शनिवार, 23 जनवरी 2010

२२ जनवरी, लेखन कार्यशाला के परिणाम


इस बार चौपाल में अवसर था पूर्व घोषित विषय पर रचना प्रस्तुत करने का। लिखने-पढ़ने दोनो में ही लोगों की रुचि कम दिखाई देती है अभिनय में अधिक, तो भी कुछ लोगों ने सार्थक प्रयत्न किए थे। जो रचना चौपाल में सबसे अच्छी समझी गई वह थी डॉ. उपाध्याय की "इस बार की चौपाल बुर्ज खलीफा पर"। नियमानुसार आज रचना को प्रकाशित होना था लेकिन अभी फ़ाइल खोलकर देखती हूँ मेरा कंप्यूटर बारहा में लिखी गई यूनिकोड पढ़ने से इनकार कर रहा है। खैर इसका प्रकाशन अगले सप्ताह करेंगे। रचना में दुबई की सड़कों, प्रकृति और सुरक्षा व्यवस्था का रोचक चित्रण हुआ था। यत्र तत्र व्यंग्य के गुदगुदाते छींटे थे। यह कोई कहानी नहीं थी न ही व्यंग्य था और न नाटक तो भी 20 पृष्ठों के इस लंबे वृत्तांत को सुनते हुए ऊब का अनुभव कहीं नहीं हुआ और अंत में... नहीं नहीं अंत अभी नहीं बताऊँगी वर्ना रचना का मज़ा जाता रहेगा।

आज आने वालों में सबसे पहले आयीं बहुत दिनों से अनुपस्थित डॉ. लता और उनकी बहन। फिर डॉ. उपाध्याय और प्रकाश भी आ गए। थोड़ी देर में सुनील भी हमारा हिस्सा बने। फोटो प्रवीण जी ने ली। बस साथ मिलकर चाय पी। अगली पिकनिक के स्थान का निश्चय हुआ और एक नए सभागार का भी जहाँ हम अगली प्रस्तुति देने का विचार करने लगे हैं। फोटो में बाएँ से- डॉ उपाध्याय, प्रकाश सोनी, सुनील, मैं, डॉ. लता और अंत में उनकी बहन।

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