
इस हफ़्ते चौपाल खुश है, मानो वसंत का उपहार हाथ लगा है। एक बड़ा थियेटर कम किराये पर साल भर के लिए माह में एक बार मिलने वाला है। बड़े और सुविधासंपन्न थियेटर की खुशी के साथ-साथ बढ़े हुए किराये की फ़िक्र भी है। फ़िक्र सिर्फ़ किराये की नहीं दर्शकों की भी है। चार सौ दर्शकों की क्षमता वाला हॉल भर न सका तो क्या होगा? हमने जिस तरह के कम पात्रों वाले नाटकों की तैयारी की थी उनको वहाँ किस प्रकार खेला जाएगा। हाल के पहले बड़े प्रवेश हॉल का खालीपन दूर करने के लिए हम क्या करेंगे? शो से पहले दर्शकों के प्रतीक्षा समय को किस प्रकार मनोरंजक बनाया जाएगा? थियेटर परिसर में कोई कॉफी या पेस्ट्री शॉप न होने से कितना अजीब लगेगा आदि अनेक सवालों पर आज बात हुई। बहुत दिनों बाद इतने सारे लोग जुड़े थे। नाटक की प्रस्तुति के दिन नज़दीक आते हैं तो लोग जुड़ने लगते हैं। चौदह का रिहर्सल साढ़े नौ बजे से शुरू होना था पर आज देर हुई। अच्छा यह हुआ कि आज चारों पात्र थे इसलिए थोड़ी देर तक रिहर्सल चला।

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