
बहुत दिनों के बाद आज मौसम सुहावना था। चौदह का रिहर्सल सुबह साढ़े नौ बजे शुरू हो गया। निर्देशक सबीहा और कलाकार मेनका व मूफ़ी समय पर पहुँचे। बेटी का पात्र निभा रही ऊष्मा किसी कारण पूरे रिहर्सल में नहीं आ सकी। एक रिहर्सल के बाद सबीहा ने कहा बहुत बुरा बहुत बुरा... पर मुझे लगा कि काफ़ी अच्छा हो रहा है। खास पात्र तो मिसेज़ चावला ही हैं जिसका अभिनय मेनका कर रही है। वह काफ़ी अच्छा उभरकर आने लगा है। चौदह का प्रदर्शन चौदह तारीख़ को होना है। यानी चौदह दिन बाकी हैं लगता है तबतक सब ठीक हो जाएगा। रिहर्सल के कुछ फ़ोटो लिए हैं न...न... सब नहीं, एक यहाँ लगाती हूँ। मेनका और मूफ़ी मिसेज़ चावला और नौकर के पात्रों में।
रिहर्सल पूरा होते होते डॉ. उपाध्याय, अश्विन और प्रकाश सोनी आ पहुँचे थे। जल्दी ही अली भाई, कौशिक और अनुज सक्सेना भी आ गए। मेनका, सबीहा मैं और मूफ़ी पहले से ही थे। आज के साहित्य पाठ का कार्यक्रम शुरू हुआ। पहला पाठ था शरद जोशी के व्यंग्य उत्तर दिशा और शंख बिन कुतुबनुमा का, भावपाठ प्रकाश सोनी ने किया। दूसरे व्यंग्य का शीर्षक था अतिथि तुम कब जाओगे जिसे मूफ़ी ने पढ़ा। तीसरा व्यंग्य हरिशंकर परसाईं का था द्रोणाचार्य और अंगूठा जिसे डॉ.शैलेष उपाध्याय ने पढ़ा।

इस बीच मीर और इरफ़ान भी आ पहुँचे तो सब अपनी अपनी मुद्रा में फ़र्श पर आ गए। जुलूस का रिहर्सल दोपहर डेढ़ बजे तक जारी रहा। कुछ फ़ोटो जलूस के रिहर्सल के भी हैं पर उन्हें अभी नहीं प्रकाशित करेंगे। पहले तो 14 फरवरी को चौदह का मंचन होना है। जुलूस की कहानी उसके बाद शुरू करेंगे। हाँ दाहिनी ओर फ़ोटो है पाठ के ज़रा पहले की...भई पाठ और रिहर्सल तो चलते ही रहेंगे कुछ ज़रूरी बातें भी हो जाएँ... प्रकाश सोनी समूह को संबोधित करते हुए...