रविवार, 21 फ़रवरी 2010

१९ फरवरी, कुत्ते

सुषमा बक्शी के हिंदी रूपांतर में विजय तेंडुलकर के मराठी नाटक कुत्ते के पाठ का दिन था आज। सबसे पहले डॉ उपाध्याय और सबीहा पहुँचे। फिर संग्राम मूफी सुनील और डॉ. लता भी आ गए। नाटक की कथा कुछ हँसी मज़ाक और सामाजिक व्यंग्य से शुरू होकर झटकेदार त्रासदी पर समाप्त होती है। अभी मालूम नहीं है कि इस नाटक का मंचन हम करेंगे कि नहीं लेकिन यह नाटक जन सामान्य को पसंद आएगा या सबकी रुचि का इसको बनाया जा सकता है इसमें संदेह सा लगा। प्रकाश को ऑफिस के काम से आबूधाबी जाना था इसलिए वे अनुपस्थित रहे। रागिनी और शालिनी भी नहीं आए थे। इसलिए पाठ जैसा होना चाहिए था वैसा नहीं हुआ। फिर भी सबने मिलजुल कर नाटक का पाठ पूरा कर के चौपाल को सफल बनाया और विजय तेंदुलकर जैसे लोकप्रिय नाटककार को उनके एक और नाटक से जानने का अवसर का लाभ उठाया।

अक्सर हम कहानियों का पाठ करते हैं। बहुत से सदस्यों को उसमें रुचि नहीं है। बहुत से सदस्यों को नाटक के पाठ में भी रुचि नहीं है। वे केवल तभी आना पसंद करते हैं जब रिहर्सल शुरू हो गया हो या अभिनय पाठ द्वारा चयन प्रक्रिया का दिन हो। अभिनय को मिलजुल कर माँजने, वाक् कला को निखारने, मंच अभिनय के नए गुर सीखने में सदस्यों की रुचि काफ़ी कम है। कुल मिलाकर यह कि जब नाटकों और सीरियलों में बिना कुछ सीखे ही काम मिल जाता है तो ज्यादा दिमाग, समय और श्रम खर्च करने की क्या ज़रूरत है इस प्रकार की सोच है लोगों की। सीरियलों और मँहगे नाटकों में जिस कमी को ध्वनि प्रकाश और तकनीक से पूरा कर लिया जाता है, उसकी व्यवस्था अभी तक हम नहीं करते आए हैं। हमें भी उस व्यवस्था की ओर मुड़ना है या मेहनत की ओर अभी हम यह तय नहीं कर पाए हैं।

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