शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2009

१३ फरवरी, चौदह अंकुश और जलूस


सारी सर्दियों के बाद आज पहली बार हम साहित्य पाठ के लिए बाहर बैठे। चौपाल के दो अड्डे हैं। गर्मियों में मंदिर के भीतर एसी में और सर्दियों में बाहर धूप में। इस बार इतनी सर्दी पड़ी है कि मौसम में पहली बार बाहर बैठना हो सका है। जबकि पिछले साल हम लोग सर्दियों भर कभी भीतर बैठे ही नहीं, साहित्य पाठ सदा बाहर ही होता था।

आज के साहित्य पाठ का समय 11 बजे से था। सबीहा ने पिछली बार कहा था कि उसको 12 बजे तक का समय रिहर्सल के लिए चाहिए। प्रस्तुति का समय नज़दीक आ रहा है। इसलिए साहित्य पाठ के लिए बाहर बगीचे में बैठना ही था। इस सप्ताह शांति और कल्याण दोनों बहुत दिनों बाद आए थे। प्रकाश, डॉ.उपाध्याय और मीर ने मिलकर मन्नू भंडारी की कहानी अंकुश पढ़ी। कहानी पढ़ने और सुनने के लिए हम सात लोग ही थे। बाएँ से प्रकाश, रिज़वी साहब, मैं मीर, डॉ. उपाध्याय, रिज़वान और शांति(पीछे से)। कल्याण को रिहर्सल देखना ज्यादा पसंद है। सबीहा, मेनका, मूफ़ी और ऊष्मा नाटक में व्यस्त थे। कुछ बातचीत हुई तब तक बिमान दा, कौशिक और अली भाई आदि जलूस के सब लोग आ गए थे। सब पर प्रदर्शन का तनाव दिखाई देने लगा है। चाय में खास मज़ा नहीं आया।

चौपाल के मंदिर वाले अड्डे की तस्वीरें काफ़ी प्रकाशित हो चुकी हैं। बाहर की तस्वीरों की बारी अभी तक नहीं आई। आज पहली बार बाहर का एक चित्र प्रस्तुत है। कुछ तस्वीरे जलूस की भी ली गई थीं पर वे किसी और दिन। 10 बजे चौदह का रिहर्सल मंदिर में शुरू हो गया था। जलूस का रिहर्सल भी जारी है लेकिन उसका समय बारह बजे से था। यह रिहर्सल डेढ़ बजे तक जारी रहा।

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