शनिवार, 25 अप्रैल 2009

२४ अप्रैल, धूप का टुकड़ा

आज की चौपाल में अगली प्रस्तुति दस्तक का रिहर्सल और निर्मल वर्मा की कहानी "धूप का एक टुकड़ा" का पाठ होना था। चौपाल के कुछ सदस्य दुबई में थियेट्रिक्स द्वारा प्रस्तुत 'द वुड बी जेंटेलमैन' के साथ व्यस्त हैं और कुछ ट्रैकिंग के एक कार्यक्रम में। इस कारण उपस्थिति कम सी थी। थियेटरवाला के अगले प्रदर्शन के लिए ७ मई को थियेटर मिला है। इसलिए विशेष महत्व दस्तक के रिहर्सल का था। प्रकाश, डॉ.उपाध्याय और दारा समय से आ गए थे। कौशिक के आते ही रिहर्सल शुरू हो गया। रिहर्सल बड़े भाई साहब का भी होना था पर मीर और जुल्फी दोनों ही किसी कारण नहीं आ सके।

कुछ देर बार मेनका और क्रिस्टोफ़र साहब आ गए। रिहर्सल के बाद निर्मल वर्मा की कहानी को पढ़ा क्रिस्टोफ़र साहब ने। सबने इस कहानी के मंचन के विषय में विचार विमर्श किया। संगीत और प्रकाश के मामले, मंच की डिज़ायनिंग... मंचन की तिथि निश्चित नहीं है पर तैयारियाँ तो बहुत पहले से शुरू हो जाती हैं। क्रिस्टोफ़र साहब और मेनका बाद में आए थे तो इस बार फोटो में उनके चेहरे नहीं आ पाए। डॉ. उपाध्याय किसी विशेष कार्य से जल्दी चले गए। बाकी लोग देर तक पुरानी और नई प्रस्तुतियों के बारे में विस्तृत चर्चा करते रहे। (चित्र में- संवादों का अभ्यास करते प्रकाश और कौशिक मैं डॉ. साहब और दारा सुनते हुए।)

शुक्रवार, 17 अप्रैल 2009

१८ अप्रैल, मीडिया में थियेटरवाला

एक्सप्रेस गल्फ़ न्यूज़ का नया टैबलॉयड है, जो शहर की सांस्कृतिक गतिविधियों की सूचना और समीक्षा देता है, आज इसमें थियेटरवाला छाया रहा (चित्र में दाहिनी ओर)। अखबार के वेब संस्करण में इसकी उपस्थित रही(यहाँ देखें)। सबसे पहले सबीहा आईं इसकी एक कॉपी लेकर, जब हमने इसको शुक्रवार चौपाल के लिए स्कैन किया। बाद में डॉ.उपाध्याय भी एक प्रति लाए। बहुत से लोगों ने इसे सुबह ही देख लिया था, फिर से देखा और एक दूसरे की तस्वीरों पर मज़ेदार कमेंट्स किये।

आज के कार्यक्रम में सबसे पहले दस्तक का रिहर्सल होना था। एक घंटे के इस नाटक का शारजाह में मंचन होना है। इसी के साथ बड़े भाई साहब को भी प्रस्तुत करने की योजना है। ये दोनों नाटक पहले दुबई में खेले जा चुके हैं। रिहर्सल शुरू हुआ और लगभग एक घंटे बाद दुबई मेल आ गई। दुबई से आज विशेष अतिथि थे क्रिस्टोफ़र साहब जो इमारात की जाने-माने रंगकर्मी है। इसके बाद के पी सक्सेना का छोटा नाटक पढ़ा गया- खिलजी का दांत। आज उपस्थित लोगों में थे- प्रकाश सोनी, कौशिक साहा, डॉ. शैलेष उपाध्याय, सबीहा मजगांवकर, शांति, दोनों भाई मीर और इरफ़ान, क्रिस्टोफ़र साहब, अश्विनी, जुल्फ़ी शेख और प्रवीण सक्सेना।

शनिवार, 11 अप्रैल 2009

१० अप्रैल, नाटकों का पोस्टमॉर्टम

९ अप्रैल की शाम मिलिंद तिखे की शाम रही। पहला नाटक राई का पहाड़ उनका लिखा हुआ था तो दूसरा पोस्टमॉर्टम उनके द्वारा मराठी से हिन्दी में रूपांतरित। दोनों कामदी नाटक दर्शकों को गुदगुदाने में सफल रहे। पहले नाटक में जहाँ टी वी चैनलों द्वारा समाचारों को नाटकीय ढंग से प्रस्तुत करने पर व्यंग्य था वहीं दूसरे एकांकी में रंगमंच के पीछे होने वाली भूलों को मनोरंजक ढंग से प्रस्तुत किया गया था। मिलिंद तिखे पिछले कई दशकों से इमारात में हैं और लगभग नियमित रूप से चुपचाप लिखते रहे हैं।


राई का पहाड़ का निर्देशन महबूब हसन रिज़वी ने किया था और पोस्टमॉर्टम का श्रीकांत रेले ने। यहाँ प्रस्तुत हैं राई का पहाड़ के कुछ चित्र- ज़ुल्फ़ी शेख के कैमरे से। १० भूमिकाओं वाले इस नाटक में मंच पर टीवी समाचार वाचक की भूमिका मीर इमरान हुसैन और सरयू गजधर ने, निर्देशक की ऐज़ाज चौधरी ने, लेखक की एहाज़खान ने, हवलदार की ज़ुल्फ़ी शेख ने, रिपोर्टर की मुफ़द्दल बूटवाला ने, ज्योतिष गुरु की सबीहा मजगावकर ने और रेनू की शांति ने निभाई थी।


आज १० अप्रैल यानी नाटकों के एक दिन बाद जमी चौपाल में हमेशा की तरह कुछ समय नाटकों की प्रस्तुति के बाद प्रस्तुति का पोस्टमॉर्टम करने में गया। इसके बाद कुछ प्रसिद्ध और कुछ समसामयिक रचनाओं का पाठ हुआ। मुंशी प्रेमचंद की कहानी शतरंज के खिलाड़ी को पढ़ा डॉ. शैलेष उपाध्याय ने। मनोहर पुरी के व्यंग्य गर्म है जूतों का बाज़ार को पढ़ा जुल्फ़ी शेख ने और कृष्ण कल्पित की एक शराबी की सूक्तियाँ को पढ़ा प्रकाश सोनी ने।


एक दिन पहले सब देर रात घर गए थे। लगा था कि इस शुक्रवार उपस्थिति कम रहेगी पर काफ़ी लोग आ गए। सबीहा, मेनका, डॉ.उपाध्याय, प्रकाश सोनी, कौशिक साहा, जुल्फी शेख, मिलिन्द तिखे, मूफ़ी, रिज़वी साहब और अश्विन के साथ शुक्रवार की सुबह मज़ेदार रही। चित्र में सब लोग नहीं दिख रहे हैं पर अब तो ब्लॉग पढ़ने वाले सबको नामों से पहचानते ही हैं। अरे हाँ... नाटक के चित्र अभी तक नहीं आए। जैसे ही आते हैं यहाँ लगाने की कोशिश करेंगे। (गोष्ठी का चित्र हट चुका है और उसकी जगह नाटक के चित्र लग गए हैं। शायद कुछ और बेहतर चित्र आने वाले हैं। तब तक ये सबका मनोरंजन करेंगे।)

शनिवार, 4 अप्रैल 2009

३ अप्रैल, नरगिस और चीलें


९ अप्रैल को रिज़वी साहब मिलिंद तिखे का नाटक राई का पहाड़ करने वाले हैं। इसके साथ ही होगा श्रीकांत रेले का पोस्टमॉर्टम... यह तो हुआ इस माह का कार्यक्रम पर आज का कार्यक्रम था 'कम्बख़्त साठे का क्या करें' का पाठ। नाटक में दो ही पात्र हैं जिसे कल्याण और कविता पढ़ने वाले थे पर ११ बजे तक दोनों में से कोई पहुँचा नहीं था। इसलिए सबने निश्चय किया कि समय का सदुपयोग करते हुए सरला अग्रवाल की कहानी नरगिस और भीष्म साहनी की कहानी चीलें का पाठ पहले कर लिया जाए। दोनों कहानियाँ लंबी थीं। नरगिस को अश्विनी, सबीहा और सुनील ने पढ़ा और चीलें को प्रकाश और मिलिन्द जी ने। कुछ बात राई के पहाड़ के रिहर्सलों की हुई। कुछ पुराने कार्यक्रमों की। इस बीच दुबई वाले आ गए कविता किसी कारण से नहीं आ सकी तो साठे रह ही गया। आगे के कार्यक्रमों में शायद शारजाह में 'दस्तक' जल्दी ही दोहराया जाए। इसके बाद 'कम्बख़्त साठे का क्या करें' की बारी होगी। सुनील शायद 'सुल्तान' करने का मन बना रहा है। सबकुछ निश्चित सा नहीं है। चाय पीने के बाद सब घर की ओर निकल पड़े। अरे... अरे... फ़ोटो तो इस बार रह ही गए। प्रवीन जी जल्दी से अंदर गए और कैमरा लेकर आए। सब लोग अंदर आए और एक समूह चित्र ले लिया गया। देखें तो आज कौन कौन उपस्थित है।