शनिवार, 13 फ़रवरी 2010

१२ फरवरी, द परफ़ैक्ट हस्बैंड


आज का दिन काजल ओझा वैद्य के गुजराती नाटक का हिंदी रूपांतर पढ़ने का था। रूपांतर डॉ. शैलेष उपाध्याय ने किया है। अभिनय पाठ के लिए नाटक का आलेख सहयोगियों में बाँट दिया गया था। सभी लोग उपस्थित भी थे। समय कम होने के कारण सिर्फ दो अंकों का पाठ ही किया जा सका लेकिन जितनी देर तक अभिनय पाठ चला हम सब हँसते रहे।

नाटक की कथावस्तु एक ऐसी महिला के आसपास बुनी गई है जिसे सर्वगुण संपन्न एक ऐसे पति की तलाश है जो हर समय उसके आसपास घूमते हुए प्रेम प्रदर्शन करता रहे। जब उसका पति ऐसा नहीं कर पाता तो वह बाज़ार से एक रोबोट खरीद लाती है। फिर तो हास्य और व्यंग्य की असीमित संभावनाएँ खड़ी हो जाती हैं। यों तो रोबो के आने से पहले भी नाटककार ने उपभोक्ता संस्कृति और उधार के आभिजात्य पर व्यंग्य कसने का कोई अवसर नहीं छोड़ा है। अभी तय नहीं है कि हम यह नाटक करेंगे या नहीं लेकिन यह तो निश्चित है कि अगर यह नाटक हुआ तो लोग हँसते हँसते पागल हो जाएँगे। व्यंग्य को परिस्थितियों और घटनाओं के साथ उलझाकर रोचक ढंग से प्रस्तुत करना बड़ा ही चुनौती भरा काम है पर यह नाटक निश्चय ही ऐसी चुनौतियों को पूरा करता है। कामदी नाटकों की माँग यों भी बनी ही रहती है। आशा है हम जल्दी ही इसका मंचन करेंगे। आज उपस्थित लोगों में थे डॉ. उपाध्याय, प्रकाश, कौशिक, सबीहा, मेनका, शालिनी, डॉ. लता, सुनील और बहुत दिनों बाद अवतरित मूफ़ी।

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