, कुछ लोगों को रोचक लगेंगे।

इस शुक्रवार चौपाल में बंगलुरु के रंगकर्मी और साहित्यकार मथुरा कलौनी के आतिथ्य का अवसर मिला। वे पिछले कई सालों से हिंदी रंगमंच के विकास में महत्त्वपूर्ण काम कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त वे नाटक, कविता और कहानियाँ भी लिखते रहे हैं। अभिव्यक्ति में भी उनकी रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं। इस बार चौपाल में उनके हाल ही में मंचित नाटक खराशें की वीडियो रेकार्डिग देखाई गई। उनसे कविता सुनी और प्रकाश सोनी ने उनकी कहानी 'एक दो तीन' का पाठ किया। कहानी खासी रोचक थी और सबने इसका मज़ा लिया। बाद में सबने मिलकर खाना खाया। चौपाल में दो नाटकों की विशेष चर्चा रही। 'खराशें' और 'कब तक रहें कुँवारे'। दोनो ही नाटक मथुरा कलौनी जी के हैं। खराशें जहाँ राष्ट्रीय और सामाजिक समस्याओं को लेकर बुना गया विचारोत्तेजक नाटक है वहीं कब तक रहें कुँवारे हास्य व्यंग्य से परिपूर्ण है। कब तक रहें कुँवारे की एक कव्वाली काफ़ी रोचक रही थी। इस कव्वाली को यहाँ देखा जा सकता है। खराशें का एक दृश्य यहाँ देखा जा सकता है। कार्यक्रम के अंत में हमने कलौनी जी को थियेटरवाला की ओर से प्रस्तुत कुछ नाटकों के सी.डी. भेंट किए। आज के कार्यक्रम में उपस्थित थे अतिथि साहित्यकार श्री मथुरा कलौनी, डॉ. शैलेश उपाध्याय, प्रकाश सोनी, सबीहा मजगाँवकर, कौशिक साहा, प्रवीण सक्सेना, दिलीप परांजपे, कल्याण चक्रवर्ती और त्रिवेणी शेट्टी।

नवरात्र हैं और डाँडिया की धूम इमारात में भी खूब रहती है। इस अवसर पर सबके मनोरंजन के लिए हमारे सदस्य दिलीप परांजपे ने अजमान बीच होटल में डाँडिया का आयोजन किया है। यह आयोजन इसलिए भी विशेष है कि यह शतप्रतिशत असली डाँडिया है जिसमें डाँडिया नचवाने वाला एक पारंपरिक ग्रुप भारत से बुलाया गया है। यानी सिर्फ रेकार्ड नहीं बजेंगे। लाइव संगीत होगा। 23, 24, 25 और 26 की शाम 9 से 12 तीन घंटे लगातार चलने वाले इस धूमधाम भरे कार्यक्रम में भाग लेने वालों के लिए विस्तृत जानकारी साथ के पोस्टर को क्लिक कर के देखी जा सकती है।

शनिवार, 12 सितंबर 2009

११ सितंबर, तैयारियाँ हिंदी दिवस की


इस बार चौपाल का विशेष कार्यक्रम आगामी नाटक का रिहर्सल रहा। दरअसल यह नाटक नहीं है बल्कि कामतानाथ की कहानी संक्रमण का मंचन है। कहानी में कोई परिवर्तन या नाट्य रूपांतर नहीं किया गया है। ज़रूर मंचन की दृष्टि से मंच सज्जा की गई है और पत्रों को अभिनय और संचालन दिए गये है। प्रकाश और ध्वनि की व्यवस्था भी की गई है। यह मंचन हिंदी दिवस के अवसर पर इंडियन हाई स्कूल और भारतीय दूतावास द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में होना है। नाटक लगभग तैयार है। कुछ परिवर्तनों के साथ इसे प्रस्तुत किया जाना है। भूमिकाओं में भी परिवर्तन हुए हैं। सब कुछ मिलाकर रिहर्सल अच्छा रहा। सबको संवाद और मूवमेंट्स याद थे। पिता की भूमिका में हैं डॉ. शैलेष उपाध्याय, पुत्र की भूमिका में हैं कौशिक साहा और माँ की भूमिका सबीहा निभा रही हैं। निर्देशन प्रकाश सोनी का है। साथ के चित्र में वे सबीहा को कुछ समझाते हुए।

आज की चौपाल कुछ देर से शुरू हुई थी- प्रकाश और कौशिक की प्रतीक्षा में। प्रकाश बूँदी के लड्डू लाए थे। मन्नत मुंबई से शारजाह आ गई है, इसी खुशी में। कौशिक ने कहा सिर्फ मिठाई से काम नहीं चलेगा। तो इस बार चाय के साथ मिठाई और नमकीन भी रहे। ऐसे मौके रोज़ तो नहीं आते। सबीहा ने बताया बिमान दा भी दुबई लौट आए हैं। काफ़ी लोग अभी भी देश विदेश घूम रहे हैं। आज की चौपाल में थे डॉ. उपाध्याय, प्रकाश सोनी, कौशिक साहा, सबीहा मजगाँवकर और मैं। लगता है ईद तक कम लोग ही आएँगे चौपाल में। देखते हैँ अगली बार कैसा रहता है। आशा रखें 15 सितंबर का कार्यक्रम अच्छा रहे।

शनिवार, 5 सितंबर 2009

४ सितंबर की चौपट चौपाल


बहुत दिनों बाद इस बार चौपाल चौपट रही। इसके कई कारण हैं। रमज़ान का महीना शुरू हो चुका है और इसके प्रारंभिक दिनों में इफ़्तार से पहले कोई घर से निकलना नहीं चाहता है। मौसम भी गर्म है। लंबी छुट्टियों के बाद यह दूसरी चौपाल थी और छुट्टियों से लौटे लोगों का मन अभी एकाग्र नही हुआ है। तीसरे ओम प्रकाश सोनी जिन्हें हम प्यार से प्रकाश कहते हैं और जो इस थियेटरवाला की रीढ़ हैं, अपनी नवजात बिटिया और परिवार को लाने भारत गए हैं। एक और कारण भी था सदस्यों की अनुपस्थिति का-- इस सप्ताह शुक्रवार चौपाल से पहले दो आकस्मिक गोष्ठियाँ और हो चुकी थीं। आकस्मिक इस लिए कि इंडियन हाई स्कूल दुबई की कांता भाटिया ने फ़ोन किया कि इंडियन स्कूल और भारतीय दूतावास के सौजन्य से 14 सितंबर को हिंदी दिवस का आयोजन किया जा रहा है। इस अवसर पर उनके थियेटर के लिए एक घंटे का नाटक चाहिए। इंडियन स्कूल दुबई का थियेटर इमारात के सबसे अच्छे थियेटरों में से है। वहाँ प्रस्तुति देना सुखद होता है। सहायक वस्तुओं (प्रॉप्स) का भंडार, प्रकाश और ध्वनि व्यवस्था, मंच के दोनों और बने, खुले खुले ग्रीन रूम, और ग्रीन रूम से बाहर ही बाहर स्कूल की बढ़िया कैंटीन तक जाने का रास्ता इसे दूसरे थियेटरों से अलग करते हैं। प्रेक्षागृह की क्षमता भी अधिक है शायद 1000 के आसपास होगी। हॉल बड़ा हो और पूरा भरा हो तो अभिनेताओं को अभिनय का असली मज़ा मिलता है।

हाँ तो बात नाटक की हो रही थी। हिंदी दिवस पर नाटक खेलना है तो किसी हिंदी साहित्यिक कृति पर ही होना चाहिए। समय कम है वर्ना कोई नया नाटक भी खेला जा सकता था। हमें कौन सा पुराना नाटक खेलना है उसमें कौन-कौन अभिनय कर रहा है। क्या अभिनेताओं में कोई मुस्लिम भी हैं और अगर हैं तो क्या वे रिहर्सल पर आ सकेंगे यह बात निश्चित करने के लिए आकस्मिक गोष्ठियाँ बुलानी पड़ी थीं। नाटक चुन लिया गया है। प्रकाश सोनी जिस भूमिका में अभिनय करते थे उसे कौशिक साहा करेंगे। संवाद के पृष्ठों का आदान प्रदान आदि भी हो गया। बस इसी सबके चलते शुक्रवार चौपाल में इस बार डॉ उपाध्याय को छोड़कर कोई नहीं आ सका। हम हिंदी दिवस पर कौन सा नाटक खेल रहे हैं और नाटक कैसा रहा इसकी सूचना अगले शुक्रवार तक स्थगित रखती हूँ। फोटो इस बार नहीं खिची इसलिए संक्रमण का एक पुराना चित्र प्रस्तुत है। यह चित्र पिछले साल दुबई में समकालीन साहित्य सम्मेलन, के अवसर पर 30 जुलाई 2008 को लिया गया था। यह मंचन बिना प्रकाश और ध्वनि के नुक्कड़ नाटक की तरह खेला गया था। चित्र में बाएँ से डॉ.शैलेष उपाध्याय, सबीहा मज़गाँवकर (बैठे हुए) और ओम प्रकाश सोनी।

शनिवार, 29 अगस्त 2009

२८ अगस्त, बहुत दिनों बाद

बहुत दिनों बाद चौपाल आज फिर लगी। उपस्थित लोगों में थे प्रकाश, डॉ. उपाध्याय, सबीहा, मिलिंद तिखे, प्रवीण जी और मैं। थोड़ी देर बात अश्विनी भी हमारे साथ आ जुड़े। बातचीत का विशेष मुद्दा आने वाली प्रस्तुतियाँ बना रहा। हम 2 अक्तूबर को एक मेगा कार्यक्रम की योजना बना रहे थे। बड़ा थियेटर भी बुक किया था। पर लोगों की अनुपस्थिति, विदेश यात्राएँ और अभी तक इस परियोजना पर काम शुरू न होने के कारण इस बुकिंग को रद्द करने पर सबकी सहमति रही। इस बीच कुछ नई मगर छोटी परियोजनाओं की बात हुई। हालाँकि कुछ निश्चित तौर पर तय नहीं हुआ। सबीहा ने प्रेमचंद की कहानी इस्तीफ़ा का पाठ किया और डॉ. उपाध्याय ने मोहन राकेश की वारिस का। इस बहाने सबने अपने अपने अध्यापकों को भी याद कर लिया। मिलिंद तिखे ने 'अभिव्यक्ति कथा महोत्सव-2008' के सांत्वना पुरस्कारों में से एक प्राप्त किया है- अपनी कहानी - 'एक प्यार का पल हो' के लिए। उनको इसके लिए आज की चौपाल में सम्मानित किया गया। यह तय हुआ कि हम लोग अगली बार चौपाल में इस कहानी का पाठ करेंगे। सदा की तरह चाय हुई। एनडीटीवी के रवीश कुमार ने शुक्रवार चौपाल के विषय में जो रिव्यू हिंदुस्तान में लिखा है उसकी भी चर्चा हुई।

मौसम कुछ बेहतर मालूम होता है लेकिन मंदी के आसार बेहतर होते नज़र नहीं आते। अगर यही हाल रहा तो नाटक के प्रायोजकों को ढूँढना मुश्किल होगा। रोज़ रोज़ ढेरों कर्मचारियों की छँटनी और कंपनियों के बंद होने की खबरें अभी तक बंद नहीं हुई हैं। हिंदी नाटकों को किसी सरकारी या भारतीय सांस्कृतिक संस्था का सहयोग नहीं है। सच पूछा जाय तो यहाँ कोई दमदार भारतीय सांस्कृतिक संस्था है ही नहीं जो हिंदी साहित्य या नाटक को प्रोत्साहित कर सके। शायद इस ओर भी गंभीरता से सोचने की आवश्यकता है। हमारे सदस्य दिलीप परांजपे के घर पर गणपति बप्पा की स्थापना हुई है। सब आरती और विसर्जन की तैयारियों में लगे हैं। अगली चौपाल में गणपति की कुछ रोचक कथाएँ भी सुनेंगे। इस बार उपस्थिति बहुत कम रही थी। आशा है अगली बार काफ़ी लोग मिलेंगे। साथ के चित्र में बाएँ से मिलिंद तिखे, सबीहा मज़गाँवकर, अश्विनी, प्रकाश सोनी, डॉ. शैलेष उपाध्याय और मैं। फोटो प्रवीण जी ने खींचा है। ऊपर के पहले चित्र के समय अश्विनि अनुपस्थित थे।

शनिवार, 22 अगस्त 2009

२१ अगस्त, चौपाल की पूर्वपीठिका


इस सप्ताह प्रकाश का फोन आया है कि वे भारत वापस लौट आए हैं। शुक्रवार को जब वे घर आए तो उनके हाथों में मोतीचूर के लड्डुओं का डिब्बा था, बेटी होने की खुशी में। उनका बेटा मनन चार साल का है बेटी का नाम उन्होंने मन्नत रखा है। प्रवीण जी, प्रकाश और मैं बहुत सी बातें करते रहे। भारतीय तरीके से मिल बैठना और हिंदी में लंबी बातचीत कर पाने का अपना आनंद है। हमने वह आनंद लूटा।

डॉ.उपाध्याय अभी तक भारत से लौटे नहीं हैं,एजाज़ पाकिस्तान में हैं। "जिस लाहौर नहीं वेख्या..." की तैयारी फिर से जारी है। निर्देशन का भार रिज़वी साहब के कंधों पर है। पहलवान की जो भूमिका पिछले अनेक सालों से एजाज़ कर रहे थे उनके अनुपस्थित होने के कारण सुनील कर रहे हैं। यू.एस. से उमेश अग्निहोत्री का ईमेल आया है। वाशिंग्टन के कैनेडी सेंटर में उनके निर्देशन में इस नाटक का सुंदर मंचन किया गया है। इस प्रतिष्ठित थियेटर में खेला जाने वाला यह पहला हिंदी नाटक है। कुछ चित्र भी उमेश जी ने संलग्न किए हैं। सुंदर लगते हैं। उसमें से दो छाँटकर यहाँ लगाती हूँ। लंदन में तेजेन्द्र जी से बात हुई। वे लोग ३ सितंबर को इस नाटक के २० साल पूरे होने के उपलक्ष्य में लंदन के नेहरू सेंटर में एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन कर रहे हैं। जिसके लिए वजाहत साहब लंदन जाने वाले हैं। भारत में सुप्रसिद्ध साहित्यकार कमलेश भट्ट कमल के संपादन में १० सालों में एक बार प्रकाशित होने वाले हिंदी हाइकु के संग्रह में इस बार मध्यपूर्व के दो नए हाइकुकार हैं। बाहरीन की अर्बुदा ओहरी और दुबई की स्वाती भालोटिया। खुशी की बात है कि ये दोनों अभिव्यक्ति और चौपाल का भी हिस्सा भी हैं।

और भी बहुत सी बातें... थोड़ी देर में प्रकाश को सुनील का फ़ोन आया क्या आज चौपाल लग रही है? प्रकाश ने कहा चौपाल तो नहीं लगी है पर हम तीन यहाँ हैं। सुनील पास ही में कहीं थे। वे भी आ बैठे। लंबे दिनों से टूटे चौपाल का क्रम शुरू होने की पूर्वपीठिका तैयार सी हो गई। १९ अगस्त को हिंदुस्तान में एन.डी.टी.वी. के रवीश कुमार का शुक्रवार चौपाल पर एक लेख प्रकाशित हुआ है। मैंने उसकी एक प्रति प्रकाश को दी। प्रिंट कुछ छोटा था। लेख में अनुज का उल्लेख था। प्रकाश बोले कि वे और डॉक्टर साहब इस बार मुंबई में अनुज से मिलकर आए हैं और अनुज बहुत से कामों में व्यस्त हैं। बातों ही बातों में एक बज गया और सबने अपने अपने घर की राह ली। आशा है अगले शुक्रवार चौपाल लगेगी।

रविवार, 2 अगस्त 2009

३१ जुलाई, छुट्टी का दिन


जुलाई-अगस्त के महीने इमारात में गर्मी की छुट्टियों के होते हैं। अधिकतर अभिभावक और शिक्षक इन दिनों छुट्टियाँ मनाने अपने-अपने देश चले जाते हैं। मैं भी अपनी छुट्टियाँ मनाकर आज वापस लौटी हूँ। इस बीच चौपाल के दो दिन निकले। चौपाल की सूचना सदस्यों को ईमेल द्वारा भेजी जाती है। १७ जुलाई की सूचना में बिमान दा की विदाई की बात थी।

बिमान दा शारजाह छोड़कर भारत में बसने की तैयारी में हैं सदस्य चिंता में हैं कि उनकी विदाई समारोह का आयोजन किस प्रकार यादगार बनाया जाए। २४ जुलाई की चौपाल स्थगित हो गई थी। ३१ जुलाई को कोई ईमेल नहीं आई। लगता है प्रकाश और सबीहा सब छुट्टी मनाने चले गए और ईमेल भेजनेवाला भी कोई नहीं बचा। इसलिए चौपाल के इस चिट्ठे पर भी तब तक छुट्टी रहेगी जब तक सब लोग छुट्टियाँ मनाकर वापस लौट नहीं आते।

रविवार, 12 जुलाई 2009

१०- जुलाई, ईदगाह

आज की चौपाल में खजूर में अटका का पाठ होना था। हालांकि भूमिकाओं के निर्णय का अंतिम निर्णय नहीं हुआ है पर जिन लोगों को पहली दृष्टि में इसमें काम करने का निमंत्रण दिया गया था उसमें से सब उपस्थित नहीं थे। इंतज़ार करते हुए पहले प्रकाश सोनी ने प्रेमचंद की कहानी ईदगाह का पाठ किया।

नाटक के निर्देशक डॉ.उपाध्याय भारत गए हुए हैं। उपस्थित लोगों में आज थे- सबीहा, बिमान दा, प्रकाश, मीर, कौशिक, इरफ़ान, मैं और प्रवीण सक्सेना। ईदगाह के बाद चाय हुई और उसके बाद खजूर में अटका का दूसरा भाग पढ़ा गया। आज मुझे कुछ काम था घर पर इसलिए चौपाल खतम होने से कुछ पहले ही उठ गई। आशा है अगली चौपाल में उपस्थिति इससे बेहतर रहेगी।

शनिवार, 4 जुलाई 2009

३ जुलाई, आगे की तैयारियाँ


रज्जो की शादी अच्छी रही। कुछ स्थानीय कलाकारों के साथ मिलकर गुड्डी मारुति को प्रस्तुत करने का प्रतिबिंब का यह प्रयत्न कई मामलों में सफल कहा जा सकता है। शेख राशिद आडिटोरियम, जो यहाँ के जाने माने थियेटरों में से एक है, और लगभग 1000 लोगों के बैठने की क्षमता वाला है, में कोई प्रस्तुति रखना और दर्शकों को जुटा पाना अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है। हालाँकि यह एक प्रायोजित शो था तो प्रायोजकों का हस्तक्षेप सारे नाटक पर छाया रहा। नाटक 40 मिनट देर से शुरू हुआ, 15 मिनट तक प्रायोजकों की फ़िल्म चलती रही और प्रायोजक के भाषण के लिए सूत्रधार का अंतिम दृश्य कट गया जिससे पता ही न चला कि नाटक कब खत्म हुआ। दर्शक दीर्घा की सीढ़ियों पर बच्चों की अच्छी मटरगश्ती रही। फिर भी लोगों ने नाटक का मज़ा उठाया, हंसी के गुबार फूटे और माहौल मज़े का रहा।

3 जुलाई की चौपाल में हम इन्हीं बातों का मज़ा लेते रहे। गर्मी की छुट्टियाँ हैं, अनेक परिवार भारत या पाकिस्तान चले गए हैं सो उपस्थिति कम थी। चौपाल 10:30 पर शुरू हो जाती है पर 11:30 तक प्रकाश, सबीहा, मेरे और प्रवीण जी के सिवा कोई नहीं आया था। हम चारों रज्जो की शादी और पिछले नाटकों की समीक्षा-आलोचना करते रहे। फिर रिज़वी साहब, बिमान दा, इरफ़ान, मीर और अश्विन भी आ गए। बिमान दा ने कहा कि वे अगस्त में हमेशा के लिए भारत जा रहे हैं। सब उदास से थे। सबको आशा है कि मंदी का दौर खतम होते ही 2-4 महीनों में वे वापस लौटेंगे। बातों बातों में समय कब निकल गया पता नहीं चला। मौसम गर्म हो चला है। कोई चाय पीने के मूड में नहीं था। आज चौपाल भी लंबी नहीं चली। 12:30 बजे सब अपने-अपने घर को रवाना हो लिए।

हाँ आगे की तैयारियों में थियेटरवाला की ओर से किए जाने वाले 'खजूर में अटका' के लिए एमिरेट्स स्कूल के थियेटर में बुकिंग मिली है 2 अक्तूबर की। और रिजवी साहब प्रतिबिंब की ओर से मनोज बाजपेयी को लेकर अगस्त के दूसरे सप्ताह में 'भगतसिंह की वापसी' के मंचन की तैयारियों में लग गए हैं।

रविवार, 28 जून 2009

२६ जून, ऋतु गर्मी की आई!


पिछले प्रदर्शन के बाद थियेटरवाला द्वारा खजूर में अटका की तैयारियाँ शुरू हो गई हैं। दूसरी और प्रतिबिंब का नाटक रज्जो की शादी अंतिम दौर में है। इसका प्रदर्शन २ जुलाई को होना तय हुआ है। आज चौपाल में विशेष कार्यक्रम खजूर में अटका की रीडिंग का था। प्रकाश सोनी, कौशिक साहा, डॉ. उपाध्याय और अली भाई सबसे पहले पहुँचे। धीरे धीरे कल्याण, मेनका, सबीहा, संग्राम और नेहा भी पहुँच गए।

गर्मी का मौसम शुरू होने लगा है और एक माह बाद रमज़ान भी शुरू हो जाएँगे। इस दौरान प्रदर्शन बहुत ही कम होते हैं या लगभग नहीं होते। रमज़ान में तो प्रदर्शन बिलकुल ही बंद रहते हैं। रिहर्सल भी आमतौर पर नहीं होते हैं, स्कूलों में गर्मी की छुट्टियों के कारण बहुत से लोग छुट्टी पर भारत या दूसरे देशों को चले जाते हैं। चौपाल में उपस्थिति कम हो जाती है। ए.सी. की सर्दी के बावजूद चाय पीने का मन बहुत कम लोगों का होता है। इसलिए चाय कुछ कम ही बनाई थी पर कम पड़ गई। कल्याण को चाय काफ़ी पसंद है पर आज उन्हें ही सब्र करना पड़ा।

अगले माह शायद खजूर में अटका की भूमिकाओं को निर्धारित कर दिया जाएगा। रज्जो... का रिहर्सल जारी है और उसका विशेष आकर्षण यह है कि इसमें मुख्य भूमिका फ़िल्म और टीवी कलाकार गुड्डी मारुति निभा रही हैं। आज ऊपर के चित्र में कल्याण और डॉ, साहब की फ़ोटो नहीं है। दाहिनी ओर के चित्र में रज्जो की शादी के कलाकार बाएँ से आदिल, मोहन जी, रिज़वी साहब, गुड्डी मारुति, मुस्तफ़ा और फ़ीरोज़।

शनिवार, 20 जून 2009

२० जून, बीते कल की समीक्षा आने वाले कल की तैयारी


इन टु आर्ट्स के सहयोग से थियेटरवाला की प्रस्तुति हम तुम और गैंडा फूल का प्रदर्शन संतोषजनक रहा। दर्शकों की उपस्थिति भी अच्छी रही पर संतोष और अच्छाई की कोई सीमा नहीं है। बेहतर से भी बेहतर जाना है तो किए गए काम की निरंतर समीक्षा ज़रूरी है। आज ज्यादातर बातें इसी विषय में हुईं कि जो कुछ हुआ उसे कैसे बेहतर किया जा सकता था। आने वाले दिनों में खजूर में अटका की तैयारी चल रही है और उसके पहले रिज़वी साहब प्रतिबिंब के बैनर तले रज्जो की शादी कर रहे हैं। ये दोनों ही नाटक हास्य व्यंग्य से भरपूर कामदी हैं।

आज की चौपाल का प्रारंभ हम तुम और गैंडा फूल की समीक्षा से हुआ। इसके बाद खजूर में अटका के कुछ दृश्य पढ़े गए। चाय के बाद प्रतिबिम्ब के बैनर के तले होने वाले नए नाटक रज्जो की शादी का रिहर्सल हुआ।

आज उपस्थिल लोगों में थे- डॉ. शैलेष उपाध्याय, प्रकाश सोनी, कौशिक साहा, मेनका, कविता, अश्विन, कल्याण, रिज़वी साहब, सबीहा और मुस्तफ़ा। कुछ नए मेहमान भी थे- नया आमिर, आदिल, फिरोज, मोहन जी और सपना। रिहर्सल एक डेढ़ बजे तक चला। जो लोग नाटक में नहीं थे वे समय से उठकर चले गए।

शनिवार, 13 जून 2009

१२ जून, कम उपस्थिति ज्यादा बातें।


यह सप्ताह हम तुम और गैंडा फूल के प्रदर्शन का है। अधिकतर रिहर्सल दुबई में ही चल रहे हैं। क्यों कि कलाकार दुबई के हैं। कुछ लोग भारत गए हैं या अन्य किसी देश। इस सबके चलते इस बार चौपाल में उपस्थित कम रही। बहुत से विषयों पर चर्चा हुई जिसमें सबसे पहले हबीब तनवीर तथा सड़क दुर्घटना में दिवंगत ओमप्रकाश आदित्य, नीरज पुरी और लाडसिंह गुर्जर के श्रद्धांजलि दी गई। फ़िल्म सीरियलो, नाटकों तथा फिल्मों की आधुनिक शैली व उनके बदलते रूप पर बातचीत हुई। पुराना मंच बनाम नया मंच पर लंबी बहस भी हुई।

कार्यक्रम के अनुसार आज चरणदास चोर का पाठ होना था पर किसी का वैसा मूड बना नहीं। आज उपस्थित लोगों में थे- प्रकाश, दिलीप परांजपे, मेनका, कौशिक, मैं और प्रवीण सक्सेना। एक नए मेहमान भी थे मुस्तफ़ा। कौशिक देर से आए थे। वे हम तुम की प्रकाश व्यवस्था और संगीत को लेकर प्रकाश से बात करते रहे। चौपाल थोड़ा देर से शुरू हुई थी। १ बजे खतम हुई। लंदन से तेजेन्द्र शर्मा और ज़किया ज़ुबैरी ने थियेटर वाला के लिए कुछ धनराशि भेजी थी वह आज उन्हें दे दी गई। इसका उपयोग अगले प्रदर्शन में हो सकेगा।

शनिवार, 6 जून 2009

५ जून, नई समस्याएँ नए दोस्त

यह सप्ताह कुछ विशेष समस्याओं के सुलझाने का था। जिस थियेटर में हम लगातार बुकिंग कर रहे हैं उसका प्रबंधन बदल गया है और अब चूँकि टेक्निकल स्टाफ़ का समय सुबह १० से ५ बजे तक का ही है, शाम को शो करने के हमें तकनीकी सहयोग के ओवर टाइम के पैसे अपने पास से देने होंगे। ओवर टाइम का मूल्य उतना ही है जितना एक दिन की थियेटर बुकिंग का। कुल मिलाकर यह कि शाम को शो करने के लिए अब हमें दुगना खर्च करना होगा। इस सबसे निबटने के सबने मिलकर दो तरीके खोजे हैं। ११ वाले शो की तारीख बढ़ाकर धनस्रोतों को बेहतर किया जाय और आगे की प्रस्तुतियों के लिए निमंत्रण-पत्र बंद कर दिए जाएँ। कुछ और भी विचार हैं। पर फिलहाल दो नाटक तैयार हैं 'हम तुम' और 'गेंदा फूल' (या गेंडाफ़ूल)। इन्हें अब ११ जून के स्थान पर १८ जून को मंचित होना है। आशा है तबतक सारी व्यवस्था हो जाएगी। पोस्टर तैयार हैं निमंत्रण पत्र का डिज़ाइन भी बन गया है। अच्छा है छपकर नहीं आ गया तिथि को बदलना जो है।

आज की चौपाल में कम लोग थे- रागिनी, मेनका, शांति, प्रकाश और कौशिक। दो नए लोग पहली बार आए थे। मनोज पाटिल और उनकी पत्नी बिंदु पाटिल। दोनों मराठी नाटकों के क्षेत्र में सक्रिय और अनुभवी हैं। ये ऐसे दंपत्ति हैं जो पति-पत्नी दोनों ही नाटकों के क्षेत्र में हैं। ऐसा काफ़ी कम देखने में आता है। चौपाल के कार्यक्रम का प्रारंभ अशोक चक्रधर के व्यंग्य जय हो की जयजयकार से शुरू हुआ जिसे कौशिक साहा ने पढ़ा, इसके बाद अनूप शुक्ला का व्यंग्य 'होना चियरबालाओं का' को प्रकाश सोनी ने पढ़ा। फिर खजूर में अटका का पहला अंक मिलजुलकर पढ़ा गया। शायद इसका मंचन सितंबर में होगा। प्रवीण जी का कैमरा आज जवाब दे गया इसलिए इस बार की कोई फ़ोटो नहीं हो पाई। इस बार चित्र के स्थान पर प्रस्तुत हैं 'हम तुम' और 'गेंदा फूल' के पोस्टर।

शनिवार, 30 मई 2009

२९ मई, दूसरा जन्मदिन


आज विशेष अवसर था चौपाल की दूसरी वर्षगाँठ का। इस उपलक्ष्य में फ़िल्म शो, आशु-अभिनय और रात्रिभोज की तैयारियाँ की गई थीं। साल भर बाद इतने लोग एक साथ मिलते हैं। लगभग ३० लोग इस बार एकत्रित हुए। साहित्य और रंगकर्मियों के परिवार भी साथ थे। सबके मन में खुशी और उत्साह था।

विशेष आकर्षण यह था कि नाटकों में जिसने जो रोल निभाए थे वे उसी परिधान और अभिनय में रहने वाले थे। शाम ७ बजे तक लॉन सज चुका था। छोटे बल्ब टिमटिमाने लगे थे और संगीत शुरू हो गया था। अंधेरा होते ही मेहमान भी आने लगे। सक्खूबाई, हवलदार, मैट्रीशिया, कोर्टमार्शल के अभिनेता सब अपने अपने रंग में... जिन लोगों ने पूरी पार्टी में अपनी रौनक बनाए रखी उसमें मूफ़ी का हवलदार और मेनका की सुक्खूबाई सबका दिल जीत कर ले गए। कोल्ड ड्रिंक और कवाब मज़ेदार रहे। खाना स्वादिष्ट था।

खाने से पहले फिल्मों के सत्र में सुनील की कुछ नायाब विज्ञापन, कुछ पुरस्कारप्राप्त छोटी फ़िल्में और कुछ अन्य छोटी रोचक फ़िल्मों को देखने का कार्यक्रम था। एक घंटे लंबे इस कार्यक्रम में सुनील के संग्रह से निकाली गई ये फ़िल्में काफ़ी पसंद की गईं। विशेष रूप से इलाना याहव की रेत कला पर आधारित फ़िल्म और छोटी फ़िल्म लिटिल टेररिस्ट। इसके बाद रात्रिभोज का कार्यक्रम हुआ और अंत में अभिनय प्रदर्शन। रागिनी का मैट्रीशिया, मेनका का सुक्खूबाई और मूफ़ी के हवलदार के एकल प्रदर्शन के बाद प्रकाश, कौशिक और कल्याण ने तुरंत दी गई एक स्थिति पर आशु-अभिनय प्रस्तुत किया। आशु-अभिनय अर्थात दृश्य, संवाद और अभिनय जिनके विषय में पहले से कलाकारों को कुछ नहीं मालूम था। उसी समय विषय दिया गया जिस पर तुरंत संवाद और अभिनय बिना किसी रहर्सल के तुरंत ५ मिनट के अंदर प्रस्तुत करना था। अभिनय के लिए पुरस्कारों की व्यवस्था भी की गई थी। निर्णायकों ने सर्व सम्मति से मेनका और कल्याण को पुरस्कार के योग्य समझा। बाद में केक काटा गया और इस तरह चौपाल की वर्षगाँठ को सबने मिलजुलकर यादगार बनाया।

रविवार, 24 मई 2009

२२ मई, दो साल पूरे होने के उपलक्ष्य में


आज का दिन कार्यशाला का दिन था। यानी सबको मिलकर कुछ रंगमंच पाठों को पढ़ना सीखना और दोहराना था। पाठ-अभिनय के, आवाज़ के और चेष्टाओं के। आज उपस्थिति कम रही, इसलिए कार्यशाला का विचार त्याग दिया गया। इस सप्ताह २५ मई को चौपाल के २ साल पूरे हो रहे हैं। पिछले साल एक साल पूरे होने पर हमने पहला मंच प्रदर्शन किया था। इस बार हम क्या करेंगे? सारी बात इसी पर केंद्रित रही।

अंत में तय यह हुआ कि अगले शुक्रवार चौपाल नहीं लगेगी। इसके स्थान पर शाम को एक पार्टी का आयोजन किया गया है जिसमें सारे अभिनेता /अभिनेत्री अपने अपने किसी चरित्र की वेशभूषा में पधारेंगे और उसी में रहने का प्रयत्न करेंगे। रात्रि भोज तो होगा पर शाम साढ़े सात से साढ़े दस तक के लंबे समय में लोग नाटक के चरित्र में कितनी देर रह पाते हैं यह देखना रोचक रहेगा। फोटो में बाएँ से- मेनका, सबीहा, रागिनी, कल्याण, प्रकाश, कौशिक, दिलीप परांजपे,सुनील, अश्विन और मैं।

शनिवार, 16 मई 2009

१५ मई, बार-बार दिन ये आए


१५ मई को तीन रचनाओं का पाठ होना था। निर्मल वर्मा की कहानी "डेढ़ इंच ऊपर" और अंतोन चेखव के दो एकांकी "द बियर" और "द गुड डॉक्टर" के हिन्दी रूपांतर का। किसी कारण से चेखव के नाटकों का हिंदी रूपांतर नहीं हो सका था। डॉ. उपाध्याय ने डेढ़ इंच ऊपर का भाव पाठ किया। चेखव के एक नाटक का पाठ कविता, कल्याण और अश्विनी ने किया।

आज बहुत से लोग आए थे। संजय और अर्चना पहली बार आए। संजय शारजाह में पिछले एक साल से हैं जबकि अर्चना को आए अभी ३ महीने ही हुए हैं। बहुत दिनों बाद अली भाई आए थे। एक और सदस्य बहुत दिनों बाद आया। अन्य लोगों में रागिनी, रिज़वी साहब, प्रकाश, कौशिक, मूफ़ी, सबीहा और शांति थे। आज डॉ साहब का जन्मदिन था। वे कुछ मिठाइयों के साथ आए थे- पारंपरिक तरबूज और सेब वाली मिठाइयाँ साथ में मार्स के विलायती चॉकलेट। कौशिक केक लाए थे। फिर क्या था, केक कटा और गाया गया बार बार दिन ये आए... चाय तो थी ही।

रागिनी और दिलीप परांजपे २८ मई को "घर की मुर्गी" प्रस्तुत कर रहे हैं। २६ और २७ को एक बंगाली और एक मराठी नाटक होंगे। सबने अपने अपने नाटकों की घोषणा की। थियेटरवाला की अगली बुकिंग ११ जून की है। उसके लिए हम-तुम नामक एक घंटे का नाटक तो तैयार है पर दूसरे के निश्चय अभी तक नहीं हो सका है शायद अगली गोष्ठी तक हो जाए। चित्र में जन्मदिन का हुल्लड़ :-) मचाते कविता, डॉ. साहब, अश्विन, रागिनी और अली भाई।

रविवार, 10 मई 2009

८ मई, छुट्टी का दिन

७ मई को बड़े भाई साहब और दस्तक का प्रदर्शन था। जिस दिन कोई प्रदर्शन होता है उसके अगले दिन छुट्टी रहती है। यानि शुक्रवार चौपाल नहीं लगती। इस हिसाब से शुक्रवार ८ मई, छुट्टी का दिन था। छुट्टी के बावजूद लोग खुश नहीं थे। सबका मन उदास उदास। कारण था कि पिछले दो सालों से जिस चीज़ का कभी अनुभव नहीं हुआ उसे आज झेला था। प्रदर्शन अच्छा हुआ था। दर्शकों से बात हुई। सबने प्रशंसा के शब्द कहे लेकिन दर्शकों की उपस्थिति कम थी हॉल पूरा भरा नहीं। दुबई में एक बॉलीवुड सितारे के नाटक के कारण ज्यादातर भीड़ वहीं थी। ३०० दर्शकों को क्षमता वाले इस हॉल में १०० लोग भी नहीं आए थे। यह दिन भी एक न एक दिन देखना तो था। हम पैसे बचाने के लिए साल भर की तारीखें एक साथ बुक करते हैं और इस बीच अगर कोई बड़ा कार्यक्रम उसी दिन आ पड़ा तो उसका नुक्सान तो हमें ही उठाना पड़ेगा। बाद में तारीख बदलना संभव नहीं होता है। खैर खुशी की बात यह थी कि प्रदर्शन अच्छा रहा। अगले शुक्रवार फिर मिलना है और एक और नाटक का मंचन होना है। इस प्रकार के अनुभव सुखद तो नहीं होते पर जीवन का पाठ ज़रूर पढ़ाते हैं। शारजाह में हिंदी नाटकों का परिदृश्य नया नया ही है। इसकी कोई पृष्ठभूमि नहीं है नियमित नाटकों के मंचन से हम यहाँ दर्शकों को निर्माण करें और एक हिंदी नाटकों की एक स्वस्थ परंपरा स्थापित करें यही लक्ष्य है और इस दिशा में हमारा प्रयत्न सदा बना रहे ईश्वर से यही प्रार्थना है। इस प्रदर्शन के फ़ोटो अभी नहीं आए हैं आते ही प्रदर्शित करेंगे। प्रकाश ने सबको धन्यावाद संदेश भेजे फिलहाल वही संदेश ब्लॉग के पाठकों लिए यहाँ प्रस्तुत है।

शनिवार, 2 मई 2009

१ मई, तैयारियाँ-तैयारियाँ

दस्तक और बड़े भाई साहब की तैयारी पूरी हो चुकी है। पोस्टर और निमंत्रण पत्र छप कर आ गए हैं। यह प्रस्तुति ७ मई को होनी है। प्रस्तुति के पहले की बहुत सी बातें आज की चौपाल का हिस्सा बनीं। पोस्टर की एक प्रति हमारे पाठकों के लिए प्रस्तुत है। प्रवेश पत्र पाने की विस्तृत जानकारी इन पोस्टरों में है। बड़े भाई साहब कथा सम्राट प्रेमचंद की कालजयी रचना है। छोटे भाई द्वारा कही गई दो भाईयों की इस कहानी में दोनों भाइयों की मनोरंजक तुलना है जिसमें स्नेह, आदर्श, विरोधाभास और संवेदना के ढेरों रंग है। दो भाइयों के दैनिक जीवन से जुड़ी इस कहानी में परंपरा और आधुनिकता का टकराव के साथ वर्तमान शिक्षा प्रणाली पर करारा व्यंग्य भी देखने को मिलता है। हास्य और व्यंग्य से भरपूर यह नाटक बच्चों पर पढ़ाई के दबाव और उसके मनोविज्ञान को भी रोचकता से बयान करता है।

दस्तक के विषय थोड़ी जानकारी पहली प्रस्तुति के समय यहाँ दी जा चुकी है। ज्यादा जानकारी तो नाटक देखकर ही मिल सकेगी। आज काफ़ी लोग उपस्थित थे। हालाँकि मीर के न आने से बड़े भाई साहब का रिहर्सल नहीं हो सका। इस नाटक में दो ही लोग हैं। कभी भी रिहर्सल हो सकता है तो परेशानी की विशेष कोई बात नहीं वैसे भी रिहर्सल तो आजकल रोज़ चल रहे हैं। आज हमारे बीच रंगमंच से स्नेह रखने वाला एक नया चेहरा था प्रिया का। इसके अतिरिक्त प्रकाश, कौशिक, डॉ.उपाध्याय, मूफ़ी, अश्विनि, रागिनी, सबीहा, संग्राम, मेनका और ज़ुल्फ़ी उपस्थित थे। हाँ एक और चेहरा भी था जिसका नाम पूछना फिर रह गया... ख़ैर फिर कभी। आज दस्तक के रिहर्सल के बाद निर्मल वर्मा की कहानी वीकएंड का पाठ हुआ। यह कहानी तीन एकांत का हिस्सा है। निर्मल वर्मा की तीन कहानियों ‘धूप का एक टुकड़ा’, ‘डेढ़ इंच ऊपर’ और ‘वीकएंड’ की मंच-प्रस्तुति देवेंद्र राज के निर्देशन में तीन एकांत शीर्षक से की गई थी। शायद तीन एकांत जैसा कुछ थियेटरवाला की आगामी किसी प्रस्तुति में देखने को मिले।

शनिवार, 25 अप्रैल 2009

२४ अप्रैल, धूप का टुकड़ा

आज की चौपाल में अगली प्रस्तुति दस्तक का रिहर्सल और निर्मल वर्मा की कहानी "धूप का एक टुकड़ा" का पाठ होना था। चौपाल के कुछ सदस्य दुबई में थियेट्रिक्स द्वारा प्रस्तुत 'द वुड बी जेंटेलमैन' के साथ व्यस्त हैं और कुछ ट्रैकिंग के एक कार्यक्रम में। इस कारण उपस्थिति कम सी थी। थियेटरवाला के अगले प्रदर्शन के लिए ७ मई को थियेटर मिला है। इसलिए विशेष महत्व दस्तक के रिहर्सल का था। प्रकाश, डॉ.उपाध्याय और दारा समय से आ गए थे। कौशिक के आते ही रिहर्सल शुरू हो गया। रिहर्सल बड़े भाई साहब का भी होना था पर मीर और जुल्फी दोनों ही किसी कारण नहीं आ सके।

कुछ देर बार मेनका और क्रिस्टोफ़र साहब आ गए। रिहर्सल के बाद निर्मल वर्मा की कहानी को पढ़ा क्रिस्टोफ़र साहब ने। सबने इस कहानी के मंचन के विषय में विचार विमर्श किया। संगीत और प्रकाश के मामले, मंच की डिज़ायनिंग... मंचन की तिथि निश्चित नहीं है पर तैयारियाँ तो बहुत पहले से शुरू हो जाती हैं। क्रिस्टोफ़र साहब और मेनका बाद में आए थे तो इस बार फोटो में उनके चेहरे नहीं आ पाए। डॉ. उपाध्याय किसी विशेष कार्य से जल्दी चले गए। बाकी लोग देर तक पुरानी और नई प्रस्तुतियों के बारे में विस्तृत चर्चा करते रहे। (चित्र में- संवादों का अभ्यास करते प्रकाश और कौशिक मैं डॉ. साहब और दारा सुनते हुए।)

शुक्रवार, 17 अप्रैल 2009

१८ अप्रैल, मीडिया में थियेटरवाला

एक्सप्रेस गल्फ़ न्यूज़ का नया टैबलॉयड है, जो शहर की सांस्कृतिक गतिविधियों की सूचना और समीक्षा देता है, आज इसमें थियेटरवाला छाया रहा (चित्र में दाहिनी ओर)। अखबार के वेब संस्करण में इसकी उपस्थित रही(यहाँ देखें)। सबसे पहले सबीहा आईं इसकी एक कॉपी लेकर, जब हमने इसको शुक्रवार चौपाल के लिए स्कैन किया। बाद में डॉ.उपाध्याय भी एक प्रति लाए। बहुत से लोगों ने इसे सुबह ही देख लिया था, फिर से देखा और एक दूसरे की तस्वीरों पर मज़ेदार कमेंट्स किये।

आज के कार्यक्रम में सबसे पहले दस्तक का रिहर्सल होना था। एक घंटे के इस नाटक का शारजाह में मंचन होना है। इसी के साथ बड़े भाई साहब को भी प्रस्तुत करने की योजना है। ये दोनों नाटक पहले दुबई में खेले जा चुके हैं। रिहर्सल शुरू हुआ और लगभग एक घंटे बाद दुबई मेल आ गई। दुबई से आज विशेष अतिथि थे क्रिस्टोफ़र साहब जो इमारात की जाने-माने रंगकर्मी है। इसके बाद के पी सक्सेना का छोटा नाटक पढ़ा गया- खिलजी का दांत। आज उपस्थित लोगों में थे- प्रकाश सोनी, कौशिक साहा, डॉ. शैलेष उपाध्याय, सबीहा मजगांवकर, शांति, दोनों भाई मीर और इरफ़ान, क्रिस्टोफ़र साहब, अश्विनी, जुल्फ़ी शेख और प्रवीण सक्सेना।

शनिवार, 11 अप्रैल 2009

१० अप्रैल, नाटकों का पोस्टमॉर्टम

९ अप्रैल की शाम मिलिंद तिखे की शाम रही। पहला नाटक राई का पहाड़ उनका लिखा हुआ था तो दूसरा पोस्टमॉर्टम उनके द्वारा मराठी से हिन्दी में रूपांतरित। दोनों कामदी नाटक दर्शकों को गुदगुदाने में सफल रहे। पहले नाटक में जहाँ टी वी चैनलों द्वारा समाचारों को नाटकीय ढंग से प्रस्तुत करने पर व्यंग्य था वहीं दूसरे एकांकी में रंगमंच के पीछे होने वाली भूलों को मनोरंजक ढंग से प्रस्तुत किया गया था। मिलिंद तिखे पिछले कई दशकों से इमारात में हैं और लगभग नियमित रूप से चुपचाप लिखते रहे हैं।


राई का पहाड़ का निर्देशन महबूब हसन रिज़वी ने किया था और पोस्टमॉर्टम का श्रीकांत रेले ने। यहाँ प्रस्तुत हैं राई का पहाड़ के कुछ चित्र- ज़ुल्फ़ी शेख के कैमरे से। १० भूमिकाओं वाले इस नाटक में मंच पर टीवी समाचार वाचक की भूमिका मीर इमरान हुसैन और सरयू गजधर ने, निर्देशक की ऐज़ाज चौधरी ने, लेखक की एहाज़खान ने, हवलदार की ज़ुल्फ़ी शेख ने, रिपोर्टर की मुफ़द्दल बूटवाला ने, ज्योतिष गुरु की सबीहा मजगावकर ने और रेनू की शांति ने निभाई थी।


आज १० अप्रैल यानी नाटकों के एक दिन बाद जमी चौपाल में हमेशा की तरह कुछ समय नाटकों की प्रस्तुति के बाद प्रस्तुति का पोस्टमॉर्टम करने में गया। इसके बाद कुछ प्रसिद्ध और कुछ समसामयिक रचनाओं का पाठ हुआ। मुंशी प्रेमचंद की कहानी शतरंज के खिलाड़ी को पढ़ा डॉ. शैलेष उपाध्याय ने। मनोहर पुरी के व्यंग्य गर्म है जूतों का बाज़ार को पढ़ा जुल्फ़ी शेख ने और कृष्ण कल्पित की एक शराबी की सूक्तियाँ को पढ़ा प्रकाश सोनी ने।


एक दिन पहले सब देर रात घर गए थे। लगा था कि इस शुक्रवार उपस्थिति कम रहेगी पर काफ़ी लोग आ गए। सबीहा, मेनका, डॉ.उपाध्याय, प्रकाश सोनी, कौशिक साहा, जुल्फी शेख, मिलिन्द तिखे, मूफ़ी, रिज़वी साहब और अश्विन के साथ शुक्रवार की सुबह मज़ेदार रही। चित्र में सब लोग नहीं दिख रहे हैं पर अब तो ब्लॉग पढ़ने वाले सबको नामों से पहचानते ही हैं। अरे हाँ... नाटक के चित्र अभी तक नहीं आए। जैसे ही आते हैं यहाँ लगाने की कोशिश करेंगे। (गोष्ठी का चित्र हट चुका है और उसकी जगह नाटक के चित्र लग गए हैं। शायद कुछ और बेहतर चित्र आने वाले हैं। तब तक ये सबका मनोरंजन करेंगे।)

शनिवार, 4 अप्रैल 2009

३ अप्रैल, नरगिस और चीलें


९ अप्रैल को रिज़वी साहब मिलिंद तिखे का नाटक राई का पहाड़ करने वाले हैं। इसके साथ ही होगा श्रीकांत रेले का पोस्टमॉर्टम... यह तो हुआ इस माह का कार्यक्रम पर आज का कार्यक्रम था 'कम्बख़्त साठे का क्या करें' का पाठ। नाटक में दो ही पात्र हैं जिसे कल्याण और कविता पढ़ने वाले थे पर ११ बजे तक दोनों में से कोई पहुँचा नहीं था। इसलिए सबने निश्चय किया कि समय का सदुपयोग करते हुए सरला अग्रवाल की कहानी नरगिस और भीष्म साहनी की कहानी चीलें का पाठ पहले कर लिया जाए। दोनों कहानियाँ लंबी थीं। नरगिस को अश्विनी, सबीहा और सुनील ने पढ़ा और चीलें को प्रकाश और मिलिन्द जी ने। कुछ बात राई के पहाड़ के रिहर्सलों की हुई। कुछ पुराने कार्यक्रमों की। इस बीच दुबई वाले आ गए कविता किसी कारण से नहीं आ सकी तो साठे रह ही गया। आगे के कार्यक्रमों में शायद शारजाह में 'दस्तक' जल्दी ही दोहराया जाए। इसके बाद 'कम्बख़्त साठे का क्या करें' की बारी होगी। सुनील शायद 'सुल्तान' करने का मन बना रहा है। सबकुछ निश्चित सा नहीं है। चाय पीने के बाद सब घर की ओर निकल पड़े। अरे... अरे... फ़ोटो तो इस बार रह ही गए। प्रवीन जी जल्दी से अंदर गए और कैमरा लेकर आए। सब लोग अंदर आए और एक समूह चित्र ले लिया गया। देखें तो आज कौन कौन उपस्थित है।

शुक्रवार, 27 मार्च 2009

२७ मार्च, विश्व रंगमंच दिवस


२७ मार्च, एक विशेष दिन, विश्व रंगमंच दिवस को विशेष ढंग से मनाने हम जुड़े इस शुक्रवार। भारत से दो विशेष अतिथि कवियों श्रीमती निर्मला जोशी और श्री यतीन्द्र राही को लेकर पधारे आबू धाबी से कृष्ण बिहारी। गोष्ठी के प्रारंभ में प्रकाश सोनी ने विश्व रंगमंच दिवस और विश्व रंगमंच दिवस के संदेशों के विषय में जानकारी दी। साथ ही कुछ विश्व रंगमंच दिवस के संदेशों को पढ़कर सुनाया भी। 2009 का संदेश ऑगस्टो बोल का था जिसे सबीहा ने पढ़ा। 2007 का संदेश महा महिम शेख डॉ. सुल्तान बिन मुहम्मद अल कासिमी का था जिसे मिलिन्द तिखे ने पढ़ा। 2002 का संदेश गिरीश कर्नाड का था जिसे मेनका ने पढ़ा। सब संदेशों का सार यह कि रंगमंच हमें सुसंस्कृत बनाता है, यह हमारी संस्कृति की पहचान है, हमारी अभिव्यक्ति का सबसे परिष्कृत रूप है और हमारे मन को प्रफुल्लता से भर देता है। चित्र में आज के अतिथि बाएँ से निर्मला जोशी, कृष्ण बिहारी, संदीप कुमार पांडेय और यतीन्द्र राही।


डॉ.शैलेष उपाध्याय ने शरद जोशी का एक व्यंग्य पढ़ा, ऐजाज़ ने कुछ रचनाएँ प्रस्तुत कीं। कुछ नवगीत मैंने सुनाए, कृष्ण बिहारी ने अपनी कहानी सुनाई, निर्मला जी और राही जी के गीत मुक्तक और कविताएँ हुईं। कुल मिलाकर दिन कवितामय रहा। चाय हुई और बहुत सी बातचीत भी। चित्र में बाएँ से- महबूब हसन रिज़वी, मीर, शांति, मिलिन्द तिखे, ऐजाज़ और मिन्हास। जो लोग चित्र में दिखाई नहीं दे रहे हैं उनमें मेरे अतिरक्त थे- डॉ. शैलेष उपाध्याय, उमेश, दारा, मेनका, प्रकाश, सबीहा, ज़ुल्फ़ी और खुर्शीद आलम। आगामी प्रस्तुतियों के विषय में कोई बात करने का समय नहीं रहा। तो वह सब ... अगली बार...

शनिवार, 21 मार्च 2009

२० मार्च, एक घोड़ा दो सवार

राई का पहाड़ जोर-शोर से तैयारी पर है। लेकिन मई में कौन सा नाटक खेला जाना है इसका निश्चय अभी तक नहीं हुआ है... आज की चौपाल विशेषरूप से यही तय करने के लिए थी। उसके बाद एक घोड़ा तीन सवार पढ़ा जाना था और उसके बाद राई का पहाड़ का रिहर्सल होना था। गोष्ठी का समय 10:30 का था। 10:40 तक प्रकाश, कौशिक, सबीहा, मैं, दारा, उमेश पहुँच चुके थे। थोड़ी देर में अली भाई भी आ गए। बिमान दा का इंतज़ार था पर उनका फ़ोन बज नहीं रहा था। बाद में पता चला उन्होंने नया फ़ोन लिया है। पाँच मिनट के अंदर मेनका, मिन्हास, मूफ़ी और रिज़वी साहब भी आ गए। ये लोग बैठे ही थे कि बिमान दा भी आ पहुँचे। बस शुरू हो गई चौपाल...

तो मई में हम क्या करने जा रहे हैं? हमारे पास फ़िलहाल दो स्क्रिप्ट्स ही हैं। 'एक घोड़ा तीन सवार' और 'खजूर में अटका'। यों तो 'साठे का क्या करें' किया जा सकता है और 'दस्तक' तो तैयार भी हैं। इनमें से कोई त्रासदी नहीं लेकिन ये गंभीर किस्म के नाटक हैं। स्पांसर को कामदी यानी कॉमेडी चाहिए। स्पांसर नहीं तो नाटक कैसे होगा? लेकिन कॉमेडी तो सभी करते हैं फिर हममें खास क्या है? चाहे 'बड़े भाई साहब' हो या 'बल्लभपुर की रूपकथा', 'संक्रमण' या 'दस्तक' या 'चौदह' या 'जलूस' हमने ऐसे नाटक किए है जो या साहित्य की चुनी हुई कृतियों पर आधारित हैं या उनमें कुछ ख़ास है। लेकिन कुछ खास करने के लिए पैसों की दिक्कत हमेशा बनी रहती है। फ़िलहाल तो हमें 'खजूर से अटका' और 'एक घोड़ा तीन सवार' में से ही एक का चयन करना होगा। और वह भी आज क्यों कि थियेटर की बुकिंग 28 मई की है। हमें कम से कम 40 रिहर्सल तो चाहिए ही चाहिए। 'खजूर से अटका' प्रकाश पहले कर चुके हैं तो उनके दिमाग में सबकुछ साफ़ सा है, लेकिन एक बड़ी समस्या है- इसके लिए विशेष सेट चाहिए। सेट की कीमत? अंदाज लगाया गया... लगभग दो ढाई हज़ार दिरहम से कम नहीं बैठेगी। फिर?

यह विचार विमर्श चल ही रहा था कि दुबई मेल आ गई। दुबई के लोग यानी रागिनी, शांति, अश्विन, मीर। साथ में रागिनी की छोटी बिटिया। अनेक बातों के बीच नाम पूछने का समय ही नहीं रहता। पिछली एक बार शान और नीरू का बेटा भी आया था वह भी बाहर लॉन पर अकेला खेलता रहा। लगता है कि दो चार बच्चे हमेशा आएँ तो सबको दोस्त मिल जाएँगे, पर आजकल तो बच्चे भी कितने व्यस्त से रहते हैं। हाँ एक नया चेहरा भी था- शेख।

राई का पहाड़ में मेनका, सबीहा, मूफ़ी, ज़ुल्फ़ी, मीर... पूरी टीम ठीक से याद नहीं आ रही। अगली बार सबके नाम सही सही याद कर के लिखूँगी, पात्रों के नाम भी और कलाकारों के नाम भी। फोटो दुबई मेल के आने से पहले खीचे गए थे सो दुबई के सब लोग रह गए। ऊपर के चित्र में बाएँ से शेख, रिज़वी साहब, मिन्हास बिमान दा, अली भाई, मूफ़ी, उमेश और दारा। नीचे के चित्र में बाएँ से दारा, मेनका, मैं, सबीहा, कौशिक, प्रकाश। फोटो प्रवीण जी की मेहरबानी से। तो...28 मई यानी एक घोड़ा दो में से किस सवार को मिला? 'खजूर से अटका' को या 'एक घोड़ा तीन सवार को'? यह मुझे पता नहीं चल सका क्यों कि किसी के यहाँ ज़रूरी जाना था और गोष्ठी के बीच से उठना पड़ा। खैर, अगली बार...

शुक्रवार, 13 मार्च 2009

१३ मार्च, रिपोर्टर पर रिपोर्ट

आज की चौपाल में होली मनाई जानी थी। सबसे पहले प्रकाश दिखाई पड़े दारा के साथ, सफेद कामदार कुर्ता, हाथ में जलेबियाँ, वाह वाह आज तो सबको जोश आना ही था। उन्होंने इकट्ठी की थी कुछ ज़बरदस्त होली सामग्री। डॉ. उपाध्याय के झोले में भी बैकअप की तरह हमेशा कुछ न कुछ होता है। आज पढ़ी गईं दीपक गुप्ता की व्यंग्य कविताएँ, इला प्रसाद की कहानी, राजेन्द्र त्यागी का व्यंग्य और मेरी कविता - रंग।

6-7 लोग ही आए थे पर हमने पाठ का कार्यक्रम शुरू कर दिया। नाटक का रिहर्सल करने वाले अक्सर देर से आते हैं। दुबई से आने वालों को भी कभी कभी देर हो जाती है। राजेन्द्र त्यागी का व्यंग्य डॉ.शैलेष उपाध्याय ने पढ़ा, दीपक गुप्ता की कंप्यूटर से संबंधित कविता मूफ़ी ने और राजनीति एक बस प्रकाश ने पढ़ी। सबीहा ने सतपाल ख़याल और संजय विद्रोही की होली से संबंधित ग़ज़लें पढ़ीं। इसके अतिरिक्त कुछ पंचदार टुकड़ों- दारा का 'मैं मुन्नी के बिना नहीं जी सकता', मूफ़ी का 'येस येस नो नो' और महबूब हसन रिज़वी का 'भाइयों और बहनों' की प्रस्तुति प्रभावशाली रही।

आज के कार्यक्रम का विशेष आकर्षण गल्फ़ एक्सप्रेस के रिपोर्टर का आगमन रहा। वे पूरे कार्यक्रम में मुख्य अतिथि की तरह छाए रहे। फोटोग्राफ़र देखकर किसका मन फ़ोटो खिंचाने का नहीं करता बस सब आ गए ग्रुप फोटो की मुद्रा में। इस बार आज की जमघट के सभी चेहरे एक साथ आ गए। न किसी की पीठ और न कोई छूटा। ऊपर की फ़ोटो, में बाएँ से- बैठे हुए प्रेस रिपोर्टर, शांति, प्रवीण, मैं, मेनका, मूफ़ी, इरफ़ान और एक नया सदस्य जिसका नाम पूछना रह गया। खड़े हुए बाएँ से- एजाज़, दारा, मिलिंद तिखे, प्रकाश, सबीहा, डॉ.उपाध्याय, रिज़वी साहब, अश्विन और मीर।

फोटो सेशन के बाद मैं चाय के लिए अंदर आई और रिपोर्टर साहब बिना चाय पिए नौ दो ग्यारह, प्रेस की ओर रवाना हो गए। कुल मिलाकर यह कि रिपोर्टर की फोटो तो मिली लेकिन उन पर कोई रिपोर्ट नहीं लिखी जा सकी। चाय के बाद मिलिंद तिखे के नाटक 'राई का पहाड़' पढ़ा गया। इस माह की मंच-प्रस्तुति कुछ कारणों से निरस्त हो गई है आशा है अप्रैल की प्रस्तुति महबूब हसन रिज़वी के निर्देशन में होगी।

शुक्रवार, 6 मार्च 2009

६ मार्च, अगली तैयारियाँ


6 मार्च को दो कहानियों को पाठ होना था। प्रेमचंद की 'गुल्ली-डंडा' और हरिशंकर परसाईं की 'भोलाराम का जीव'। चौपाल थोड़ा देर से शुरू हुई। कुछ लोग भारत गए हैं और कुछ किसी पिकनिक के कार्यक्रम के कारण नहीं आ सके। आज उपस्थित रहे प्रकाश सोनी, कौशिक साहा, महबूब हसन रिज़वी, मेनका, नीरू, शान, मैं और प्रवीण। बीते नाटक के विषय में कुछ चर्चा हुई। कौशिक ने 'गुल्ली-डंडा' का पाठ किया और प्रकाश ने 'भोलाराम का जीव' का। अगली प्रस्तुति के विषय में भी बात हुई।

रिज़वी साहब सआदत हसन मंटो का नाटक 'बीच मँझधार में' करना चाहते हैं। उसके कुछ हिस्से पढ़े गए और पात्रों के चयन के विषय में कुछ बातचीत हुई। हाँ 26 फ़रवरी की प्रस्तुति से प्रभावित होकर इस बार एक नए मेहमान भी आए थे उनसे नाम पूछना याद नहीं रहा। वे मुंबई में थियेटर की दुनिया से बरसों जुड़े रहे हैं। शायद अगली बार विस्तृत बात करने का अवसर मिलेगा। यों तो शायद नीरू और श्याम भी एक साल बाद आए आज चौपाल में। एक फ़ोटो लिया था, यहाँ प्रस्तुत है। फोटो में प्रवीण, नीरू और मेरे सिवा सभी दिखाई दे रहे हैं।