शनिवार, 30 जनवरी 2010

२९ जनवरी, अंधायुग एक बार फिर

इस बार चौपाल के कार्यक्रम में विशेष आयोजन था डॉ. धर्मवीर भारती के नाटक अंधा युग के पाठ-अभिनय का। कितनी ही बार पहले पढ़ा, सुना, देखा पर हर बार पढ़ने की अनुभूति नयी संवेदनाओं से भर देती है। मौसम अच्छा था तो चौपाल बाहर ही लगी। अंधायुग का आलेख सबको पहले से ही ईमेल कर दिया गया था। सब अपने अपने पाठ को तैयार कर के आए थे, परिणाम स्वरूप इस बार चौपाल में कुछ ज्यादा लोग देखने को मिले और चौपाल भरी भरी सी लगी। उपस्थित लोगों में थे- डॉ. लता, सुनील, सबीहा, मिलिन्द् तिखे, संग्राम, शालिनी, डॉ. उपाध्याय, प्रकाश, रिज़वी और कौशिक।
हमारी चौपाल में पुरुषों की अपेक्षा महिलाएँ अधिक हैं तो ऐसा अक्सर होता है कि पुरुष पात्रों का पाठ भी महिलाएँ ही कर लेती हैं। आज की चौपाल में सुनील ने अश्वत्थामा के संवादों का, डॉ. उपाध्याय ने धृतराष्ट्र के संवादों का, शालिनी ने संजय के संवादों का, सबीहा ने विदुर के संवादों का, संग्राम ने कृतवर्मा के संवादों का, मिलिन्द तिखे ने कृपाचार्य के संवादों का, मैंने गांधारी के संवादों का और कौशिक ने युयुत्सु के संवादों का पाठ किया। मंगलाचरण सूचनाएँ तथा बीच के निर्देश प्रकाश ने पढ़े। कुल मिलाकर पाठ अच्छा रहा। कुछ बातचीत हुई, चाय पी गई और अगली पिकनिक के विषय में जानकारी बाँटी गई। चौपाल के कुछ दृश्यों को कैमरे में कैद किया प्रवीण सक्सेना ने।

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