
कुछ देर बार मेनका और क्रिस्टोफ़र साहब आ गए। रिहर्सल के बाद निर्मल वर्मा की कहानी को पढ़ा क्रिस्टोफ़र साहब ने। सबने इस कहानी के मंचन के विषय में विचार विमर्श किया। संगीत और प्रकाश के मामले, मंच की डिज़ायनिंग... मंचन की तिथि निश्चित नहीं है पर तैयारियाँ तो बहुत पहले से शुरू हो जाती हैं। क्रिस्टोफ़र साहब और मेनका बाद में आए थे तो इस बार फोटो में उनके चेहरे नहीं आ पाए। डॉ. उपाध्याय किसी विशेष कार्य से जल्दी चले गए। बाकी लोग देर तक पुरानी और नई प्रस्तुतियों के बारे में विस्तृत चर्चा करते रहे। (चित्र में- संवादों का अभ्यास करते प्रकाश और कौशिक मैं डॉ. साहब और दारा सुनते हुए।)
पूर्णिमा जी.
जवाब देंहटाएंसर्वप्रथम मेरा अभिवादन स्वीकार करें.
नियमित चलने वाली शुक्रवार चौपाल के माध्यम से आपने एक रचनात्मक बीड़ा उठाया है , निश्चित रूप से वह स्वर्णाक्षरों में लिखा जायेगा. वैसे भी नाटकों का मंचन जहाँ एक ओर अपने आप में कला और भावनाओं की पराकाष्ठा होता है वहीँ प्रबुद्ध दर्शकों के लिए नाटक 'रूचि' के साथ ही अविस्मरणीय पल भी होते हैं.
आलेख में " निर्मल जी " का नाम पढ़ कर वे स्मृतियों में आगये .
- विजय