शनिवार, 16 मई 2009

१५ मई, बार-बार दिन ये आए


१५ मई को तीन रचनाओं का पाठ होना था। निर्मल वर्मा की कहानी "डेढ़ इंच ऊपर" और अंतोन चेखव के दो एकांकी "द बियर" और "द गुड डॉक्टर" के हिन्दी रूपांतर का। किसी कारण से चेखव के नाटकों का हिंदी रूपांतर नहीं हो सका था। डॉ. उपाध्याय ने डेढ़ इंच ऊपर का भाव पाठ किया। चेखव के एक नाटक का पाठ कविता, कल्याण और अश्विनी ने किया।

आज बहुत से लोग आए थे। संजय और अर्चना पहली बार आए। संजय शारजाह में पिछले एक साल से हैं जबकि अर्चना को आए अभी ३ महीने ही हुए हैं। बहुत दिनों बाद अली भाई आए थे। एक और सदस्य बहुत दिनों बाद आया। अन्य लोगों में रागिनी, रिज़वी साहब, प्रकाश, कौशिक, मूफ़ी, सबीहा और शांति थे। आज डॉ साहब का जन्मदिन था। वे कुछ मिठाइयों के साथ आए थे- पारंपरिक तरबूज और सेब वाली मिठाइयाँ साथ में मार्स के विलायती चॉकलेट। कौशिक केक लाए थे। फिर क्या था, केक कटा और गाया गया बार बार दिन ये आए... चाय तो थी ही।

रागिनी और दिलीप परांजपे २८ मई को "घर की मुर्गी" प्रस्तुत कर रहे हैं। २६ और २७ को एक बंगाली और एक मराठी नाटक होंगे। सबने अपने अपने नाटकों की घोषणा की। थियेटरवाला की अगली बुकिंग ११ जून की है। उसके लिए हम-तुम नामक एक घंटे का नाटक तो तैयार है पर दूसरे के निश्चय अभी तक नहीं हो सका है शायद अगली गोष्ठी तक हो जाए। चित्र में जन्मदिन का हुल्लड़ :-) मचाते कविता, डॉ. साहब, अश्विन, रागिनी और अली भाई।

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